“दुनिया की बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान होता तो सिर्फ संवाद से ही है, युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।”…..ये शब्द हैं देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के।
सुषमा स्वराज भारतीय राजनीति की एक ऐसी महिला शख्सियत थीं जो अपने सहज स्वभाव के कारण विरोधियों को भी अपना कायल बना लेती थीं। वो एक अमन और शांति पसंद राजनेता थीं तो दूसरी तरफ एक प्रखर वक्ता भी।
सुषमा संसद के सदन से लेकर वैश्विक पटल तक सख्ती से अपनी बात रखने में माहिर थीं। उनकी बेबाकी का ही उदाहरण था कि सयुंक्त राष्ट्र अमेरिका की मशहूर पत्रिका ‘वॉल स्ट्रीट जनर्ल’ ने सुषमा को भारत की सबसे पसंदीदा राजनेता का दर्जा दिया था।
नाम (Name) | सुषमा स्वराज |
जन्म तिथि (birth anniversary) | 14 फरवरी 1952 |
जन्म स्थान (birth place) | अंबाला, हरियाणा |
माता (mother) | लक्ष्मी देवी |
पिता (Father) | हरदेव शर्मा |
पति (husband) | स्वराज कौशल |
राजनीतिक पार्टी (Political Party) | भारतीय जनता पार्टी (BJP) |
मृत्यु (Death anniversary) | 06 अगस्त 2019 |
Sushma Swaraj का शुरुआती जीवन
सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 में हरियाणा के अंबाला जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम हरदेव शर्मा और माता का नाम लक्ष्मी देवी था। दरअसल सुषमा स्वराज का परिवार पहले लाहौर में रहता था लेकिन देश के बंटवारे चलते लाहौर पाकिस्तान के हिस्से चला गया और सुषमा के परिवार को हिंदुस्तान आना पड़ा। हालांकि हिंदुस्तान की सरजमीं उनके लिए नई नहीं थी, क्योंकि सुषमा के पिता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कद्दावर नेताओं में से एक थे।
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जाहिर है सुषमा का जन्म एक ऐसे दौर में हुआ था जब देश की महिलाओं ने आजादी के आंदोलनों में भरपूर योगदान तो दिया था, लेकिन देश की मुख्यधारा से जुड़ने की राह अभी भी बहुत दूर थी। ऐसे में सुषमा स्वराज नए दौर की महिला थीं, जिसे न सिर्फ पढ़ने-लिखने का खूब शौक था बल्कि उन्हें तात्कालीन राजनीतिक मुद्दों में भी खासी दिलचस्पी थी। यही कारण था कि वो तर्क-वितर्क में माहिर थीं।
सुषमा ने अंबाला में ही सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक किया। जिसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की। इसी दौरान सुषमा को लगातार तीन साल तक बेस्ट हिन्दी स्पीकर के खिताब से भी नवाजा गया।
Sushma Swaraj की राजनीति में एन्ट्री
70 के दशक में सुषमा स्वराज ने भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में वकालत शुरु की। सुषमा वकालत में ही अपना करियर बनाना चाहतीं थीं। लेकिन किस्मत को तो उन्हें सत्ता के गलियारों से रूबरू करवाना था। लिहाजा वकालत के ही दौरान सुषमा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गयीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात स्वराज कौशल से हुयी, जो मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता जॉर्ज फर्नांडीस के निजी दोस्त थे।
इसी दौरान सुषमा ने स्वराज कौशल (shushma swaraj husband) के साथ शादी के बंधन में बंध गयीं। सुषमा और कौशल स्वराज की एक बांसुरी नाम की बेटी (sushma swaraj daughter) भी है, जिसने लंदन के ऑक्सवार्ड विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की है।
बैहरहाल, 1975 में सुषमा जॉर्ज की कानूनी सलाहकार टीम का हिस्सा बन गयीं। इसी बीच राजनीति की आबो हवा सुषमा को रास आने लगी थी। यह वही दौर था जब देश आपातकाल के साये में था और यहीं से सुषमा ने राजनीति में औपचारिक रुप से कदम रख दिया था। सुषमा उस दौर के कद्दावर नेता जयप्रकाश नारायण के आंदोलनों का हिस्सा बन गयीं थीं। हालांकि आपातकाल खत्म होने के बाद वो भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गयीं।
साल 1977 में केंद्र में जनता पार्टी के आने के साथ ही सुषमा हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हो गयीं। उन्होंने अंबाला कैंट से चुनाव लड़ा और पहली बार राज्य विधानसभा में बतौर विधायक दस्तक दी। इसी के साथ महज 25 साल की उम्र में यह सफलता हासिल करने वाली वो देश की पहली महिला बन गयीं।
अपनी शानदार भाषणशैली और प्रखर वाकपटुता के ही चलते सुषमा हरियाणा की राजनीति का प्रसिद्ध चेहरा बन गयीं थीं। सुषमा को राज्य विधानमंडल में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। साल 1979 में यानी महज 27 साल की उम्र सुषमा को बीजेपी की राज्य अध्यक्ष चुन लिया गया।
इसके बाद साल 1987 में हरियाणा में एक बार फिर बीजेपी सत्ता में आई और इस बार फिर शिक्षा मंत्रासय का दारोमदार सुषमा को सौंपा गया। लिहाजा इतनी कम उम्र में लोकप्रियता के तमाम शिखर छूने वाली सुषमा को साल 1990 में राज्यसभा सदस्य बन गयीं।
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Sushma Swaraj – सक्रिय राजनीति का हिस्सा
90 का दशक बदलाव का दशक था, जिसका असर भारतीय राजनीति पर भी साफ तौर से देखा जा सकता था। साल 1996 में केंद्र में सत्ता डगमगायी। नतीजतन बीजोपी इस बार गंठबंधन के सहारे दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गयी और प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी।
इस समय तक सुषमा न सिर्फ हरियाणा में बल्कि समूचे देश में एक लोकप्रिय शख्सियत बन चुकीं थीं। लिहाजा बीजेपी के सत्ता में आने के साथ ही सुषमा ने भी दक्षिणी दिल्ली से चुनाव जीत कर पहली बार बतौर सासंद लोकसभा में कदम रखा। वाजपेयी के कार्यकाल में उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय सौंपा गया और अब सुषमा कैबिनेट का हिस्सा थीं।
हालांकि कुछ ही समय बाद 1998 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जिसका कारण था दिल्ली में विधानसभा चुनावों की घोषणा। इस चुनावों में सुषमा दिल्ली की मुख्यमंत्री का चेहरा बन कर उतरी थीं। सुषमा का सौम्य व्यक्तित्व दिल्ली की जनता के दिल को छू गया और राजधानी की बागडोर सुषमा के हाथों में आ गयी।

साल 2000 में एक बार फिर देश में लोकसभा चुनावों का शंखनाद हुआ और वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी एक बार फिर दिल्ली की गद्दी काबिज हो गयी। इसी के साथ सुषमा भी दक्षिणी दिल्ली से जीत हासिल कर 12वीं लोकसभी का हिस्सा बन गयीं और एक बार फिर उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय का दारोमदार सौंपा गया। इस दौरान सुषमा ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को सफलता की बुलंदी पर पहुंचा दिया।
13वें लोकसभा चुनावों के दौरान सुषमा ने कर्नाटक के बिल्लारी सीट से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। इन चुनावों में उन्होंने कन्नड़ भाषा में लोगों को संबोधित कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। नतीजतन महज 12 दिन की चुनावी रैलियों से सुषमा ने 358,000 वोट हासिल हुए। हालांकि सुषमा महज 7 फीसदी वोटों से हार गयीं लेकिन कांग्रेस की सालों पुरानी संसदीय सीट की जड़ों को हिलाने में वो पूरी तरह से कामयाब रहीं।
साल 2000 में उन्हें देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सीट से राज्यसभा सदस्य घोषित किया गया। हालांकि यह सीट बाद में उत्तराखंड का हिस्सा बन गयी।
साल 2003 में सुषमा को स्वास्थय मंत्री बनाया गया। अगले ही साल 2004 के लोकसभी चुनावों में काग्रेंस बीजेपी को शिकस्त दे कर सत्ता में आ गयी। लेकिन इस एक साल के कार्यकाल में सुषमा ने देश में स्वास्थय सुधारों की तस्वीर बदल कर रख दी। जिसमें सबसे बड़ा कदम था देश के छह राज्यों -भोपाल (मध्य प्रदेश), जोधपुर (राजस्थान), भुवनेश्वर(ओडिशा), पटना(बिहार), रायपुर (छत्तीसगढ़) और ऋषिकेश (उत्तराखंड) में एम्स अस्पताल की घोषणा।
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2014 में सुषमा का कमबैक
2004 में चुनाव हारने के पूरे 10 साल बाद साल 2014 में बीजेपी भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई और प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी। इन 10 सालों में पार्टी में खासा बदलाव आ चुका था। वाजपेयी राजनीति को अलविदा कह चुके थे, तो अडवाणी पार्टी में रहते हुए भी मुख्य धारा का हिस्सा नहीं थे। ऐसे में न्यू इंडिया और न्यू बीजेपी के साथ तालमेल बैठा कर सक्रिय राजनीति का लोकप्रिय चेहरा बनना बेशक आसान नहीं था। लेकिन यह कमाल भी सुषमा ही कर सकतीं थीं।
लिहाजा सुषमा एक बार फिर पार्टी की वरिष्ठ सदस्य होने के साथ-साथ लोकसभा सांसद बनीं। मोदी सरकार में सुषमा को विदेश मंत्रालय का दारोमदार सौंपा गया और ये जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी संभाली।
हालांकि यह कार्यकाल सुषमा के लिए बिल्कुल आसान नहीं था। बतौर विदेश मंत्री उनके सामने उरी हमला, पुलवामा हमला, पठानकोट हमला और चीन के साथ डोकलाम विवाद सुलझाने जैसी समस्याएं सामने थीं। अमूमन इन परिस्थितियों में पड़ोसी देशों के साथ तालमेल बैठाना संभव नहीं होता लेकिन एक बार फिर यह चमत्कार भी सुषमा ने कर दिखाया।
विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा शांति और अमन की पक्षधर तो थीं लेकिन जरूरत पड़ने पर जवाब देने की कला भी वो बखूबी जानती थीं। उन्होंने न सिर्फ खरे शब्दों में पाकिस्तान को आंतकवाद और बातचीत साथ-साथ न चलने की चेतावनी दे डाली बल्कि दूसरी तरफ चीन के साथ भी बातचीत का सिलसिला जारी रख समस्या का समाधान भी ढूंढ निकाला। सुषमा के शब्दों में –
“एक – दूसरे पर दोषारोपण करके किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता
बल्कि एक साथ होकर होता है”।
अपने कार्यकाल के दौरान सुषमा ने विदेशों में रह रहे कई भारतीयों की हर संभव मदद दी। यही कारण था कि सुषमा की लोकप्रियता न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में परवान चढ़ने लगी थी। वो विदेशों में लोगों की पसंदीदा राजनेती बनने लगीं थी। इस दौरान सुषमा की सबसे बड़ी उपलब्धि अमेरिका के साथ 2+2 संवाद का आगाज था, जिसके तहत हर साल भारत-अमेरिका के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री एक साथ मंच साझा कर तमाम मुद्दों पर बातचीत करेंगे।
अलविदा सुषमा!

साल 2014 से 2019 में अपने शानदार कार्यकाल के कारण सभी को उम्मीद थी कि सुषमा एक बार फिर मोदी कैबिनेट का हिस्सा बनेंगी लेकिन स्वास्थय कारणों के चलते सुषमा ने राजनीति को अलविदा कह दिया।
सुषमा के राजनीति छोड़ने का मलाल पार्टी के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक में था। इस दौरान शायद ही किसी ने सोचा थी कि सुषमा जल्द ही जिंदगी को भी अलविदा कह देंगी।
6 अगस्त 2019 के दिन सुषमा को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन राजनीति का हर दांव जीतने वाली सुषमा जिंदगी से जंग हार गईं और वो हमेशा के लिए दुनिया छोड़ कर चली गयीं। सुषमा के निधन की खबर से देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
सुषमा बेशक इस दुनिया को अलविदा कह गयीं लेकिन उनकी जिंदा दिल शख्सियत हमेशा के लिए भारतीय राजनीति की अनमोल धरोहर बन गयी।
Reference
- 2020, The biography of Sushma Swaraj, Wikipedia
- 2020, सुष्मा स्वराज की जीवनी, विकिपीडिया