- १. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – सुबह उठने का योग्य समय
- २. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – दंतधवन, दाँत साफ़ करना
- ३. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – बेहतर दृष्टि के लिए अंजन (काजल) का दिनचर्या में समावेश
- ४. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – अभ्यांग / तेल मालिश का दिनचर्या में महत्व
- ५. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – व्यायाम का दिनचर्या में महत्व
- ६. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – उद्वर्तन (पाउडर मालिश)
- ७. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – स्नान
- ८. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – आयुर्वेद अनुसार निद्रा की मात्रा एवं समय
आयुर्वेद ने हमेशा रोगिओं के इलाज के साथ साथ स्वस्थ लोगो के स्वास्थ्य की रक्षा पर भी उतना ही ध्यान दिया है। सही स्वास्थ्य को प्रेरित करने और रोगों से बचने के लिए आयुर्वेद में कई तौर तरीके बताए गए है।आयुर्वेद अनुसार सही दिनचर्या का पालन करके आप उत्तम स्वास्थ्य एवं लंबी आयु प्राप्त कर सकते है। आधुनिक विज्ञान ने भी यह बात का स्वीकार किया है की दिनचर्या का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। दिनचर्या का उल्लेख आचार्य वाग्भट्ट द्वारा रचित अष्टांग हृदय में किया गया है।
१. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – सुबह उठने का योग्य समय
दिनचर्या का उल्लेख करते हुए आचार्य वागभट्टजी ने अष्टांग हृदय में बताया है की स्वास्थ्य व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए। आयुर्वेद अनुसार रात्रि के अंतिम प्रहर मतलब सूर्योदय से पहले के १ घंटा और ३६ मिनिट्स को ब्रह्म मुहूर्त माना जाता है। कहा जाता है की इस काल में उठने से बुद्धि, बल, सौंदर्य और स्वास्थ प्राप्त होते है। इस समय दौरान वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा अधिकतम और प्रदूषण की मात्रा न्युन्यतम होती है, जिसकी वजह से वातावरण शुद्ध होता है।
ब्रह्म मुहूर्त में उठने के फायदे
दिनचर्या की शुरुआत हमेशा ब्रह्म मुहूर्त में उठने से की जाती है। ब्रह्म मुहूर्त को अध्ययन करने का उत्तम समय है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने पर मन में ताज़गी एवं तंदुरस्ती होती है और वातावरण में अधिक ऑक्सीजन की वजह से अध्ययन की गयी बातें जल्दी याद रह जाती है। ब्रह्म मुहूर्त दौरान व्यायाम करने से भी शरीर को श्रेष्ठ ऑक्सीजन प्राप्त होता है एवं ऊर्जा मिलती है।
२. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – दंतधवन, दाँत साफ़ करना
आयुर्वेद अनुसार अधिकतम रोगों की उत्पत्ति पाचनतंत्र की ख़राबी की वजह से होती है। मुख पाचनतंत्र का सबसे पहला अवयव है। इसीलिए मुख और दाँतों का सफाई अनिवार्य है। आयुर्वेद अनुसार दिन में दो बार, सुबह शौचक्रिया के बाद और शाम को खाने के बाद दाँतों की सफाई करनी चाहिए। दाँतों की सफाई तुरे, तीखे और कड़वे स्वाद में प्राधन्य दातुन से करनी चाहिए। आक, बरगद, नीम, करंज आदि के दातुन किये जा सकते है।
दातुन की लम्बाई आयुर्वेद अनुसार १२ अंगुली होनी चाहिए जो की तकरिब्बन २१ से.मी के आसपास होता है। दातुन के अगले हिस्से को दाँतों से चबाकर ब्रश की तरह बना देना चाहिए और उससे मसूड़ों को हानि न हो उस तरह से दाँतों को साफ़ करना चाहिए। त्रिकटु, लंबी मिर्च और काली मिर्च, दाल चीनी, इलाइची, तेजपत्ता और तेजोवटी के पावडर को शहद और सैंधव नमक के साथ मिलकर दातुन के साथ उपयोग करना चाहिए। दातुन का उपयोग करके उसे फेक देना चाहिए और हमेशा नए दाँतुन से ही दाँत साफ़ करने चाहिए।
दंतधवन से जीभ तथा दाँतों को गंदी बदबू, निरसता तथा गंदगी से छुटकारा मिलता है और मुँह में ताज़गी आती है। आरोचक (जिन्हे खाने का मन नहीं करता) से पीड़ित मरीज़ों को दिन में दो बार दातुन करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा कुछ विशिष्ट दातुन से दाँत साफ़ करने से कुछ विशिष्ट लाभ होते है जैसे की आम के पेड़ की टहनी से दातुन करने से स्वास्थ्य में बढ़ौतरी होती है, शिरीष की टहनी से दातुन करने से सौभाग्य, दीर्घ और स्वस्थ आयु की प्राप्ति होती है।
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३. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – बेहतर दृष्टि के लिए अंजन (काजल) का दिनचर्या में समावेश
अंजन आयुर्वेदिक औषधिओं से बना होता है और गाढ़ा होता है। इसे हिंदी में काजल भी कहते है। आयुर्वेद दिनचर्या में नेत्र की दृष्टि को बढ़ाने के लिए और नेत्र रोग से बचने के लिए अंजन का उल्लेख किया गया है। आयुर्वेद में नेत्र को तेज / रौशनी का स्थान माना गया है जिसको श्लेष्म / कफ से खतरा होता है। इसीलिए,आँखों की अग्नि को श्लेष्म / कफ से बचाने के लिए अंजन (काजल) का प्रयोग दिनचर्या में बताया गया है। काजल ना ही केवल दृष्टि को बढ़ाता है पर आँखों का सौंदर्य भी बढ़ाता है। बाल्यावस्था में शरीर में कफ दोष प्रबल होता है इसीलिए बच्चों में अंजन करने का महत्व अधिकतम होता है।
सौवीर अंजन
आयुर्वेद अनुसार सौवीर अंजन का प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए। सौवीर अंजन माना जाता है की सौवीर पर्वतों से प्राप्त होता है। वह धुएँ जैसे रंग का होता है। और किसी भी आयुर्वेदिक स्टोर पर आसानी से मिल जाता है। इसे निम्बू के रस में ७ बार अच्छी तरह से घोंटकर बारीक़ पेस्ट बना ले। अब उसे उंगलियों के द्वारा आँखों में लगा ले। सौवीर अंजन का प्रयोग प्रतिदिन करने से आँखों रौशनी प्रज्वलित होती है एवं आँखों की बीमारियों की संभावना कम हो जाती है।
रस अंजन
आयुर्वेद दिनचर्या में सप्ताह में एक बार रसांजन का प्रयोग भी बताया गया है। रस अंजन दारुहरिद्रा तथा गाय के दूध में से बनाया जाता है। एक भाग दारूहरिद्रा को ३ भाग गाय के दूध में उबालकर अंजन तैयार किया जाता है। रसांजन के प्रयोग से आँखों में से कफ स्त्राव होता है। रसांजन का प्रयोग मोतियाबिंद में भी असरकारक है क्योंकि मोतियाबिंद कफ की बीमारी होती है।
अंजन के प्रयोग के बाद नास्य (अनु नासिक में औषधीय द्रव का प्रयोग), गण्डूष (कुल्ला), धूम (औषधीय धुएँ का श्वास द्वारा सेवन) एवं ताम्बूल (नागरबेल के पत्ते को चबाना) का वर्णन किया गया है।
४. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – अभ्यांग / तेल मालिश का दिनचर्या में महत्व
आयुर्वेद दिनचर्या अनुसार अभ्यांग / औषधीय तेल मालिश करने से शरीर में वात दोष का शमन होता है। वृद्धावस्था में शरीर में वात दोष प्रबल होता है इसीलिए वृद्धावस्था में अभ्यांग का महत्व अधिकतम होता है। अभ्यांग प्रतिदिन करना चाहिए। अभ्यांग को ख़ास करके कान, मस्तिष्क और पैरों पर अच्छे से करना चाहिए। सामान्य वात दोष की वृद्धि से पीड़ित मरीज़ों के लिए अभ्यांग एक रामबाण इलाज है।
अभ्यांग के फायदे
अभ्यांग / तेल मालिश का दिनचर्या में समावेश करने से कई फायदे होते है जैसे की:
- विलम्बित वृद्धावस्था
- वात दोष का शमन (शारीरिक पीड़ा कम होती है)
- बेहतर दृष्टि की प्राप्ति
- शरीर के धातुओं को पोषण
- अच्छी नींद
- रक्त प्रवाह में वृद्धि
- त्वचा में निखार
- माँसपेशिओ का पोषण
अभ्यांग कब नहीं करना चाहिए
जब शरीर में कफ की मात्रा अधिक हो तब अभ्यांग नहीं करना चाहिए। जिन्होंने शोधन क्रिया की हो अथवा जो लोग अपच से पीड़ित हो उन्हें अभ्यांग नहीं करना चाहिए।
५. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – व्यायाम का दिनचर्या में महत्व
आयुर्वेद अनुसार हर स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम करने से शरीर में हल्कापन एवं ताज़गी का अनुभव होता है। व्यायाम करने से शरीर में से अतिरिक्त चरबी का भी नाश होता है एवं रक्त संचार बढ़ता है। बच्चे, बूढ़े, दुर्बल, वात पित्त दोष एवं अपच से पीड़ित लोगों को व्यायाम नहीं करना चाहिए। सर्दी की ऋतु में अधिक व्यायाम करना चाहिए और बाकी ऋतुओं में हल्का व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम करने के बाद शरीर के सभी अंगों का तेल से मालिश करना चाहिए।
अत्यधिक व्यायाम के लक्षण
व्यायाम हमेशा अपनी बल और शक्ति अनुसार करना चाहिए। अत्यधिक व्यायाम से शरीर में वात दोष का प्रकोप होता है और कई लक्षण देखने को मिलते है जैसे की:
- अति तृष्णा
- दुर्बलता
- श्वास लेने में कष्ट
- थकान
- बुखार
- उलटी होना
६. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – उद्वर्तन (पाउडर मालिश)
उद्वर्तन में सुगन्धित एवं औषधीय द्रव्यों के पाउडर का लेप बनाकर शरीर पर मालिश करते है जिससे शरीर से दुर्गंध दूर होती है और अच्छी सुगंध की वजह से मन प्रसन्नित होता है। उद्वर्तन का समावेश दिनचर्या में भी किया गया है। इसे उबटन भी कहते है जिसकी गणना सोलह श्रृंगारो में भी की जाती है। उबटन का उपयोग पुराने ज़माने में मुख्य रूप से त्वचा को निखारने के लिए किया जाता था। उबटन बनाने के लिए चंदन, हल्दी, बादाम, नीम आदि का उपयोग किया जाता है।
उद्वर्तन के फायदे:
उबटन का समावेश दिनचर्या में करने से कई फायदे होते है जैसे की:
- कफ का शमन होता है
- चरबी कम होती है
- त्वचा मुलायम एवं चमकदार होती है
- शरीर में स्थिरता आती है
- सौंदर्य प्रदान होता है
७. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – स्नान
आयुर्वेद दिनचर्या में स्नान को काफी महत्व दिया गया है। स्नान करने से शरीर भिन्न प्रकार की बाहरी अशुद्धियाँ से मुक्त हो जाता है। रोगों से दूर रहने के लिए स्वच्छता अत्यावश्यक है। आयुर्वेद में स्नान करने के कई फायदे बताये गए है जैसे की:
- दुर्गंध दूर होती है
- पाचनक्रिया की उन्नति होती है
- खुजली कम होती है
- बल बढ़ता है
- थकान कम होती है
- रक्त का शोधन होता है
- शरीर शुद्ध होता है
आयुर्वेद अनुसार शरीर पर गरम पानी डालने से शरीर में बल बढ़ता है परंतु वही गरम पानी अगर सिर पर डाला जाए तो दृष्टि का बल एवं बालों का घटाव होता है।
स्नान किसे नहीं करना चाहिए
जो व्यक्ति चेहरे के पक्षघात, कान, नाक और गले के रोग, दस्त, वायु, अपच आदि रोगों से पीड़ित हो उन्हें स्नान नहीं करना चाहिए। याद रखे कभी खाने के तुरंत बाद भी स्नान नहीं करना चाहिए।
८. आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या – आयुर्वेद अनुसार निद्रा की मात्रा एवं समय
ग्रीष्म ऋतु के अलावा सभी ऋतु में ६-८ घंटे की नींद पर्याप्त होती है। आयुर्वेद में दिन में सोने का विरोध किया गया है। दिन में सोने से शरीर में कफ दोष की वृद्धि होती है। सामान्य तौर पर बढे हुए वात का शमन करने के लिए दिन में सोने की सलाह दी जाती है। रात्रि के ८ से १० बजे के समय को, जब कफ दोष प्रबल होता है, सोने के लिए उचित समय माना जाता है और सूर्योदय से पहले, जब वात दोष प्रबल हो, उठ जाना चाहिए।
निद्रा के फायदे
- वात दोष का शमन होता है
- शारीरिक तथा मानसिक थकान दूर होती है
- नई ऊर्जा का संचय होता है
- सम्यक विकास होता है
यहाँ उल्लेखित मुद्दों के अतिरिक्त आयुर्वेद दिनचर्या में कई और मुद्दे का समावेश होता है जिसका वर्णन नीचे किया गया:
- भोजन हमेशा सीमित मात्रा में, अगले भोजन के पाचन होने के बाद ही करना चाहिए।
- धार्मिकता के बिना कोई सुख नहीं है, इसलिए सभी को धार्मिकता के मार्ग पर चलना चाहिए।
- दोस्तों के साथ अच्छी भावना के साथ रहना चाहिए।
- हिंसा, चोरी, डकैती, असत्य बोलना, झगड़ा करना, गैर बर्ताव करना, ईर्षा आदि पापों से दूर रहना चाहिए।
Reference
- Wikipedia: आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या
- Wikipedia Hindi: आयुर्वेदा के अनुसार दिनचर्या