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गाँव में एक पंडितजी रहते थे, पंडितजी नियमित रूप से पूजा पाठ में निमग्न रहते थे। एक दिन पंडितजी ने कोई धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया। पूजा प्रारंभ हुई। गाँव के बहुसंख्यक लोग भी पूजा में भाग लेने के लिए उपस्थित थे।
पंडितजी ने बकरी का एक बच्चा पाल रखा था। जानवरों के बच्चे भी नटखट होते हैं। बकरी का बच्चा भी भाग-दौड़, उछल-कूद करता और बार-बार पूजास्थल में घुसकर पूजा में व्यवधान डालता था।
पंडितजी बकरी के बच्चे की हरकतों से परेशान हो गए। फिर उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने पूजा संपन्न होने तक बकरी के बच्चे को लकड़ी की एक टोकरी से ढक दिया। इस प्रकार उन्होंने अपनी पूजा संपन्न की।
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गाँववाले यह सब देख रहे थे। चूँकि पंडितजी बड़े विद्वान् माने जाते थे और गाँव में उनका बड़ा सम्मान था, इस कारण लोगों ने सोचा कि बकरी के बच्चे को टोकरी से ढकने के पीछे जरूर कोई-न-कोई रहस्य है। शायद यह भी पूजा का ही एक अहम् हिस्सा है।
किसी ने भी पंडितजी से वास्तविकता, इसका कारण जानने की जहमत नहीं उठाई। फिर क्या था, गाँव के सभी लोग, जब पूजा करते तो पंडितजी का अनुसरण करते हुए बकरी के एक बच्चे को लकड़ी की टोकरी से ढककर पूजा संपन्न करते।
जिसके पास बकरी का बच्चा नहीं होता, वह खरीद कर लाता। इस प्रकार गाँव में एक नई परंपरा बन गई।
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