kadwa sach – Vikram betal story in hindi
राजा विक्रमादित्य ने फिर से पेड़ पर चढ़कर बेताल को नीचे उतार लिया और अपने कंधे पर डाल कर चल दिए। बेताल रहा और राजा चुपचाप चलते रहे। बेताल हंसता रहा और राजा चुपचाप चलते रहे। राजा को दृढ़ प्रतिज्ञा चलता देखकर बेताल ने कहा, “ ठीक है राजन, दूसरी कहांनी सुनाता हूं”
एक बार की बात है… वैशाली पर राजा चंद्रधर का शासन था। वह बहुत ही दयालु राजा थे। कहां जाता था कि कोई भी याचक उनके दरबार से खाली हाथ नहीं लौटता था।
एक दिन एक बड़ी ब्राह्मण दरबार में आया। उसके साथ उसके तो अंधे बैठे थे। आदर पूर्वक राजा को नमन कर के ब्राह्मण ने कहा, “ महाराज, मैं बहुत गरीब हूं। अपने बच्चों को भोजन भी नहीं दे पाता हूं। यदि यही स्थिति रही तो यह अधिक जीवित नहीं रह पाएंगे। मैं व्यापार शुरू करना चाहता हूं। मुझे 10 सोने की अशर्फी देने की कृपा करें।”
राधा को ब्राह्मण तथा उसके पुत्रों पर बहुत दया आई। उन्होंने अपने कोषागार से दस अशर्फी ब्राह्मण को दिलवा कर पूछा, “ तुम इन्हे वापस कब तक करोगे?”
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ब्राह्मण ने कहा,” महाराज, मैं 1 साल के अंदर जरूर यह उधार चुकता कर दूंगा।”
सशंकित राजा ने कहा, “ और अगर पैसे लेकर तुम गायब हो गए तो?”
ब्राह्मण ने कहा, “ महाराज, आप चाहे तो मेरे बेटों को अपने पास पैसे लौटाने तक रख सकते हैं।”
राजा हैरान था। भला दो अंधे लड़के उसके किस काम के? राजा को हैरान देखकर ब्राह्मण ने कहा, “ मेरे पुत्रों में विशेष गुण हैं। बड़ा पुत्र किसी भी घोड़े को छूकर और सुनकर उस घोड़े की जाती और स्वभाव बता सकता है। छोटा पुत्र किसी पत्थर को हाथ में लेकर की परख कर सकता है।” ब्राह्मण की बात सुनकर राजा ने सफलतापूर्वक दोनों को अपने महल में ब्राह्मण के उधार चुकता करने तक रख लिया।
एक दिन एक व्यापारी राजा के पास एक बहुत अच्छी नस्ल का घोड़ा लेकर आया। वह देखने में स्वस्थ और तगड़ा था। राजा को घोड़ा बहुत पसंद आया। सौदा पक्का होने वाला ही था कि राजा को अचानक ब्राह्मण पुत्र का ख्याल आया। उसे बुलवाया गया। उसने घोड़े को छूकर और सूंघकर कर बताया कि यह बहुत ही भड़कने वाला घोड़ा है। राजा ने इस पर सत्यता की जांच के लिए घुड़सवार को भेजा। घुड़सवार अनेक प्रयत्नों के बाद भी घोड़े पर बैठने में सफल नहीं हो पाया। और घोड़े ने उसे गिरा दिया ब्राह्मण पुत्र से प्रसन्न होकर राजा ने उसे परितोषिक दिया।
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कुछ दिनों के बाद राजा को रत्न खरीदने की इच्छा हुई। जोहरी ने उन्हें कीमती रत्न दिखाएं। राजा ने एक बड़ा सा हीरा पसंद किया उन्होंने उसे खरीदने से पहले ब्राह्मण के छोटे पुत्र को बुलवाया। ब्राह्मण पुत्र ने हीरा हाथ में लेकर कहां, “महाराज, यह श्रापित हीरा है। इसे पहनने वाले को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।”
इस बात की सत्यता जानने की इच्छा से उन्होंने जौहरी की ओर नजर डाली। जौहरी ने इस बात की सत्यता को स्वीकार करते हुए कहां, “ इनकी बात सही है। इतने पहले इसे तीन लोगों ने लिया था और उनकी मौत आश्चर्यजनक ढंग से अचानक ही हो गई।” यह सुनकर राजा ने हीरे की जगह एक बड़ा रूबी खरीद कर ब्राह्मण पुत्र को इनाम दिया।
साल पूरा होते-होते ब्राह्मण अशरफिया लौटाने राजा के पास आया। उसका व्यापार अच्छा चल निकला था। राधा ने पूछा कि पुत्रों की तरह क्या उसने भी कोई विशेष गुण है? ब्राह्मण ने बताया कि वह किसी का हाथ देकर उसका बीता हुआ कल बता सकता है राजा ने ब्राह्मण से अपना हाथ देखने के लिए कहा।
राजा कहां देखकर भ्रमण ने कहा, “ महाराज, एक बड़े राज्य के आप एक होनहार शासक हैं, पर आपके पिताजी एक चोर थे, जिन्होंने कई शहरों को लूटा था।”
ब्राह्मण की बात सुनते ही राजा बबूला हो गया।
“ झूठे, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बारे में मेरे ही दरबार में, ऐसी बात कहने की”?
अपने सेवकों को राजा ने ब्राह्मण और उसके पुत्रों को पकड़ कर उनका सिर कलम करने की आज्ञा दी।
इतना कहकर बेताल ने पूछा, “ राजन, मुझे बताइए, आपके विचार में उन लोग की मृत्यु का उत्तरदाई कौन है?”
विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “ अपने और अपने पुत्रों की मृत्यु का उत्तरदाई ब्राह्मण था। हालांकि उसने सच कहा था पर कड़वे सच को कहने से पहले उसे बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए था। राजा को पता था कि वह एक चोर की संतान है पर सबके सामने इस बात का कहां जाना राजा के प्रभुत्व के लिए हानिकारक और अपमानजनक बात थी। इस बात के लिए ब्राह्मण को मौत की सजा तो होनी ही थी।”
बेताल की हंसी से जंगल गूंज उठा। “ मैं आप के निर्णय से प्रभावित हुआ राजन!” यह कहकर बेताल वापस पेड़ पर चला गया।