सरदार सरोवर बांध परियोजना पर निबंध | Sardar Sarovar Dam Project Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Sardar Sarovar Project in Hindi

सरदार सरोवर परियोजना : समृद्धि के लिए वृहद् निर्माण | Sardar Sarovar Dam Project Essay in Hindi

सरदार सरोवर बाँध ग्रैण्ड कुली बाँध (यूएसए) के पश्चात् दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाँध है। यह गुजरात के नवगॉम जिले के केबडिया में नर्मदा नदी पर स्थित है। नर्मदा नदी पर बनने वाले तीस बाँधों में सरदार सरोवर और महेश्वर दो सबसे बड़ी बाँध परियोजनाएँ हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पानी पहुँचाना और मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के लिए बिजली उत्पन्न करना है। 

सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई 138.68 मी और लम्बाई 1.210 मी है। बांध के 30 दरबाजे हैं। इस पर गुलाबी, सफेद और लाल रंग के 620 लईडी बल्ब लगाए गए हैं। इनमें से 120 बल्ब बाँध के 30 दरवाजों पर लगे हैं। इनसे पैदा होने वाली रोशनी से ओवरफ्लो का आभास होता है। चाँध बनाने में 86.20 लाख क्यूबिक मीटर कंकरीट लगी है। यह भारत सरकार की महत्वाकांशी एवं महत्वपूर्ण परियोजना है।

सरदार सरोवर बाँध परियोजना की शुरुआत

19वीं शताब्दी के अन्त में भारत में बाँधों के माध्यम से नर्मदा नदी के पानी को उपयोग में लाने का सपना देखा जाने लगा था। भारत के पहले सिंचाई आयोग ने अपनी वर्ष 1901 की रिपोर्ट में भरूच के निकट एक बैराज का उल्लेख किया था, लेकिन वहाँ काली कछारी मिट्टी की वजह से इसे सिंचाई के लिए उपयोगी नहीं माना गया था। साथ ही यहाँ किए जाने वाले निवेश की व्यर्थता को भी रेखांकित किया गया था। लेकिन सरदार पटेल मध्य गुजरात के कृषक पृष्ठभूमि से ये और उन्होंने नर्मदा के पानी के उपयोग के लिए इच्छा व्यक्त की थी। नेहरू युगीन विकास नीतियों के चलते कुछ बड़ा बनाने की होड़ में नर्मदा पर बाँध का विचार बना।

गुजरात सरकार के अनुसार ऊर्जा एवं जल संसाधन विकास की सम्भावनाओं को लेकर पहली जाँच पड़ताल की सर्वप्रथम पहल वर्ष 1945 में की गई थी। नर्मदा नदी पर भरूच, तथा, बरगी और पुनास परियोजनाओं के अतिरिक्त छानबीन हेतु प्राथमिकता दी गई थी। योजना आयोग ने सरदार सरोवर परियोजना की पूर्वगामी ‘भरुच सिंचाई परियोजना’ को अगस्त, 1960 में 162 फीट की ऊँचाई एवं 9.97 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हेतु अनुमति प्रदान कर दी।

दूसरे तल पर बाँध की ऊंचाई को 300 फीट तक बढ़ाने का विचार था, बाद में इसे 320 फीट कर दिया गया, लेकिन योजना आयोग ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। इस दौरान, गुजरात व केन्द्र सरकार के प्रस्ताव सामने आए, जिसमें सरदार सरोवर परियोजना की ऊंचाई 425 फीट करने की बात कही गई थी, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार इस पर सहमत नहीं थी।

अन्तत: अप्रैल, 1961 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने इस परियोजना की आधारशिला रखी थी, लेकिन कई तकनीकी और कानूनी अड़चनों के चलते यह परियोजना विवादित रही और अन्ततः वर्ष 1979 में इसकी विधिवत् घोषणा हुई तथा 17 सितम्बर, 2017 को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया।

Sardar Sarovar Dam Project Essay in Hindi
Sardar Sarovar Dam Project Essay in Hindi

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विवाद के मुद्दे

सरदार सरोवर बाँध भारत के इतिहास की सबसे विवादास्पद परियोजना रही है। इसके विवाद के मुद्दे इस प्रकार है 

सरदार सरोवर बाँध के सम्बन्ध में नर्मदा जल विवाद के समय से हो यह तर्क दिया जा रहा है कि कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात के सूखाग्रस्त क्षेत्रों को राहत पहुंचाने के लिए इसका कोई विकल्प नहीं है। इस बाँध के विरोध में मेघा पाटेकर की अगुवाई में ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। आन्दोलनकर्ताओं का कहना था कि इस परियोजना से 5 लाख से ज्यादा लोग बिस्थापित होंगे और क्षेत्र के पर्यावरण तन्त्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

बिडम्बना यह है कि इन क्षेत्रों में नहरों का निर्माण अभी भी अधूरा है। लेकिन यह दावा किया जाता है कि समृद्ध और राजनीतिक-सामाजिक आर्थिक रूप से शक्तिशाली केन्द्रीय गुजरात क्षेत्र में नहरों के जालतन्त्र का निर्माण बहुत पहले पूरा कर लिया गया है, लेकिन यह सत्य नहीं है और परियोजना अपने वास्तविक लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई है।

1980 के दशक में जब इस परियोजना को अनुमति दी गई थी, तो उस समय के अनुमानों पर आधारित सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव से सम्बन्धित परिणामों में बदलाव आ गए। वैज्ञानिकों ने यह भी दलील दी कि बड़े बाँधों के निर्माण से भूकम्प का खतरा भी बढ़ सकता है। साथ ही इस परियोजना से सर्वाधिक प्रभावित लोगों के पुनर्वास का कार्य 80% से अधिक पूरा नहीं हो पाया है।

नर्मदा नदी का 150 किलोमीटर का अनुप्रबाह क्षेत्र अब प्रायः सूखा ही रहेगा। इसके सम्बन्ध में कहा गया है कि 600 क्यूसेक पानी नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में कई किलोमीटर दूर तक छोड़ा जाएगा, लेकिन इसकी प्रामाणिकता के लिए कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है।

यह आकलन भी कर लिया गया कि इस प्रदेश में बढ़ती लवणता की समस्या के हल के रूप में यह परियोजना सहायक नहीं होगी। 

इस परियोजना से नदी के किनारे निवास करने वाले 10.000 परिवारों की आजीविका प्रभावित होने का आकलन है, जबकि कोई भी उनके पुनर्बास और मुआवजे की ओर ध्यान नहीं दे रहा है।

उल्लेखनीय है कि इस बाँध को इसकी पूरी क्षमता के अनुरूप भरा ही नहीं जा सका है। वास्तव में, इस बाँध के जलाशय को पूरी तरह से मरने के लिए लगातार दो मानसून का जल एकत्रित करना होगा और नर्मदा नदी के जल से होने वाले बिजली उत्पादन को 95% तक कम करना होगा। वस्तुतः इस परियोजना में बाँध की ऊंचाई को लेकर भी विवाद रहा है। आरम्भ में इस बाँध की ऊँचाई 80 मी थी, जिसे वर्ष 1999 में उच्चतम न्यायालय ने 8 मी और बढ़ाने का आदेश दिया और उसकी ऊंचाई 88 मी (209 फीट) करने का आदेश दिया, किन्तु आगे चलकर इसकी ऊँचाई में उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली गई।

वर्तमान में इसकी ऊँचाई 138.68 मी (455 फीट) है। बाँध की ऊँचाई बढ़ने से लगभग 45,000 आदिवासी परिवार की पुनर्बास की समस्या है। इस पर सरकार की कोई योजना दिखाई नहीं पड़ती है।

परियोजना से लाभ

यह परियोजना मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के किसानों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इससे कृषि उत्पादन में लगभग 87 लाख टन प्रतिवर्ष वृद्धि का आकलन किया जाता है। इस बाँध से निकाली गई नर्मदा नहर के माध्यम से गुजरात के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को सिंचाई एवं पेयजल हेतु पानी की आपूर्ति की जाती है। राजस्थान के बाड़मेर और जालौर के शुष्क क्षेत्रों में भी सिंचाई और पेयजल के लिए नर्मदा नहर से पानी की आपूर्ति की जाती है। भरुच जैसे जिलों में बाढ़ की स्थिति में सुधार भी हुआ है। वर्तमान में गुजरात सरकार ने सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की घोषणा की है।

वर्तमान स्थिति

इस बाँध की ऊंचाई को 138 68 मी तक बढ़ाया गया है, ताकि बिजली का उत्पादन किया जा सके। इस बाँध के निर्माण के दौरान हुई पर्यावरणीय क्षति की भरपाई करने के लिए वृक्ष लगाए जा रहे हैं। लगभग 1650 हेक्टेयर भूमि को अनिवार्य वनीकरण के लिए चिह्नित किया गया है। सरदार सरोवर परियोजना में रिवर बेड पावर हाउस (1200 मेगावाट) तथा कैनाल हेड पावर हाउस (250 मेगाबाट) नामक दो पावर हाउस शामिल हैं। इस परियोजना के अन्तर्गत मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात को एक अनुपात में बिजली साझा की जाती है। वर्ष 2019 में इस परियोजना से मध्य प्रदेश एवं गुजरात के बीच पानी छोड़ने को लेकर विवाद सामने आया।

गुजराल ने वर्ष 2017 एवं 2018 में कम वर्षा होने के कारण अधिक पानी की माँग की तो मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि वह प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों का पालन करने को तैयार है, लेकिन एकतरफा करार पर आपत्ति जताई। साथ ही कहा कि यदि जलाशय का स्तर बढ़ेगा तो पुनर्वासित लोग और प्रभावित होंगे। इस प्रकार से वर्तमान में भी इसके जल बितरण को लेकर कुछ विवाद देखे जाते हैं। इसके पश्चात् इसकी असंख्य सम्भावनाएँ भी देखी जा सकती है।

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Sardar Sarovar Dam Project Essay in Hindi

निष्कर्ष

भारत के चार राज्यों के लिए महत्त्वपूर्ण सरदार सरोवर परियोजना का वर्ष 1985 से ‘नर्मदा बचाओ’ आन्दोलन विरोध कर रहा है। जिनमें इस क्षेत्र के गरीबों और आदिवासियों के पुनर्वास और वनभूमि का विषय सबसे महत्त्वपूर्ण रहा है।

इस परियोजना से 1450 मेगाबाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जो प्रदूषण मुक्त होगा। यह गुजरात को बाढ़ के खतरे से भी बचाएगा। शूलपानेश्वर, जंगली गधा, काला मृग जैसे वन्य जीव अभयारण्यों को भी इससे लाभ मिलेगा। इसलिए आशा की जाती है कि लागत के अनुरूप इस परियोजना से आगामी पीढ़ी को उत्तरोत्तर लाभ मिलता रहेगा। अतः यदि इस परियोजना द्वारा विस्थापितों का पुनर्वास तथा इसके उद्देश्यों के प्रति व्यक्त की जा रही चिन्ताओं का समाधान हो जाता है, तो यह परियोजना सभी विवादों के पश्चात् काफी लाभकारी सिद्ध होगी।

विविध

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reference
Sardar Sarovar Dam Project Essay in Hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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