वक्रतुंड रूप की कहानी | The story of Vakratund | वक्रतुंड और मत्सरासुर की कहानी | गणपति के 8 अवतारों में से एक हैं वक्रतुंड जानें इनकी कहानी, vakratund roop ki kahani
एक बार मत्सर नाम के असुर ने शुक्राचार्य ऋषि से कहां, ” गुरुदेव, मुझे बताइए कि मैं पूरे जगत पर कैसे राज कर सकता हूं? ” शुक्राचार्य ने उत्तर दिया, ” तुम तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न करो और ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करो।”
मत्सर एक पैर पर खड़े होकर कई सालों तक मंत्र का जाप करता रहा। उससे प्रसन्न होकर शिव ने उसे वरदान दिया कि उसे कोई मनुष्य, देवता या असुर नहीं मार सकेगा। मत्सर ने अब तीनो लोको स्वर्ग लोक, पृथ्वीलोक और पाताल लोक पर अधिकार कर लिया।
वह हर किसी को परेशान करने लगा।
उसने शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर भी विजय पाली। सभी देवताओं ने गणेश से सहायता की पुकार लगाई क्योंकि केवल उन्हीं की टेढ़ी सूँड यानी वक्रतुंड ही मत्सर को पराजित कर सकती थी।
अंत में, गणेश ने अपना वक्रतुंड अवतार धारण किया। उन्होंने एक अस्त्र इस्तेमाल किया जिससे मत्सर बंध गया और वह वक्रतुंड से शमा मांगने लगा। वक्रतुंड बोले, ” अगर तुम स्वर्ग लोक और पृथ्वी लोक पर अधिकार छोड़ दो, और किसी को परेशान ना करने का वचन दो तो मैं तुम्हें शमा कर सकता है” मत्सर ने वचन दे दिया तो वक्रतुंड ने उसे शमा कर दिया।
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reference
The story of Vakratund