Dalhousie : Treasury of Himachal- डलहौजी : हिमाचल का खज़ाना

जब भी पहाड़ों की बात आती है तो एक अजीब सी हलचल मचने लगती है। एक अजीब सी शांति और सुकून का एहसास होता है, पहाड़ों की वादियों में। दिल जैसे हिलोरे मारता है और बस अपना लेता है पहाड़ों की आबोहवा को। हिमाचल प्रदेश को देवभूमि बोला जाता है, और इसके पहाड़ों के बीच बसा है, एक ऐसा अद्भुत और मनमोहक स्थान जो प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है।

मैं बात कर रहा हूं डलहौजी की। यहां का वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। और शायद इसीलिए इसको भारत का स्विट्जरलैंड बोलते हैं। हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक यहां गर्मी से निजात पाने और छुट्टियां बिताने के लिए आते है। कहने को तो यह आम हिल स्टेशन की तरह ही है लेकिन यहां आप जो अनुभव करेंगे वो सबसे अलग और अनूठा होगा।

अंग्रेज़ गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी द्वारा सन, 1854 में इस शहर की स्थापना की गई। धीरे धीरे इसने प्रसिद्धि प्राप्त करना शुरू किया और आज यह हिमाचल प्रदेश का एक मुख्य आकर्षण है। मैं तो अपनी पहली डलहौजी यात्रा को लेकर काफी उत्सुक था। ट्रेन के माध्यम से एक शाम मैं पठानकोट रेलवे स्टेशन पहुंचा, जो डलहौजी का निकटतम रेलवे स्टेशन है। वहां शाम को कैब ली और चल पड़ा एक नए सफ़र पर। अभी कुछ किलोमीटर ही चला था कि बारिश ने दस्तक दी, कैब की विंडो पर बारिश की बूंदे मोती लग रही थी।

किसी तरह रात में डलहौजी पहुंचा, होटल में चेक इन किया और सो गया। अगले दिन सुबह रूम का दरवाजा खोलते ही एक ऐसा नज़ारे ने मेरा स्वागत किया कि दिल गदगद हो गया।

Major places to visit- घूमने वाली प्रमुख जगहें

प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर होने के कारण यहां घूमने की इतनी जगहें है कि आपको अच्छा खासा वक़्त निकाल के आना पड़ेगा। फिर भी मैं कुछ प्रमुख आकर्षणों की चर्चा करूंगा।

Khajjiar- खज्जियार

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असल में अगर डलहौजी को भारत का स्विट्जरलैंड बोला जाता है तो खज्जियार की वजह से। देवदार और चीड़ के पेड़ों से घिरा हुआ और पीछे की तरफ बर्फ से ढका हुआ हिमालय और एक खुला मैदान आपको विदेश में होने जैसा अनुभव देगा। साथ ही पास में स्थित खज्जियार झील तो इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है। दोस्तों और परिवार के साथ पिकनिक मनाने का ये एक बहुत ही अच्छा स्थान है। मुख्य डलहौजी शहर से इसकी दूरी लगभग 20 किमी है। कैब और टैक्सी की सहायता से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

Daikund Peak- दाईकुंड चोटी

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समुद्र तल से 2755 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दाईकुंड चोटी को सिंगिंग हिल्स भी बोलते हैं क्यों कि यह एक ऐसा स्थान है जहां एक सन्नाटा सा छाया रहता है और पंछियों को मीठी आवाज़ में गाते हुए सुना जा सकता है। ऊंचाई से चेनाब, रावी और ब्यास नदी के अद्भुत संगम को देखा जा सकता है। वास्तव में यह एक मनमोहक प्रस्तुति दे रही है। मेरा तो दिल किया कि यही पर ही अपना आशियाना बना लूं। यहां आप ट्रेक्किंग, कैंपिंग आदि कर सकते हैं।

Kalatop Wildlife Century- कालाटॉप वाइल्डलाइफ सेंचुरी

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61 वर्ग किलोमीटर की क्षेत्र में फैला कालाटॉप वाइल्डलाइफ सेंचुरी बर्ड वाचिंग और ट्रेकिंग के लिए एक आदर्श स्थान है। मैंने वहां तक जाने के लिए जीप सफारी करना उचित समझा। यहां सब कुछ ठीक रहा तो हो सकता है कि आपको कोई जंगली जानवर देखने को मिल जाए। वाहन में मुझे गेट पर उतर दिया और उसके बाद मझे पैदल चलना पड़ा। चारों तरफ देवदार के वृक्ष और बीच में पथरीला रास्ता, जो अंत में जाकर खुलता है। वहां से आप हसीन वादियों का मज़ा ले सकते है। साथ ही ज़िप लाइनिंग का भी विकल्प है। एक ऊंचाई से प्रकृति को निहारना अपने आप में ही एक अलग अनुभव है।

Lake Chamera- चमेरा झील

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चमेरा झील एक ऐसी जगह है जो आपको किसी भी हाल में अवश्य ही घूमना चाहिए। रावी नदी पर निर्मित, चमेरा झील एक कृत्रिम झील है और चमेरा जलविद्युत परियोजना का एक हिस्सा है। झील और बांध आसपास के गांवों के लिए पानी की आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत हैं। अपनी प्राकृतिक सुंदरता के अलावा, बांध के आसपास भांडाल घाटी के घने देवदार के जंगल इसको एक नया रूप प्रदान करते हैं।  झील नदी राफ्टिंग, मोटर बोटिंग, कैनोइंग, और कयाकिंग जैसे पानी के खेल के लिए भी प्रसिद्ध है। जैसे जैसे आप ऊपर से नीचे झील के प्रवेश द्वार पर पहुंचेंगे आपको रास्ते में कई ऐसी जगहें मिलेंगी जहा से आप झील के नज़ारे को अपने कैमरे में क़ैद कर सकते हैं। मैंने बोटिंग की और मज़े किए।

Panchpula Waterfall- पंचपुला वॉटरफॉल

चमेरा झील घूमने के बाद यह हमारा अगला पड़ाव था। कैब को एक किनारे पार्क करवाकर मैं बिना रुके आगे बढ़ने को तैयार हुआ। ऊपर मुख्य जलधारा तक पहुंचने के लिए 100 मीटर की चढ़ाई करनी पड़ी। जैसे तैसे मैं ऊपर पहुंचा, शाम का वक्त था। कुछ लोग जल की धारा में नहा रहे थे। मेरी तो बिल्कुल भी हिम्मत नहीं हुई कि इतनी ठंडी में आगे जाऊं। पानी को छूने से ही मेरे शरीर में एक करंट सा दौड़ गया। इतना ठंडा पानी था कि पूछिए मत। नीचे आकर मैंने चाय और पकोड़े खाएं। अब रात होने को थी और मैंने ड्राइवर को आने के लिए बोला। यह वाकई एक थका देने वाला दिन था किन्तु जो अनुभव आज हुआ उसके समक्ष तो ये थकान कुछ भी नहीं।

Ganji Hill- गंजी पहाड़ी

बकरोटा की पहाड़ियों में स्थित, इस चोटी की दूरी डलहौजी से 5 किमी है। ट्रेक्किंग करना सबसे ज्यादा मजेदार होगा। चूंकि इस पहाड़ी पर किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती है, इसलिए इसको गंजी पहाड़ी के नाम से जाना जाता है। गंजी पहाड़ी एक मनोरम पिकनिक स्थल और आसपास के शानदार दृश्य पेश करता है। कोई भी यहां डेरा डाल सकता है और अपने दोस्तों और परिवार के साथ ताजा हवा और पहाड़ों के खूबसूरत नज़ारों का आनंद ले सकता है।

सर्दियों के दौरान, गंजे पहाड़ सफेद बर्फ से ढँक जाते हैं और हीरे की तरह चमकते हैं जो पर्यटकों को एक सांस लेने वाला दृश्य प्रदान करते हैं। ट्रेक का स्तर मध्यम से कठिन है और पैदल गंजी पहाड़ी तक पहुंचने में लगभग 40-50 मिनट लगते हैं। यह सलाह दी जाती है कि स्नैक्स और भोजन साथ ले जाएँ क्योंकि वहाँ कोई रेस्तरां या होटल नहीं हैं।

Chamunda Devi Temple- चामुंडा देवी मंदिर

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चामुंडा देवी मंदिर डलहौजी में स्थित एक मुख्य धार्मिक स्थल है, जो काली माता को समर्पित है। प्रचलित मान्यता के अनुसार अंबिका माता ने यहां मुंडा और चंडा नामक दो दैत्यों का वध किया था। यहां माता को एक काले कपड़े में लपेटकर रखा गया है। इसके आसपास एक अच्छा हरियाली भरा वातावरण है और जब घंटे और मंत्रो का उच्चारण होता है तो सारा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

Other Walking Places- अन्य घूमने वाली जगहें

सतधरा फाल्स

सेंट फ्रांसिस कैथोलिक चर्च

रंग महल

मॉल रोड

सच पास

बकरोता हिल्स

भलेई देवी मंदिर

रॉक गार्डन

Some things to note- कुछ ध्यान देने योग्य बातें

  • डलहौजी में अच्छी खासी तादाद में बर्फ पड़ती है। अतः आप स्नोफॉल देखने के इच्छुक है तो सर्दियों में जाएं।
  • गांधी चौक डलहौजी का केंद्र बिंदु है। आपको बस, मार्केट आदि सभी चीज़े यहीं मिलेंगी।
  • उपर्युक्त सभी स्थान डलहौजी के मुख्य शहर के 20 किलोमीटर के दायरे में है।
  • घूमने के लिए निकलने पर कुछ खाने पीने की चीजें और पानी की बोतल अवश्य रखें।
  • किसी प्रकार का कूड़ा ना फैलाएं और जगहों को साफ रखने में मदद करें।
  • अगर आप ट्रेक्किंग और एडवेंचर पसंद करते है तो यह स्थान आपके लिए बहुत कुछ पेश करता है।

Where to stay? – कहां रुकें?

रुकने के विकल्पों की कोई कमी नहीं है। मैंने तो एक हॉस्टल बुक किया था क्योंकि यह मेरी सोलो ट्रिप थी। हॉस्टल से लेकर बड़े बड़े होटल और रिजॉर्ट तक यहां स्थित हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार बुकिंग कर सकते हैं।

How to reach ? – कैसे पहुंचें?

डलहौजी पहुंचने के निम्न तरीके हैं –

हवाई मार्ग द्वारा

पठानकोट एयरपोर्ट सबसे निकटतम हवाई अड्डा है, जो डलहौजी से 75 किमी की दूरी पर है। हवाई अड्डे से आप लोकल बस या टैक्सी का सहारा ले सकते हैं।

रेल मार्ग द्वारा

डलहौजी के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है, जो 80 किमी दूर है और दिल्ली, मुंबई और अमृतसर सहित भारत के कई शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। वहां से बस या कैब द्वारा डलहौजी पहुंच सकते हैं। मैंने अपनी यात्रा के लिए रेल मार्ग का ही सहारा लिया।

रोड मार्ग द्वारा

डलहौजी की ओर जाने वाली सड़कें लंबी हो सकती हैं, लेकिन यात्रा करने लायक हैं। हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (HPTC) और हरियाणा रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (HRTC) की कई निजी और राज्य बसें आसपास के शहरों से अपनी सेवाएँ प्रदान करती हैं। नई दिल्ली से, लगभग 565 किमी की दूरी तय करते हुए, डलहौजी पहुंचने के लिए NH 1 के माध्यम से लगभग 11 घंटे लगते हैं। इसके अलावा, चंबा (45 किमी), अमृतसर (200 किमी) और शिमला (365 किमी) जैसे क्षेत्र के अन्य प्रमुख स्थानों के साथ गंतव्य भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

Ending- समापन

कुल मिलाकर डलहौजी एक ऐसा हिल स्टेशन है, जो कुल्लू मनाली की तरह प्रसिद्ध नहीं है, पर किसी भी प्रकार से इनसे कम भी नहीं है। ऐसी प्राकृतिक सुंदरता और शांति मैंने अपने जीवन में कभी अनुभव नहीं किया। बाकी हिल स्टेशन की तरह यहां आपको पर्यटकों कि इतनी भीड़ देखने को नहीं मिलती है।

यह जगह अपने ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक रमणीयता के लिए जानी जाती है। बता दें कि इस क्षेत्र को हिल-स्टेशन के रूप में बदलने के लिए पांच पड़ोसी पहाड़ियों भंगोरा, बकरोटा, तेराह, पोटरिन और कथलगढ़ को चंबा के शासकों ने अधिग्रहित कर लिया गया था और इसके बाद यह जगह लोकप्रिय पहाड़ी पर्यटन स्थल बन गया।

आप अगर किसी ऐसे जगह की तलाश में है जो भीड़भाड़ से दूर आपको शांति का एहसास दिलाए और आपको प्रकृति के करीब जाने का मौका दे, तो एक बार आपको डलहौजी पर विचार जरूर करना चाहिए।

Reference

नमस्कार, मेरा नाम उत्कर्ष चतुर्वेदी है। मैं एक कहानीकार और हिंदी कंटेंट राइटर हूँ। मैं स्वतंत्र फिल्म निर्माता के रूप में भी काम कर रहा हूँ। मेरी शुरुवाती शिक्षा उत्तर प्रदेश के आगरा में हुई है और उसके बाद मैं दिल्ली आ गया। यहां से मैं अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा हूँ और साथ ही में कंटेंट राइटर के तौर पर काम भी कर रहा हूँ।

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