अटल सत्य – जातक कथाएँ | Jatak Story In Hindi | Atal Satya jatak katha in hindi

अटल सत्य – जातक कथाएँ | Jatak Story In Hindi | Atal Satya jatak katha in hindi

एक दिन सिद्धार्थ ने अपने सारथी छेदक को नगर भ्रमण के लिए चलने को कहा, छेदक ने तुरंत राजकुमार के प्रिय घोड़े कंधक को तैयार किया। उस पर राजकुमार को सवार कराकर वह नगर भ्रमण के लिए चल पड़ा।

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राजा शुद्धोधन ने ऐसा प्रबंध कराया था कि राजकुमार को मार्ग में कोई करुणाजनक दृश्य दिखाई न दे, ताकि उसके मन में विरक्ति की भावना उत्पन्न न हो। जिस मार्ग से उन्हें जाना था. उसे स्वच्छ करके सजाया गया था। उस मार्ग पर दोनों ओर सुंदर-सुंदर लड़के-लड़कियाँ खड़े थे। जब सिद्धार्थ उनके पास से गुजरते तो वे उन पर फूल बरसाते।

वंहा दुःख या कष्ट का नाम भी दिखाई नहीं दे रहा था। राजकुमार सिद्धार्थ भी उस समय प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। एकाएक उनकी दृष्टि कहीं दूर उठ गई। एक झुकी हुई कमरवाला वृद्ध व्यक्ति उन्हीं की ओर चला आ रहा था। उसका मुँह झुर्रियों से भरा हुआ था, आँखें अंदर को धँसी हुई थीं। हाथ-पैर काँप रहे थे। वह लाठी का सहारा लेकर बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था।

‘जरा उधर देखो छंदक।’ सिद्धार्थ ने उस वृद्ध की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘उस आदमी की ओर, जिसकी कमर झुकी हुई है। मुझे बताओ। कि उसे क्या हो गया है, वह इतना असुंदर क्यों है, वह ठीक से चल क्यों नहीं पा रहा ?’

Atal Satya jatak katha
Atal Satya jatak katha

*कुमार’ने उतर दिया, ‘यह व्यक्ति बूढ़ा हो गया है। उसकी आयु अधिक हो गई है। अधिक आयु हो जाने पर व्यक्ति ऐसा ही हो जाता है।” तो क्या आयु अधिक हो जाने पर मैं और यशोगरा भो ऐसे ही हो जाएंगे, सिद्धार्थ ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘हम भी बूढ़े हो जाएँगे, हम भी असुंदर हो जाएँगे, हम भी ठीक से नहीं चल पाएँगे ?”

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‘ छंदक ने उत्तर दिया, ‘ऐसा सभी के साथ होता है। बूढ़े हो जाने पर मनुष्य की यही दशा होती है। शरीर इसी प्रकार असुंदर हो जाता है।

सिद्धार्थ की सारी प्रसन्नता छू मंतर हो गई। उन्होंने छेदक को महल लौट बनने की आज्ञा दी। जब बूढ़ा होने से बचने का कोई उपाय नहीं है?

कुछ दिनों बाद अचानक सिद्धार्थ ने पुनः भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। इस बार छेदक एक रथ सजाकर ले आया। रथ पर सवार होकर सिद्धार्थ पुनः नगर की ओर भ्रमण की और चल पड़े।

इस बार छंदक पूरा प्रयास कर रहा था कि राजकुमार को कोई करुणाजनक दृश्य दिखाई न दे, लेकिन जो होना होता है, वह होकर ही रहता है। मार्ग में सिद्धार्थ को एक रोगी व्यक्ति दिखाई दिया, वह रोग के कारण कराह रहा था। सिद्धार्थ ने तत्काल रथ रुकवाया और छेदक से पूछा, ‘इसे क्या हो गया है। यह इस प्रकार कराह क्यों रहा है ?”

‘राजकुमार’, छंदक ने उत्तर दिया, ‘इसे रोग ने घेर रखा है। यह रोग के कष्ट को सहन नहीं कर पा रहा। इसी कारण कराह रहा है।” “परंतु इसे रोग ने क्यों घेर लिया?’ सिद्धार्थ ने आश्चर्य से पूछा?

छंदक ने उत्तर दिया, ‘रोग तो बड़े-बड़े स्वस्थ व्यक्तियों को भी घेर लेता है। उन्हें भी रुला देता है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। अपने जीवनकाल में कोई-न-कोई रोग लगभग प्रत्येक व्यक्ति को हो जाता है।’ ‘ओह ।’ सिद्धार्थ बड़बड़ाए, तो रोग भी मनुष्य को कष्ट पहुंचाते हैं। इनसे भी मनुष्य नहीं बच सकता मैं भी नहीं बच सकूँगा जब मुझे भी कोई रोग हो जाएगा तो मैं इसी तरह दर्द से कराहूँगा।’

छंदक ने रथ को आगे बढ़ाया। थोड़ा आगे चलने पर सिद्धार्थ को एक शव यात्रा जाती हुई दिखाई दी। उन्होंने पुनः छंदक से प्रश्न किया, ‘यह कैसा दृश्य है ? चार व्यक्ति अपने कंधों पर किसे लेकर जा रहे हैं. इनके पीछे कुछ

लोग रोते हुए क्यों जा रहे है ?” ‘राजकुमार।’ छंदक ने उत्तर दिया, ‘यह व्यक्ति मर गया है। यह चारों इसके संबंधी हैं। ये इसके शव को उठाकर श्मशान में ले जा रहे हैं। जो पीछे-पीछे रोते हुए जा रहे है, वे इसके कुटंब के लोग हैं। श्मशान में इस मृतक शरीर को जला दिया जाएगा।’ “यह व्यक्ति मर क्यों गया ?’ सिद्धार्थ ने अगला प्रश्न किया।

छंदक ने कहा, ‘मृत्यु इस संसार का एक अटल सत्य है, मृत्यु ने आज तक किसी को नहीं छोड़ा। कोई भी व्यक्ति किसी भी समय मर सकता है।” यह सुनकर सिद्धार्थ का दिमाग सन्न रह गया। वे ठंडी साँस लेकर सोचने लगे, ‘क्या इसी को जीवन कहते हैं, जिसमें मनुष्य को तरह-तरह के रोग धेर लेते हैं, जिसमें कभी भी मृत्यु का आगमन हो सकता है? मनुष्य जब वृद्ध हो जाता है तो वह दुर्बल और असहाय हो जाता है, उसके शरीर को जलाकर भस्म कर दिया जाता है। क्या जीवन के इन भयानक दुःखों से छुटकारा नहीं मिल सकता, इसका कोई तो उपाय होगा ?

सिद्धार्थ मन-ही-मन ऐसा सोच रहे थे कि तभी उन्हें एक संन्यासी दिखाई दिया, उसने भगवा वेश धारण कर रखा था। साधना और तपस्या के करण उसका मुखमंडल चमक रहा था। उसके होंठ मुसकरा रहे थे। सिद्धार्थ को वह संसार का सबसे प्रसन्न व्यक्ति दिखाई दिया। उन्होंने पूछा, ‘छंदक यह स्वस्थ और तेजस्वी व्यक्ति कौन है ?”

‘यह एक संन्यासी है।’ छंदक ने उत्तर दिया, ‘इसने संसार के सभी सुख त्याग रखे हैं। इसने संयम द्वारा अपनी इंद्रियों को वश में कर रखा है। यह अपने ईश्वर की तपस्या-साधना करता है, इसलिए यह स्वस्थ, निरोग व सुंदर है। तपस्या के कारण ही इसका मुखमंडल चमक रहा है।” सिद्धार्थ को जैसे अपने सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए ।

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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