गुरु भक्त उत्तक की कहानी | Guru Bhakt Uttak Ki Kahani | Motivational Kahani
गौतम ऋषि का एक शिष्य उत्तक बहुत आज्ञाकारी था। गौतम उसे बहुत स्नेह करते थे। उसकी शिक्षा पूरी होने के बाद भी उन्होंने उत्तक को आश्रम से जाने की अनुमति नहीं दी थी। गौतम की सेवा करते करते जब उत्तक काफी बूढ़ा हो गया तो उसने जाने की अनुमति मांगी। गौतम मान गए। उन्होंने उसे फिर से युवा बना दिया और अपनी बेटी का विवाह उससे कर दिया।
जाने से पहले उत्तक ने गौतम की पत्नी से पूछा कि उन्हें गुरु दक्षिणा में क्या चाहिए। गौतम की पत्नी ने उससे कहा कि उन्हें राजा सौदास की पत्नी के कुंडल चाहिए। उत्तक राजा सौदास के पास गया। सौदास एक शाप के कारण नरभक्षी दैत्य का जीवन बिता रहा था।
सौदास की पत्नी ने अपने कुंडल उत्तक को दे दिए। वह सोच रही थी कि शायद यह नेक कार्य श्राप को समाप्त कर देगा। उसने उत्तक को बताया की इन कुंडल को पहनने वाला भूख प्यास से मुक्त हो जाएगा और हर तरह के खतरे से सुरक्षित रहेगा।
लौटते समय उत्तक एक पेड़ के नीचे लेट गया। तभी एक सांप ने वह कुंडल चुरा लिए और अपनी बार्बी में घुस गया। उत्तक ने लकड़ी से बॉबी को खोदना शुरू कर दिया लेकिन सांपों का साम्राज्य उस बॉर्बी में बहुत गहराई में बसा था।
इंद्र ने उत्तक की लकड़ी में अधिक शक्ति देकर उसकी सहायता की। अग्नि देवता भी घोड़े के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सांपों के राज्य में धुआं भर दिया। सांप अपनी जान बचाने के लिए बॉबी से निकल आए और उन्होंने कुंडल उत्तक को वापस कर दिए। उत्तक ने वे कुंडल गौतम ऋषि की पत्नी को भेंट कर दिए।
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Uttak Ki Kahani