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dhurt siyar jatak katha in hindi
सत्व ने एक चूहे के रूप में जन्म लिया। वे बड़े बुद्धिमान थे और हजारों चूहों के साथ जंगल में रहते थे। वे इतने बड़े थे कि छोटे जैसे लगते थे। उसी जंगल में एक धूर्त सियार रहता था, वह बड़ा ही दूर्त था और उसकी निगाहें सदैव जंगल के चूहों पर रहती थीं।
वह इन चूहाँ को कई दिनों से खाने की योजना बना रहा था और अंत में एक योजना उसने साधी और वह चूहों की बस्ती के पास गया और सूर्य की ओर मुँह करके एक टाँग के बल खड़ा हो गया।
एक दिन बोधिसत्व भोजन की तलाश में निकले और उन्होंने इस सियार को सूर्य की ओर मुँह किए पाया, जोकि एक टाँग के बल खड़ा था। बोधिसत्व ने सोचा, ‘वह शायद एक संत है, जो एक टाँग के बल खड़ा होकर ध्यानमग्न है।”
बोधिसत्व ने नमस्कार करके उसका नाम पूछा। सियार ने उत्तर दिया, ‘मेरा नाम भगत है।’
चूहे बोधिसत्व ने पूछा, ‘तुम एक टाँग के बल क्यों खड़े हो ?’ सियार ने कहा, ‘यदि मैं चारों टाँगों के बल पर खड़ा हो जाऊँगा तो पृथ्वी मेरा भार सहन नहीं कर पाएगी।
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चूहे बोधिसत्व ने उससे पूछा, ‘किंतु तुमने अपना मुँह क्यों खुला रखा हैं? सियार ने कहा, ‘मैं सिर्फ हवा खाता हूँ, हवा में साँस लेने के लिए और हवा ही मेरा भोजन है।”
चूहे बोधिसत्व ने प्रश्न किया, ‘तुम सूर्य की और मुँह करके क्यों खड़े हो?” सियार बोला, ‘मैं इस तरह से सूर्य की आराधना करता हूँ।” बोधिसत्व सियार की बाते सुनकर बड़े प्रभावित हुए।

अब क्या था, सुबह-शाम चूड़े सियार को प्रणाम करने आने लगे। सियार भी बड़ा खुश क्योंकि उसे लगा कि उसकी योजना सफल होने लगी है। चूहे लाइन लगाकर सियार को प्रणाम करते थे और जब वापस जाने लगते थे।
लाइन के अंतिम चूहे को सियार पकड़कर खा जाता और इस तरह किसी को पता भी नहीं चलता था। धीरे-धीरे चूहों की संख्या कम होती गई। चूहों का मुखिया बेहद परेशान कि आखिर उसके समाज के चूहों की संख्या में लगातार कमी कैसे आ रही थी।
उसने बोधिसत्त से इस बात की चर्चा की। उन्हें सियार पर शक हुआ कि कहीं यह उसकी धोखेबाजी तो नहीं है। एक दिन बोधिसत्व ने सियार की परीक्षा लेने की सोची। बोधिसत्य ने अगले दिन सारे चूहों को आगे जाने दिया और अंत में बोधिसत्व गए।
हमेशा की तरह सियार ने लाइन के आखिरी चूहे बोधिसत्य को दबोचने की कोशिश की, पर बोधिसत्व बहुत तेज गति से निकल गए और जाते जाते पलटकर सियार की ओर मुड़े और कहा, ‘धूर्त सियार, तुम साधु के रूप में मक्कार हो। तुमने संत बनने का नाटक किया।
तुम ढोंगी, पाखंडी और बहुत बड़े धूर्त हो ।’ चूहे यह सब सुन रहे थे। असल सच उनके सामने आ गया था। वे क्रोधित हो गए, फिर समूह में एकत्रित होकर धूर्त सियार पर हमला कर दिया और उसे जंगल से खदेड़ दिया। धूर्त सियार अपने प्राण बचाकर भाग गया।
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