प्रवासी भारतीय दिवस पर निबंध | pravasi bharatiya divas Essay in Hindi
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी, 1915 को भारत में वापसी के उपलक्ष्य में प्रवासी भारतीय दिवस को मनाया जाता है। उनकी बतन बापसी न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के लिए भी युगान्तरकारी घटना सिद्ध हुई। गांधीजी ने न केवल भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन का नेतृत्व किया बल्कि विश्व को अहिंसक प्रतिरोध, शान्ति एवं मानवता का सन्देश भी दिया।
गांधीजी की ही तरह विश्व के अनेक देशों में प्रवासी भारतीय सदियों से निवास कर रहे हैं। प्रवासी भारतीयों के बारे में जानने के लिए यह जानना आवश्यक है कि प्रवास क्या है, भारत से प्रवास की परम्परा कब प्रारम्भ हुई इत्यादि। जो लोग अपने जन्म स्थान को छोड़कर अन्यत्र बग जाते हैं, उन्हें प्रवासी कहते हैं। प्रवास अनेक कारणों से होता है, लेकिन सबसे मुख्य कारण आजीविका के बेहतर अवसरों की तलाश है। प्रवासी भारतीयों से आशय उन लोगों से है, जो मूल रूप से भारतीय हैं, परन्तु विभिन्न कारणों से विश्व के दूसरे देशों में आकर बस गए हैं।
ऐतिहासिक रूप से भारत से प्रवास का प्रथम उल्लेख हमें सम्राट अशोक के अभिलेखों में मिलता है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में श्रीलंका, यूनान, अफगानिस्तान, जावा-सुमात्रा आदि देशो में अपने दूत भेजे थे। इसके पश्चात 11वीं सदी में दक्षिण भारत के प्रतापी शोत सम्राटों ने जावा-सुमात्रा, कम्बोडिया आदि सुदूर पूर्व देशों की विजय यात्रा की, जिसके फलस्वरूप इन देशों में भारतीयों को प्रवास हुआ।
यह एक मान्य तथ्य है कि इस काल के व्यापारियों ने अपने जहाजों से रोम तथा चीन तक व्यापारिक गतिविधियों संचालित की थी। औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार से मॉरिशस, कैरेबियन द्वीपों (ट्रिनिडाड टोबेगो एवं गुयाना) फिजी और दक्षिण अफ्रीका, फ्रांसीसियों और जर्मनों द्वारा रियूनियन द्वीप गुआडेलोप मार्टीनीक और सूरीनाम में, डच और पुर्तगालियों द्वारा गोवा, यमन-दीप से अंगोला, मोजाम्बिक व अन्य देशों में कृषि कार्य हेतु करास्वद रूप से अर्थात् एग्रीमेण्ट के अन्तर्गत लाखों भारतीयों को ले जाया गया, जिन्हें लोक भाषा में गिरमिटिया मजदूर कहा गया।
आधुनिक समय में भारतीय प्रवासी व्यवसायियों, शिल्पियों, व्यापारियों और फैक्ट्री मजदूरों के रूप में आर्थिक अवसरों की तलाश में निकटवर्ती देशों, जैसे- थाइलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, ब्रूनेई इत्यादि देशों में व्यवसाय के लिए गई। यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है। 1970 के दशक में पश्चिम एशिया में तेल वृद्धि से उत्साहित भारत के अर्द्धकुशल एवं कुशल श्रमिकों का आर्थिक प्रगति हेतु अरब देशों में प्रयास हुआ, जो अभी भी जारी है।
देश से ज्ञान आधारित नवीनतम प्रवास वर्ष 1960 के दशक के पश्चात् हुआ। इसके अन्तर्गत इजीनियर, डॉक्टर, प्रबन्धन परामर्शदाता, वित्तीय विशेषज्ञ तथा वर्ष 1980 के पश्चात से संचार प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ शामिल हैं। इन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), कनाडा, यूनाइटेड किंगडम (UK), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, जर्मनी इत्यादि देशों में प्रयास किया।
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भारतीय प्रवासियों की स्थिति
वर्तमान संयुक्त राष्ट्र एवं ग्लोबल माइग्रेशन रिपोर्ट, 2020 के अनुसार, भारत के विदेशों में रह रहे प्रवासियों की संख्या 17.5 मिलियन है। इसके साथ भारत अन्तर्राष्ट्रीय प्रवासियों की उत्पत्ति का सबसे बड़ा देश बना हुआ है। इससे भारत को 78.6 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए। इस प्रकार, दुनिया के 48 देशों में करीब दो करोड़ भारतीय प्रबासी के रूप में रह रहे हैं। इनमें से 11 देशों में 5 लाख से अधिक प्रवासी भारतीय वहाँ की जनसंख्या के एक महत्त्वपूर्ण वर्ग के रूप में स्थापित हो चुके हैं। सूरीनाम, फिजी, त्रिनिडाड एवं टोबेगो, मॉरिशस आदि देशों में तो राष्ट्राध्यक्ष या शासन प्रमुख भारतीय मूल के लोग ही हैं या रह चुके हैं।
उदाहरण के लिए, न्यूजीलैण्ड के गवर्नर-जनरल आनन्द सत्यानन्द, सूरीनाम के पूर्व उपराष्ट्रपति राम सर्दजोई, सिंगापुर के पूर्व राष्ट्रपति एस आर नाथन, तीन बार गुयाना के राष्ट्रपति रह चुके भरत जगदेव, मॉरिशस के राष्ट्रपति कैलाश पुरयाग एवं प्रधानमन्त्री अनिरुद्ध जगन्नाथ तथा त्रिनिडाड एवं टोबेगो की प्रधानमन्त्री कमला प्रसाद बिसेसर नाम प्रमुख हैं।
इसके अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक शीर्ष प्रशासनिक पदों पर भी अनेक भारतीय विराजमान हैं। इनमें लुइसियाना के गवर्नर बॉबी जिन्दल, साउथ कैरोलिना की गवर्नर निक्की हैली तथा कमला हैरिस (अदानीं जनरल) आदि प्रमुख हैं। एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका के 38% डॉक्टर, 12% वैज्ञानिक तथा नासा के 36% कर्मचारी भारतीय हैं।
कारोबार क्षेत्र की दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी के सीईओ सहित लगभग 34% कर्मचारी भारतीय है। इसी तरह आईबीएम एब इंटेल जैसी कम्पनियों के प्रशासनिक व कर्मिक पदों पर भी भारतीयों का वर्चस्व है। पेप्सिको की मुख्य कार्यकारी अधिकारी इन्द्रा नूयी हो या ब्रिटेन के शीर्ष धनी परिवारों में शामिल लक्ष्मीनिवास मित्तल, हिन्दुजा बन्धु हो या कापसे समूह के संस्थापक लॉर्ड स्वराज पाल इन सभी ने अपने-अपने क्षेत्रों में मील के पत्थर स्थापित किए हैं।
विज्ञान के क्षेत्र में सर्वकालिक महान वैज्ञानिकों में शामिल नोबेल विजेता डॉ. हरगोविन्द खुराना, अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चन्द्रशेखर सुब्रह्मण्यम, 2009 के नोबेल विजेता रसायनशास्त्री बैंकट रमण रामकृष्णन, नोबेल विजेता अर्थशास्त्र प्रो. अमर्त्य सेन, अभिजीत बनर्जी नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता वी एस नायपाल, बुकर पुरस्कार विजेता सलमान रुश्दी पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता झुम्पा लाहिड़ी आदि भी प्रवासी भारतीय ही है।
वर्ष 2018 के ऑकड़ों के अनुसार अमेरिका में लगभग 39 लाख, कनाडा में 14 लाख, त्रिनिडाड एक टोबेगों में 4.3 लाख, मुयाना में 3.27 लाख, सूरीनाम 1.48 लाख, यूनाइटेड किंगडम में 11.5 लाख, जर्मनी में 1.56 लाख प्रांत में 55 हजार, कुवैत में 7.8 लाख, कतर में 6.6 लाख, मलेशिया में 21 लाख, सिंगापुर में 7 लाख, श्रीलंका में 8.5 लाख मॉरिशस में 8.24 लाख, सिंगापुर में 7 लाख एवं ऑस्ट्रेलिया में 4.5 लाख भारतीय निवास कर रहे हैं। विश्व के अन्य देशों में भी भारतीयों की संख्या अधिक पाई जाती है।
भारतीय प्रवासियों का महत्त्व एवं प्रवासी दिवस
भारत इस समय प्रतिभा पलावन की समस्या का सामना कर रहा है, परन्तु फिर भी भारत के लिए प्रवासियों का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। वर्ष 1915 में एक प्रवासी भारतीय मोहनदास करम गांधी भारत लौटे और भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम के अग्रदूत बने। वास्तव में, भारतीय वर्षों पहले अवसरों व सम्भावनाओं की तलाश में भारतीय प्रवासी बने, किन्तु अब भारत स्वयं सम्भावनाओं व अवसरों की भूमि है। अत: इसके विकास में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत का बिश्व में प्रवासियों द्वारा भेजी गई विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतीय प्रवासियों द्वारा प्राप्त यह बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है।
भारतीय प्रवासियों के महत्त्व को देखते हुए एवं उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2003 से प्रतिवर्ष 9 जनवरी को ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे थे। इसी क्रम में 14वें प्रवासी भारतीय दिवस 7 से 9 जनवरी, 2017 के मध्य बंगलुरु (कर्नाटक) में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का उद्घाटन भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और सम्मेलन के मुख्य अतिथि डॉ. एण्टोनियो कोस्टा (पुर्तगाल के प्रधानमन्त्री) द्वारा किया गया।
इस सम्मेलन का विषय ‘प्रवासी भारतीय सम्बन्धों के नए आयाम रखा गया था प्रवासी भारतीय दिवस वर्ष 2015 के पश्चात् प्रत्येक दो वर्ष पर मनाया जाता है। अतः 15वाँ प्रवासी भारतीय दिवस 21 से 23 जनवरी, 2019 को वाराणसी में आयोजित किया गया। इस आयोजन में मॉरिशस के प्रधानमन्त्री प्रविन्द जगन्नाथ मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। इस प्रवासी दिवस की थीम थी- “नए भारत के निर्माण में प्रवासी भारतीयों की भूमिका।” 16वाँ भारतीय प्रवासी दिवस वर्ष 2021 में मनाया गया।
भारतीय प्रवासियों को भारत से जोड़ने हेतु प्रवासी दिवस के अतिरिक्त भारत सरकार अनेक ऐसे कार्यक्रम संचालित कर रही है, जो प्रवासी भारतीय को अपनी जड़ों से जोड़ने हेतु प्रतिबद्ध हैं। इनमें भारत अध्ययन कार्यक्रम, अपनी जड़ों को जानो कार्यक्रम, भारत को जानो कार्यक्रम, यज्ज्र योजना, प्रवासी भारतीय तीर्थ दर्शन योजना आदि उल्लेखनीय हैं।
शास्त्र में कहा गया है, “वस्तु संचरते देशान सेवते यस्तु पाण्डेतान, तस्य विस्तारिता चुधिस्तैल बिन्दु रिवाम्भसि” अर्थात् जो विश्व में भ्रमण करता है, वह ज्ञान और अनुभव अर्जित करता है। उसके द्वारा अर्जित किया गया ज्ञान व अनुभव इतना तीक्ष्ण होता है कि कितना ही गहरा समन्दर क्यों न हो, पानी का कितना ही बड़ा सागर क्यों न हो, लेकिन उस पर एक बूँद तेल की पड़े, तो वह प्रभावी रूप से फैल जाती है।
इसी तरह विश्व भर से अर्जित ज्ञान भी व्यापक होता है। भारतीय जहाँ भी गए हैं यहाँ उन्होंने ज्ञान, विज्ञान, कारोबार, सेवा आदि क्षेत्रों में सफलता के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस प्रकार, भारत विकास के पथ पर अग्रसर है। इस समय भारत विश्व की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। अतः इसे विकसित बनाने तथा भारत को विचारों की भूमि से अवसरों की भूमि बनाने में प्रवासी भारतीय उल्लेखनीय भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। यह राष्ट्र निर्माण के साथ समुदाय के जुड़ाव से बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने में सहायक हो सकते हैं।
प्रवासी भारतीय दिवस पर निबंध || Essay on Pravasi Bharatiya Divas in Hindi || NRI Day video
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