विरासत – जातक कथाएँ | Jatak Story In Hindi | Virasat jatak katha in hindi
शायद ही दुनिया में ऐसा कोई इनसान होगा, जिसने गौतम का नाम न सुना हो। ज्यादातर लोग उन्हें बुद्ध के नाम से जानते हैं। इस धरती पर कई बार अध्यात्म की एक बड़ी लहर सी आई है।
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बुद्ध खुद ऐसी ही एक आध्यात्मिक लहर रहे हैं। संभवतः वह धरती के सबसे कामयाब आध्यात्मिक गुरु थे, उनके जीवनकाल में ही उनके साथ चालीस हजार बौद्ध भिक्षु थे और भिक्षुओं की यह सेना जगह-जगह जाकर आध्यात्मिक लहर पैदा करती थी।
बुद्ध ने आठ साल तक एक भिक्षुक का जीवन जिया, जिसकी शुरुआत उन्होंने अपना महल त्यागकर की थी, लेकिन बुद्धत्व मिलने के बाद एक दिन वे अपने महल पहुँचे। यशोधरा ने बच्चे को उनके सामने रखा।
बच्चा लगभग आठ साल का था। उन्होंने बच्चे को बुद्ध के सामने रखते हुए कहा, ‘इसके लिए आपकी क्या विरासत है, आप और आपकी आध्यात्मिकता। आप इसे क्या देकर जाएँगे ?’
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उन्होंने यशोधरा से कहा, ‘देखो, जिस आदमी को तुम जानती थी, उसका अब अस्तित्व नहीं है। मैं सिर्फ इस दायित्व के कारण यहाँ आया हूँ, जिसे मैं पूरा करना चाहता हूँ। मैं तुम्हारा पति नहीं हूँ, न ही इस बच्चे का पिता । मेरा सबकुछ बदल चुका है। हाँ, मैं अब भी उसी शारीरिक रूप में हूँ, मगर मेरे अंदर सबकुछ बदल चुका है ।’उन्होंने लड़के को देखा, फिर अपने शिष्य आनंद को बुलाया और बोले, ‘आनंद, मेरा भिक्षा पात्र लाओ।’
आनंद गौतम का भिक्षा पात्र लेकर आए, जो कुछ खास नहीं, एक मामूली सा कटोरा था। गौतम बोले, ‘मेरी विरासत यही है, यह सबसे बड़ी विरासत है, जो मैं अपने बेटे को सौंप सकता हूँ।’ और उन्होंने वह भिक्षा पात्र अपने बेटे को सौंप दिया।
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