ममता बनर्जी जिसने राजीव गांधी के पीछे खड़े रहकर 13 साल में अपनी पार्टी को ‘सुपर पावर’ बनाया

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संविधान के आकार से लेकर लोकतंत्र के निर्माण तक, भारतीय राजनीति में महिलाओं की भूमिका हमेशा से खासी महत्वपूर्ण रही है। फिर चाहे वो देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की बागडोर संभालने वाली सरोजनी नायडू हों, देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में सुचिता कृपलानी या फिर केंद्र की कमान संभालने वाली देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हों।

आजाद भारत से नए भारत तक के इस सफर में महिलाओं का परचम हमेशा से बुलंद रहा है। इसी कड़ी में पिछले एक दशक से बंगाल का दारोमदार संभालने वाली मशहूर राजनीतिक शख्सियत और पश्चिम बंगाल की मुख्मंत्री ममता बनर्जी का भी नाम शामिल है। (mamata banerjee biography)

नाम   ममता बनर्जी
जन्म तिथि                              5 जनवरी 1955
जन्म स्थान                             कोलकाता, पश्चिम बंगाल
माता                                     गायत्री देवी
पिता                                      पर्मिलेश्वर बनर्जी
राजनीतिक पार्टी                     भारतीय तृणमूल कांग्रेस
mamata banerjee

शुरुआती जीवन – कोलकाता में जन्म, यहां पर शिक्षा (mamta banerjee family)

mamata banerjee
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ममता बनर्जी का जन्म बंगाल की राजधानी कोलकाता (कलकत्ता) में 5 जनवरी 1955 (mamata banerjee birthday)को हुआ था। ममता महज 17 साल की थीं, जब उनके पिता पर्मिलेश्वर बनर्जी ने इलाज के अभाव में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

ममता बनर्जी ने 1970 में बंगाल के देशबंधु शिशु शिक्षालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। जिसके बाद उन्होंने इतिहास में स्नातक, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से इस्लामिक इतिहास में मास्टर्स और जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कालेज से कानून की डिग्री हासिल की। (mamata banerjee education)

ममता बनर्जी का राजनीतिक जीवन – 15 साल की उम्र में कांग्रेस का हिस्सा (mamata banerjee political life)

mamata banerjee
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सत्ता की गलियों में ममता की दलचस्पी बचपन से ही थी। शायद यही कारण था कि महज 15 साल की उम्र से ही ममता सियासत में एंट्री करने की कोशिशों में जुट गयीं थीं। इसी समय अपनी पढ़ाई के दौरान ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी से सबंधित छात्र परिषद की नींव रखी और जीत भी हासिल की। इसी के साथ ममता बनर्जी कई स्थानीय पार्टियों से भी जुड़ीं।

कांग्रेस नेता के रूप में ममता बनर्जी (mamata banerjee and congress)

70 के दशक में कांग्रेस का हाथ थाम चुकीं ममता बनर्जी उस दौर के युवा नेताओं में से एक थीं। यह वही समय था जब समाजिक कार्यकर्ता और राजनेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार, बंगाल और गुजरात सहित कई राज्यों ने कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था।

इसी कड़ी में साल 1975 में ममता बनर्जी, जे.पी के खिलाफ आंदोलन के दौरान एक चलती गाड़ी में डांस कर मीडिया की सूर्खियों में आ गयीं और बंगाल की राजनीति में आम पहचान रखने वाली ममता रातों-रात एक जाना-माना चेहरा बन गयीं।

लिहाजा कांग्रेस पार्टी में ममता का कद बढ़ने लगा और 1976 में उन्हें महिला कांग्रेस का उप सचिव नियुक्त कर दिया गया।

ममता बनर्जी – 1984 में बनीं सबसे युवा सांसद

mamata banerjee
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 (mamatabanerjeemp)

साल 1984 में देश में लोकसभी चुनावों का एलान हुआ और इस बार ममता बनर्जी ने राजनीति की मुख्यधारा में शिरकत करने का फैसला किया। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की जाधवपुर सीट को अपना संसदीय क्षेत्र चुना। वहीं इन चुनावों में ममता बनर्जी कम्यूनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार सोमनाथ चटर्जी को भारी मतों से मात देकर देश के युवा सासंदों की फेहरिस्त में शामिल हो गयीं।

इसी साल आम कांग्रेस नेता से संसद तक का सफर तय करने के बाद ममता बनर्जी को भारतीय युवा कांग्रेस का उप सचिव भी नियुक्त कर दिया गया।

ममता बनर्जी ने कोलकाता को चुना संसदीय क्षेत्र (mamata banerjee constituency)

mamata banerjee
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बेहद कम समय में सियासत में शून्य से शिखर तक का सफर तय करने वाली ममता बनर्जी अपना दूसरा आम चुनाव हार गयीं। दरअसल साल 1989 के लोकसभा चुनावों के दौरान देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस कई कारणों के चलते विरोधों का सामना कर रही थीं। जाहिर है कांग्रेस के खिलाफ पनपे इस माहौल का असर आम चुनावों पर पड़ा और कम्यूनिस्ट पार्टी की उम्मीदवार मालिनी भट्टाचार्य ने ममता को मात दे कर जाधवपुर सीट पर जीत हासिल कर ली।

बेशक राजनीति के अखाड़े में ये ममता की पहलीशिकस्त थी, लेकिन ममता हार मानने वालों में से नहीं थीं। लिहाजा ममता ने कोलकाता की दक्षिणी सीट को अपनी अगली संसदीय क्षेत्र चुनने का फैसला किया।

नतीजतन राजनीति का रण बन चुका दक्षिणी कोलकाता ममता का गढ़ बन गया और 1989 के आम चुनावों में जीत का परचम लहराने वाली ममता बनर्जी लगातार सात बार यहां से जीत कर संसद के सदन तक पहुंची।

केंद्रिय मंत्री बनीं ममता बनर्जी (mamata banerjee cabinet minister)

mamata banerjee
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1991 में आम चुनावों का शंखनाद हुआ। इसी समय दक्षिण भारत में एक चुनावी रैली के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या ने समूचे देश को स्तब्ध कर दिया। लिहाजा जनता ने एक बार फिर कांग्रेस का हाथ थामने का फैसला किया और प्रधानमंत्री बने पी.वी.नरसिम्हा राव

बतौर पीएम राव ने अपने मंत्रीमंडल में कई एतिहासिक बदलाव किए। उन्होंने कांग्रेस को पुराने ढर्रे से उतार कर मंत्रीमंडल में कई नए चेहरों को जगह दी और इसी फेहरिस्त में एक नाम ममता बनर्जी का शामिल था।

प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने ममता बनर्जी को केंद्रीय मंत्री नियुक्त करते हुएतीन महत्वपूर्ण मंत्रालयों – मानव संसाधन विकास मंत्रालय, खेल मंत्रालय और महिला बाल विकास मंत्रालय का दारोमदार सौंपा।

ममता बनर्जी ने छोड़ा कांग्रेस का साथ – Mamata bernarjee jivani

ममता बनर्जी कांग्रेस के उन सासंदों में से एक थीं, जो पार्टी के कुछ फैसलों का खुलकर विरोध करतीं थीं। जिसके चलते ममता बनर्जी और कांग्रेस में मतभेद की खबरें आम हो चलीं थीं। इसी कड़ी में ममता बनर्जी ने कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में केंद्र सरकार के खिलाफ होने वाली रैली में हिस्सा लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही।

दरअसल केंद्र के खिलाफ ममता की कड़वाहट का कारण उनका वह प्रस्ताव था, जिसमें उन्होंने देश में खेल को तवज्जो देने की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया और साथ ही 1993 में ममता के बगावती रुख के चलते उन्हें सभी मंत्रालयों के पदभार से मुक्त कर दिया गया।

1996 में ममता बनर्जी ने ‘क्लीन कांगेस’ का नारा दिया। वहीं पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सोमनाथ मित्रा से मतभेदों के चलते ममता ने 1997 में कांग्रेस का साथ छोड़ने का एलान कर दिया।

ममता बनर्जी ने रखी तृणमूल कांग्रेस की नींव (mamata banerjee and tmc)

कांग्रेस छोड़ने के बाद 1997 में ममता बनर्जी ने मुकुल रॉय के साथ मिलकर बंगाल में भारतीय तृणमूल कांग्रेस की नींव रखी। कुछ ही समय में तृणमूल कांग्रेस बंगाल की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गयीं।

इसी बीच ममता बनर्जी एक बार फिर उस वक्त सूर्खियों में आ गयीं जब उन्होंने महिला आरक्षण बिल के खिलाफ विरोध करने के चलते समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को उनका कॉलर पकड़ कर संसद से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

रेल मंत्री बनीं ममता बनर्जी (mamata banerjee railway minister)

1999 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार के साथ दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुई और प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी। तृणमूल कांग्रेस भी इस गठबंधन में शामिल थीं। वहीं ममता बनर्जी भी वाजपेयी मंत्रीमंडल का हिस्सा बनीं और उन्हें रेल मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया।(mamata banerjee bjp)

साल 2000 में बतौर रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अपना पहला रेल बजट पेश किया। इस बजट में ममता ने देश के साथ-साथ अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल को भी न सिर्फ कई सौगातें दी बल्कि ज्यादातर लक्ष्यों को पूरा कर इतिहास रच दिया।

रेल मंत्री के रूप में ममता बनर्जी ने एक साल के अंदर देश में 19 नई ट्रेनों का उद्घाटन किया। जिनमें ज्यादातर ट्रेनें पश्चिम बंगाल से होकर गुजरती हैं।

इसके अलावा उन्होंने दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे और IRCTC में कई नए बदलाव किए। साथ ही नेपाल और बांगलादेश के बीच भी रेल लाइनबहाल की गयी।

यहाँ पढ़ें : ज्योतिरादित्य सिंधिया जीवनी

ममता बनर्जी को मिला कोयला मंत्रालय (mamata banerjee coal and mining minister)

सितंबर 2003 में ममता बनर्जी फिर बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA का हिस्सा बनने के साथ केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल हुयीं। वहीं उन्हें जनवरी 2004 में कोयला और खादान मंत्रालय का दारोमदार सैंपा गया।

हालांकि ममता का मंत्रीपद महज कुछ ही दिनों तक बरकरार था। दरअसल, 2004 के आम चुनावों में बीजेपी को शिकस्त दे कर कांग्रेस एक बार फिर दिल्ली की गद्दी पर काबिज हो गयी।

चुनावी नतीजों का आलम यह था कि, 2004 के आम चुनावों में बीजेपी के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस को भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। ममता बनर्जी की एक सीट छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस के खाते में पश्चिम बंगाल की कोई सीट नहीं थी।

2009 के लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी  का प्रदर्शन (mamata banerjee election results)

2009 के आम चुनावों में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई और ममता ने भी फिर से कांग्रेस का हाथ थाम लिया। वहीं कांग्रेस पार्टी ने ममता बनर्जी को रेल मंत्रालय सौंपने का एलान करते हुए उन्हें तात्कालीन मंत्रीमंडल का सदस्य नियुक्त कर दिया।

बतौर रेल मंत्री ममता बनर्जी ने दूरंतों एक्सप्रेस सहित कई नयी ट्रेनें को हरी झंडी दिखायी और रेलवे में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

वहीं बढ़ते वक्त के साथ न सिर्फ पश्चिम बंगाल में बल्कि समूचे देश में ममता की लोकप्रियता परवान चढ़ने लगी। इसी बीच बंगाल में होने वाले कोलकाता नगर निगम चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने एतिहासिक प्रदर्शन दिखाते हुए जीत का परचम लहराया।

ममता बनर्जी ने छोड़ा रेल मंत्री का पद (mamata banerjee cm candidate)

हालांकि रेल मंत्री के तौर पर ममता बनर्जी का दूसरा कार्यकाल महज दो साल का था। दरअसल 2011 में पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनावों का आगाज हुआ और बंगाल में शुरु हुई इस रेस का हिस्सा बनने के लिए ममता ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। वहीं तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी को अगला रेल मंत्री घोषित किया गया।

हालांकि रेल मंत्री के रूप में ममता बनर्जी का कार्यकाल उस वक्त सवालों के कठघरे में आ गया जब इन्हीं दो सालों में पैसेंजर ट्रेनों को महत्व देने के चलते रेलवे घाटे में जाने लगी।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी (mamata banerjee chief minister of west bengal)

2011 में पश्चिम बंगाल की 277 सीटों पर विधानसभा चुनावों का शंखनाद हुआ और ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस से बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार इन चुनावों में उतरीं।

दशकों तक सत्ता के गलियारों में एक्टिव राजनीतिक शख्सियत रहने वाली ममता बनर्जी अब तक बंगाल का एक जाना-माना चेहरा होने के साथ-साथ लोगों की पसंदीदा हस्ती भी बन चुकीं थीं।

ऐसे में जाहिर है आगामी चुनावीं के नतीजों के साथ बंगाल की तकदीर भी बदलने वाली
थी। लिहाजा इन चुनावों में 184 सीटों के साथ तृणमूल कांग्रेस सूबे की सूबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन कर उभरी, वहीं कांग्रेस को 42 सीटें मिलीं।

पश्चिम बंगाल में इस एतिहासिक जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई और 20 मई 2011 को ममता बनर्जी ने बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।

यहाँ पढ़ें : कबीर दास जीवनी

मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी का कार्यकाल

 बंगाल में काबिज होने के बाद ममता बनर्जी ने राज्य की बदहाल शिक्षा और स्वास्थ व्यवस्था को सुधारने की जिम्मेदारी संभाली। वहीं ममता सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNICEF  ने पश्चिम बंगाल के नाड़िया जिले को देश का पहला शौच मुक्त जिला घोषित किया था।

इसके अलावा मशहूर बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने पश्चिम बंगाल में पूरे साल पोलियो का एक भी मामला दर्ज न होने के कारण ममता सरकार की जमकर सराहना की थी। हालांकि अपने कार्यकाल के दौरान ममता बनर्जी अपने कई बयानों सहित शारदा छोटाला, चिंट फंड घोटाले को लेकर भी खासा चर्चा में रहीं।

ममता बनर्जी दोबारा बनीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री

2016 में एक बार फिर पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों का आगाज हुआ। इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने सारे रिकार्ड तोड़ते हुए राज्य की 293 सीटों में 211 सीटों पर जीत का परचम लहराया और ममता बनर्जी प्रचंड जनमत के साथ दोबारा मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुईं।

इसी के साथ 1962 के बाद तृणमूल कांग्रेस बिना किसी गठबंधन के राज्य में सरकार बनाने वाली पहली पार्टी बन कर उभरी।

ममता बनर्जी की निजी जिंदगी (mamata banerjee life history)

पश्चिम बंगाल में दीदी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी अपने सादगी और मुखर व्यवहार के लिए देश की प्रख्यात सियासी हस्ती बन गयीं। सादी सफेद साड़ी में रहने वाली ममता बनर्जी को पेंटिंग बनाना बेहद पसंद है। हाल ही में ममता बनर्जी द्वारा बनाई गयी पेंटिंग 9 करोड़ में खरीदी गयी थी।(mamata banerjee painting)

सियासी अखाड़े में आरोप-प्रत्यारोप के सिलसिलों के बीच ममता बनर्जी अपनी निजी जिंदगी में कई राजनेताओं के करीब हैं।प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक इंटरव्यू में ममता बनर्जी के बारे में बात करते हुए कहा था कि, “हमारे बीच तमाम राजनीतिक मतभेदों के बावजूद ममता मुझे हर साल अपनी पसंद का कुर्ता और मिठाईंया भेजना कभी नहीं भूलतीं हैं।(mamata banerjee and modi)

ममता की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, 2012 में टाइम मैगजीन ने ममता बनर्जी का नाम दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में शामिल किया था।

Reference-
20 December 2020, mamata banerjee, wikipedia

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