आँखों की पुतलियों पर ठहरती नहीं है दिल्ली
हाथ के आईने में रुकते नहीं हैं लोग
फिर भी, दिल्ली जब बुलाती है लोग दौड़े चले आते हैं।
दिल्ली…“देश की राजधानी और दिल वालों का शहर”। अमूमन दिल्ली का जिक्र आते ही जहन में दिल्ली की कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आती है। लेकिन दिल्ली की पहचान इससे कहीं ज्यादा है। सदियों से देश की विरासतों को खुद में समेटे दिल्ली समय के बदलते दौर के साथ हर बदलाव की गवाह रही है। सल्तनत काल से लेकर देश की राजधानी बनने तक हर सियासी बयार यहीं से होकर गुजरी है। दिल्ली गंगा जमुनी तहजीब की अनमोल विरासत है और इसीलिए इसे गालिब का शहर भी कहा जाता है। गालिब की लफजों में-
इक रोज़ अपनी रूह से पूछा, कि दिल्ली क्या है?
तो यूं जवाब में कह गई कि,
ये दुनिया मानों जिस्म है और दिल्ली उसकी जान…।
इतिहास बयां करती दिल्ली
सदियों पुरानी चीजों का जिक्र अमूमन इतिहास के पन्नों में मिलता है लेकिन दिल्ली एक ऐसी अनोखी धरोहर है जो अपना इतिहास खुद बयां करती है। दिल्ली जितनी खूबसूरत है उतनी ही दिलचस्प इसकी दास्तां भी है।
लगभग छठीं शताब्दी ईसा पूर्व दिल्ली का जिक्र महाभारत में मिलता है। महाभारत के अनुसार दिल्ली पांडवो का राजधानी थी, जिसे इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। इंद्रप्रस्थ को आज भी दिल्ली का पुराना नाम कहा जाता है।
5वीं शताब्दी में सम्राट अशोक ने दिल्ली को मौर्य सम्राज्य में मिला लिया। बाद में दिल्ली पर पृथ्वीराज चौहान ने फतह हासिल कर ली। दरअसल अपनी भौगोलिक उपस्थिति के कारण दिल्ली हमेशा से सियासत का केंद्र थी।
यही कारण था उस दौर में दिल्ली पर राज करने की कवायद शासकों का पसंदीदा शौक बन चुका था। इसी फेहरिस्त में एक नाम मोहम्मद गोरी का भी था, जिसने दिल्ली पर आक्रमण कर उसे जीत लिया और दिल्ली का तख्त अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप कर वापस अफगानिस्तान लौट गया।
इस समय तक दिल्ली एक आम शहर से कहीं ज्यादा देश के विशाल साम्राज्यों ‘सल्तनत’ बन चुकी थी। जिसे पहले गुलाम वंश ने निखारा तो बाद में तुगलक और खिलजी वंश के शासकों ने दिल्ली सल्तनत की समृद्धि में चार चांद लगा दिए।
आखिरकार 15वीं शताब्दी में मंगोलो ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया और दिल्ली सल्तन पर मुगलों का अधिपत्य स्थापित हो गया। मुगलों ने दिल्ली पर सबसे ज्यादा समय तक राज किया और यहीं वो शहर था जहाँ से उन्होंने समूचे देश में मुगल साम्राज्य का विस्तार किया। मुगल विरासत इस शहर की अनमोल धरोहर बन गई, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली की वो इमारते हैं, जो आज भी शान-ए-सल्तनत की दास्तां बखूबी बयां करती हैं।
कालांतर में अंग्रेजी हुकुमत के फरमान से लेकर आजादी की हुंकार तक देश में हो रही हर चहल-पहल का केंद्र दिल्ली था। इस दौरान 1857 में हुई आजादी की लड़ाई का पहला शंखनाद दिल्ली की सरजमीं से ही हुआ। हालांकि ब्रटिश हुकुमत ने मुगल सल्तनत की राजधानी दिल्ली को न चुन कर बंगाल की राजधानी कलकत्ता को देश की नई राजधानी घोषित कर दिया।
आजादी की लड़ाई के दौरान दिल्ली चलो, दिल्ली दूर नहीं है जैसे नारे स्वतंत्रता सैनानियों में आम थे। साल 1911 में कलकत्ता में भारी विद्रोह प्रदर्शन के चलते अंग्रेजों ने एक बार फिर से दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया और तब से दिल्ली हमेशा के लिए देश की राजनीतिक, आर्थिक और पारंपरिक विरासत की पहचान बन गई। दिल्ली की इस दास्तां को एक शायर ने क्या खूब कहा है-
चेहरे पर सारे शहर का गर्द-ए-मलाल है,
जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है।
दिल्ली के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद दिल्ली ने अपना महत्व कभी नहीं खोया और शायद यही कारण है दिल्ली आज भी हिंदुस्तान की शान है और गालिब के लफ्जों में देश की जान है।
धरोहरों का शहर (Historical monuments in delhi)
दिल्ली न सिर्फ सियासत बल्कि सासंकृतिक और पारंपरिक विरासत का भी उदाहरण है, जहाँ अलग-अलग समय पर कई सभ्यताओं ने जन्म लिया। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जिसने भी दिल्ली पर राज किया वो हमेशा के लिए दिल्ली का ही होकर रह गया। गुलाम वंश से लेकर मुगल काल तक अनेक शासकों ने दिल्ली को संवारा और अपनी अनूठी संस्कृतियों से इस शहर को नवाजा। यही कारण है आज दिल्ली कई धरोहरों और परंपराओं का समागम है।
यहाँ मौजूद सदियों पुरानी इमारतें (Famous Monuments of delhi sultanate) आज भी अपनी खूबसूरती से राजधानी की सुंदरता में चार चाँद लगा देती हैं, जिनका लुत्फ उठाने के लिए देश-विदेश से पयर्टक खिचें चले आते हैं। वर्तमान में देश की राजधानी दिल्ली एक मशहूर टूरिस्ट स्पॉट(delhi monuments name) भी है।
कुतुबमीनार – Qutub Minar
लाल बलुआ पत्थर से बनी यह 5 मंजिला इमारत दिल्ली की शान है। इसका निर्माण गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने शुरु कराया था, जिसे बाद में अगले शासक इलतुतमिश ने पूरा कराया। दिल्ली के मोहाली में स्थित कुतुबमीनार का दीदार खासा दिलचस्प होता है। इस एतिहासिक धरोहर को साल 1993 में UNESCO ने अपनी विश्व विरासत धरोहर का दर्जा दिया है।

इसके अलावा कुतुब परिसर में ही स्थित अलाई दरवाजा और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद भी बेहद खूबसूरत है। यहां स्थित लोह स्तंभ (Iron Pillar) अनोखी कारिगरी है। इसकी खासियत यह है कि लगभग ढाई हजार साल पहले बना यह स्तंभ कुतुब परिसर के केंद्र में होने के बावजूद भी उतना ही चमकता है और इसमें जंग का नामो निशान नहीं है। माना जाता है कि यह स्तंभ मौर्य साम्राज्य के पहले शासक चमद्र गुप्त मौर्य ने बनवाया था।
- पता – मेहरौली
- मेट्रो स्टेशन – कुतुबमीनार मेट्रो स्टेशन
- टिकट – 35 रुपए ( भारतीय पयर्टक), 500 रुपए (विदेशी पयर्टक)
लाल किला – Red Fort
लाल किले का निर्माण सन् 1638 में मुगल बादशाह शाहजहां ने यमुना नदी के किनारे पर करावाया था। लाल बलुआ पत्थर से बनी यह इमारत मुगलिया सल्तनत (famous monuments of India) के शाही अंदाज को बहुत बारीकी से बयां करती है। मुगल स्थापत्य कला लाल किले परिसर की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है। दरअसल लाल किले के निर्माण के बाद ही शाहजहां ने मुगल सल्तनत की राजधानी आगरा से दिल्ली स्थापित कर ली थी।

लाल किले का महत्व इसके असतित्व में आने के बाद से वर्तमान काल तक जस का तस बना हुआ है। एक जमाने में मुगल सल्तनत की शान रही यह इमारत आज देश की पहचान है। हर साल 15 अगस्त को लाल किले की ही प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री समूचे देश को संबोधित करते हैं। UNESCO ने लाल किले को साल 2007 में विश्व धरोहर के खिताब से नवाजा है।
- पता – नेताजी सुभाष चंद्र बोस रोड, चांदनी चौक
- मेट्रो स्टेशन – चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन
- टिकट – 35 रुपए ( भारतीय पयर्टक), 500 रुपए (विदेशी पयर्टक)
हुमायुं का मकबरा – Humayun ka Maqbara
साल 1526 में बनी यह इमारत पारसी स्थापत्य कला का खूबसूरत उदाहरण है। इसका निर्माण बादशाह अकबर ने अपने मरहूम पिता हुमायुं की याद में करवाया था। दरअसल लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बना यह मकबरा मुगल काल की पहली गुंबदनुमा इमारत है। यही नहीं ताज महल का निर्माण भी इसे मकबरे की तर्ज पर कराया गया है।

- पता – मथुरा रोड, निजामुद्दीन दरगाह के निकट
- मेट्रो स्टेशन – इंद्रप्रस्थ मेट्रो स्टेशन और प्रगति मौदान मेट्रो स्टेशन
- टिकट – 35 रुपए ( भारतीय पयर्टक), 500 रुपए (विदेशी पयर्टक)
राजघाट – Rajghat
राजधानी में स्थित राजघाट राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का समाधि स्थल है। काले पत्थर से बनी महात्मा गांधी की समाधि पर हमेशा एक ज्योति जलती रहती है। इसी के साथ इसी परिसर में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नहरु की भी समाधि मौजूद है, जिसे शांतिवन के नाम से जाना जाता है। राजघाट परिसर में जूते-चप्पल पहन कर जाना भी निषेध है।

- पता – दरयागंज, दिल्ली
- मेट्रो स्टेशन – दिल्ली गेट मेट्रो स्टेशन
- प्रवेश – मुफ्त
जतंर मतंर – Jantar Mantar
जतंर मतंर का निर्माण जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वारा सन् 1724 में कराया गया था। जतंर मतंर उस दौर के उन्नत ज्योतिषशास्त्र का बेहतरीन उदाहरण है, जो गृहों की चाल और समय को बिल्कुल सटीक तरह से दर्शाता है। ज्योतिषशास्त्र में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए जंतर मतंर सबसे बेहतरीन जगह साबित हो सकती है।

- पता – संसद मार्ग, दिल्ली
- मेट्रो स्टेशन – पटेल चौक मेट्रो स्टेशन
- टिकट – 50 रुपए (भारतीय), 200 रुपए (विदेशी पयर्टक)
इंडिया गेट – India Gate
इंडिया गेट का निर्माण साल 1920 में पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद शुरु कराया गया था, जो 1933 में बनकर तैयार हुआ। दरअसल पहले विश्व युद्ध में शहादत को गले लगा चुके लाखों सैनिकों की याद में इस खूबसूरत इमारत को बनाया गया था। राजधानी की सबसे मशहूर सड़क राजपथ इंडिया गेट को राष्ट्रपति भवन से जोड़ती है। वर्तमान में इंडिया गेट खासा पसंदीदा पिकनिक स्पॉट है, जिसकी आबो हवा का लुत्फ उठाने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।

- पता – राजपथ, दिल्ली
- मेट्रो स्टेशन – केंद्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन
- प्रवेश – मुफ्त
लोटस टेंपल – Lotus Temple
लोटस टेंपल राजधानी की सबसे खूबसूरत और अनोखी इमारतों में से एक है। लोटस टेंपल परिसर शांत वातावरण के चलते पयर्टकों की पसंदीदा जगह है, जहां लोग घंटो तक ध्यानमग्न रहते हैं। यह इमारत कमल के फूल के आकार की है, जिसमें 27 कमल की पंखुड़ियों की आकृति बनी हुई है।

- पता – ओखला, दिल्ली
- मेट्रो स्टेशन – कालका जी मेट्रो स्टेशन
- प्रवेश – मुफ्त
गुरुद्वारा बंगला साहिब – Sri Bangla Sahib Gurudwara
बंगला साहिब दिल्ली का सबसे मशहूर गुरुद्वारा है। पहले यह गुरुद्वारा महाराजा जय सिंह का महल था, जिसे जयसिंहपुरा के नाम से जाना जाता था। लेकिन साल 1783 में सिखों के आठंवे गुरु, गुरु कृष्ण की मृत्यु के बाद इस महल को एक खूबसूरत गुरुद्वारे में तब्दील कर दिया गया। बंगला साहिब पर निर्मित स्वर्णिम गुंबद इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगा देता है। इसके साथ ही गुरुद्वारा परिसर में स्थित सरोवर आस्था के पवित्र कुंड का प्रतीक है।

- पता- हनुमान रोड, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली
- मेट्रो स्टेशन – कनॉट प्लेस मेट्रो स्टेशन
- प्रवेश – मुफ्त
स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर – Akshardham Temple
यह मंदिर देश के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है, जिसे गुजरात के मशहूर अक्षरधाम मंदिर की तर्ज बनाया गया है। पंचशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर आधारित यह मंदिर साल 2005 में बन कर तैयार हुआ था, जो स्वामीनारायण के जीवनवृतांतो को बेहद खूबसूरत स्थापत्य कलाओं के द्वारा प्रतिबिंबित करता है। शाम के समय अक्षरधाम परिसर में होने वाला ‘वॉटर शो’ पयर्टकों में खासा मशहूर है।

- पता – अक्षरधाम सेतु, नई दिल्ली
- मेट्रो स्टेशन – अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन
- प्रवेश – मुफ्त
इस्कॉन मंदिर – Iskon Temple
भगवान कृष्ण और राधा को समर्पित इस मंदिर को श्री राधा पार्थसारथी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर देश के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है, जिसका उद्घाटन 4 अप्रैल 1998 में तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा किया गया था। यह मंदिरों भारतीय वैदिक संस्कृति की अनूठी झलक प्रस्तुत करता है, जिसका दीदार करने के लिए देश-विदेश से पयर्टक राजधानी आते हैं।
खासकर कृष्ण जन्माष्टमी के दिन इस मंदिर की भव्यता भक्तों के दिल पर दस्तक देती है। इस्कॉन मंदिर में भगवत गीता, रामायण, महाभारत और भागवत पुराण पर आधारित कई कार्यक्रमों में वैदिक कथाओं और संस्कृतियों को खासे दिलचस्प तरीके से पेश किया जाता है।

- पता – हरि कृष्णा हिल्स, पूर्वी कैलाश, नई दिल्ली
- मेट्रो स्टेशन – नेहरु प्लेस मेट्रो स्टेशन
- प्रवेश – मुफ्त
“ये शहर नहीं महफिल है”
देश की राजधानी दिल्ली जायकेदार खाने के लिए भी खासी मशहूर है। शाही दस्तरखान से लेकर स्ट्रीट फूड तक दिल्ली की गलियों की शान है। एक तरफ जहां आज भी शाही मुगलिया मसालों की महक लोगों को अपनी तरफ खींच लाती है तो दूसरी तरफ दिल्ली ने वेस्टर्न खाने को भी तहे दिल अपनाया है, जिसका उदाहरण दिल्ली की वो गलियां है जिनके हर चौक पर इटैलियन और चाइनीज फूड का मेला लगा रहता है।
यही नहीं राजधानी दिल्ली की गलियों में बिहार का बाटी चोखे से लेकर दक्षिण का डोसा, गुजरात के ढोकले और महाराष्ट्र की पाव भाजी तक समूचे देश के खानों का स्वाद चखने को मिलता है।
हालांकि इसके अलावा भी दिल्ली का नाम कुछ लजीज पकवानों में शुमार है। इस फेहरिस्त में पहला नाम है चांदनी चौक के लजीज पराठों का…वैसे तो पराठे हर जगह मिलते हैं लेकिन यहां के स्वादिष्ट पराठों की दिवानगी कुछ इस कदर है कि चांदनी चौक की एक गली का नाम ही ‘पराठे वाली गली’ पड़ गया है।
इसके अलावा चांदनी चौक में मिलने वाली मशहूर ‘दौलत की चाट’ का अनोखा स्वाद तो शायद ही किसी के दिल को नहीं छूता होगा। यह चाट जितनी लजीज होती है उतना ही अद्भुत होता है इसे बनाने का तरीका।
वहीं गोल गप्पे, छोल् भटूरे, छोले कुलचे, बिरयानी, आलू टिक्की दिल्ली वालों के पसंदीदा फास्ट फूड हैं, जिनकी महक राह चलते लोगों को भी अपनी तरफ खींच लाती है। और इसी के साथ दिल्ली एक फिर लोगों के दिल को छू जाती है। आखिरकार किसी ने दिल्ली के बारे में बहुत खूब कहा है- “ये शहर नहीं महफिल है”