राजा भर्तृहरि की सम्पूर्ण कहानी | Raja Bharthari Ki Katha | Story of King Bharthari in Hindi | Raja Bharthari Ki Kahani | भर्तृहरि की कहानी
भर्तृहरि उज्जैन के राजा गंधर्व सेन के पुत्र थे। गंधर्व सेन की दो पत्नियां थी। भर्तृहरि पहली पत्नी की संतान थे दूसरी पत्नी से पैदा हुए पुत्र विक्रमादित्य थे।
अपने पिता की मृत्यु के बाद भर्तृहरि राजा बने। उन्हें राजकाज में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने अपने सौतेले भाई विक्रमादित्य को राजकाज सौंप दिया। भर्तृहरि ने अपना समय संगीत पुस्तकों और कला में बिताना शुरू कर दिया। वे बहुत अच्छे कवि और संस्कृत के प्रकांड विद्वान भी थे।
जब विक्रमादित्य ने देखा कि भर्तृहरि राज्य और जनकल्याण के कार्यों मे बिल्कुल दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं तो उन्होंने उनसे बात की भर्तृहरि को गुस्सा आ गया और उन्होंने विक्रमादित्य को राज्य से निकाल दिया।
एक दिन भर्तृहरि हो पता चला कि उनकी पत्नी उसके राजे के एक कर्मचारी से प्यार करती है यह देखकर उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। उन्होंने सारे सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया। उन्होंने सन्यासी का जीवन बिताना शुरू कर दिया।
उन्हें समझ में आ गया कि वह केवल अपने बारे में ही सोचा करते थे। कुछ समय बाद वे सांसारिक कामनाओं से बिल्कुल मुफ्त हो गए और शिव के नाम का जाप करते करते उन्हें शिव तत्व अर्थात आत्मज्ञान प्राप्त हो गया। उन्होंने वेदों का पालन शुरू कर दिया।
भर्तृहरि प्राचीन भारत के सबसे महान ऋषि यों मैं गिने जाते हैं। भारत के कई महान संतों और तपस्वियों ने उनके ज्ञान और विचारों की साराना की है।
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Raja Bharthari Ki Kahani