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कृकटट – जातक कथाएँ | Jatak Story In Hindi | kriktat jatak katha in hindi
मिथिला के एक महाराजा की मृत्यु के पश्चात उसके दो बेटों में भयंकर युद्ध और रक्तपात हुआ। अंततः बड़ा भाई मारा गया और छोटा भाई राजा बना। बड़े भाई की पत्नी अपने पुत्र कृकटट को लेकर एक वन में किसी सन्यासी की शरण में रहने लगी।
वही उसने अपने बढ़ते पुत्र को अपने दादा और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरित किया।
16 वर्ष की अवस्था में कृकटट ने पैतृक राज्य प्राप्त करने के लिए धन और सेना इकट्ठा करने की ठानी। अतः उसने सुवर्ण भूमि को प्रस्थान किया किंतु रास्ते में उसका जहाज डूब गया। 7 दिनों तक समुद्र में तैरते हुए उसने किसी तरह अपनी जान बचाई।
आठवें दिन एक देव दूती ने उसे देखा और उसकी हिम्मत की सराहना करती हुई, उसे एक फूल की तरह उठा मिथिला की एक आम्र वाटिका में सुरक्षित लिटा दिया। उसी दिन मिथिला के राजा की मृत्यु हो गई जो और कोई नहीं कृकटट का चाचा ही था।
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जब लोग राजपुरोहित के साथ ढोल बजाते हुए एक नए राजा की खोज में जा रहे थे तो उनकी दृष्टि आम्र वाटिका में सोते कृकटट पर पड़ी। मिथला पुरोहित ने किशोर कृकटट के शरीर पर राजा योग्य कई लक्षण देखे। अतः उसने उसे जगा कर महल में आमंत्रित किया।
महाराज कुमारी सिवली ने उससे कुछ पहेलियां पूछो जिनका जवाब कुमार ने बड़ी बुद्धिमानी से दिया। फिर दोनों की शादी करा दी गई और कृकटट मिथिला का नया राजा बना दिया गया। इस प्रकार कृकटट ने अपने दादा और पिता का राज्य पुन: प्राप्त कर लिया। सिवली से उसे एक पुत्र की भी प्राप्ति हुई।
कालांतर में कृकटट सन्यास को उन्मुक्त हुआ और सिवली की प्रत्येक चेष्टा के बाद भी ग्रस्त जीवन का परित्याग पर सन्यासी बन गया।
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