आयुर्वेद एक अनोखा और प्रकृति आधारित चिकित्सा विज्ञान है। आयुर्वेद कई छोटे छोटे लेकिन तार्किक सिद्धांत पर काम करता है। ऐसे ही कुछ आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों का वर्णन पदार्थ विज्ञान में किया गया है। आयुर्वेद की खासियत यह है की इसमें सभी सिद्धांत प्रकृति पर आधारित है और वह काफी सरल है और वह आम लोगों को भी समझ आ सकते है।
आयुर्वेद की बातें करते वक़्त आपने कई बार वात, पित्त, और कफ (Vata Pitta and Kapha Doshas) के बारे में सुना ही होगा। आपने लोगो को यह कहते हुए भी सुना होगा की उनको पित्त हो गया है, वायु हो गया है आदि। तो, आज हम बात करेंगे की यह वात, पित्त, और कफ क्या होते है। साथ ही हम देखेंगे की यह वात, पित्त, और कफ हमारे दैनिक जीवन में कैसे काम करते है।
वात, पित्त, और कफ को जानने से पहले हमें पंचमहाभूत के बारे में जानना होगा. तो चलिए देखते है की पंचमहाभूत क्या है?
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पंचमहाभूत क्या है? – What is Panchmahabhoot?
क्या आपके मन में भी कभी यह ख्याल आया है की हमारा ब्रह्मांड किस मूलभूत तत्वों से बना हुआ है? शायद हमें इसका जवाब आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों में मिल सकता है।
हालांकि, आधुनिक विज्ञान हमारे ब्रह्माण्ड के मुलभुत तत्वों तक नहीं पहोच पाया है। यही, हमारा भारतीय आयुर्वेद शाश्त्र कहता है की हमारा ब्रह्माण्ड मुलभुत ५ तत्वों से बना हुआ होता है जिनको “महाभूत” कहते है। यही पांच महाभूत के समूह को आयुर्वेदिक दर्शन में पंचमहाभूत कहा गया है। यह पंचमहाभूत हमारा शरीर, हमारे आसपास की चीज़े, और पुरे ब्रह्माण्ड के निर्माण के लिए जिम्मेदार है।
आयुर्वेद कहता है की हमारा लौकिक शरीर यह पांच तत्वों से बना हुआ होता है –

- आकाश – Space
- वायु – Air
- अग्नि – Fire
- जल – Water
- पृथ्वी – Earth
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आयुर्वेद में त्रिदोष – Tridosha in Ayurveda in Hindi
आयुर्वेद कहता है की हमारा शरीर पंचमहाभूत से बना होता है। पंचमहाभूत अलग अलग अनुपात में मिलकर हमारे शरीर के अलग अलग हिस्सों का निर्माण करते है। जैसे की हमारी हड्डी में पृथ्वी महाभूत परिबल होने की वजह से इसमें कठोरता होती है। हमारे इस पंचभौतिक शरीर को तीन जैविक बल नियंत्रित करते है जिन्हे आयुर्वेद में “दोष” कहा गया है।
आयुर्वेद के मुताबिक हमारे शरीर में तीन शारीरिक दोष पाए जाते है जो हमारी दिन प्रतिदिन की क्रिया को नियंत्रित करते है। आयुर्वेद में कहा गया है की दोष सामान्य से ज़्यादा मात्रा में बढ़ जाये तब हमारे शरीर को दूषित करते है और रोग का कारण बनते है। इसीलिए इन्हे दोष कहा गया है।
हमारे शरीर में तीन प्रकार के शारीरिक दोष – वात, पित्त, और कफ पाए जाते है। यह त्रिदोष हम सभी के शरीर में पाए जाते है और वह अपना अपना कार्य करते है.
शरीर को स्वस्थ और रोग मुक्त रखने के लिए इसका संतुलित होना जरुरी होता है। त्रिदोष का विस्तारपूर्वक वर्णन नीचे किया गया है।
वात दोष | वात दोष के प्रकार | Vata Dosha, Prakar
वात को सबसे महत्वपूर्ण दोष माना जाता है। इसलिए आयुर्वेद में इसका वर्णन दोषों में सबसे पहले किया जाता है। अष्टांग हृदय में वात दोष के महत्व का वर्णन करते समय आचार्य वाग्भट्ट बताते है की – “कफ और पित्त दोष, शरीर के मल और धातु सभी वात दोष के बिना अपांग है।”
वात में अधिकतर दो तत्व होते हैं वायु और आकाश (जिसे ईथर के नाम से भी जाना जाता है) और इसे आमतौर पर ठंडे, हल्के, शुष्क, खुरदरे, कुरकुरे जैसे गुण पाए जाते है। सर्दी की मौसम अपने शांत, कुरकुरा दिनों के लिए वात का प्रतिनिधित्व करती है।
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वात दोष हमारे शरीर के त्रिदोष में से सबसे महत्वपूर्ण है। वात दोष हमारे शरीर में सभी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होता है। यह मुख्य रूप से श्वसन, हलनचलन, ह्रदय का धड़कना, रक्त संचार, मल त्याग, वायु का निकास, बोलना, चबाना, जैसी महत्वपूर्ण शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार होता है। वात दोष को वायु के नाम से भी जाना जाता है।
वात दोष के प्रकार | ||
नाम | मुख्य स्थान | प्रमुख कार्य |
प्राण वात | मस्तिष्क | इन्द्रियों का कार्यतर्क |
उड़ान वात | छाती | बोलनाश्वसन क्रियामुँह के कार्य |
व्यान वात | ह्रदय | शरीर के अंगों का संचालनरक्त का संचार होना |
समान वात | पाचन तंत्र | पचनक्रिया में मदद रूपखुराक को नीचे धकेलना |
अपान वात | पेट का निचला हिस्सा | वीर्यपातमासिकमल-मूत्र का त्याग |
हमारे शरीर में हजारों गतिविधियां होती रहती है। वात दोष उन सबके लिए जिम्मेदार होता है। सूक्ष्म कोशिकीय द्रव्यों में बायो केमिकल की गतिविधियों से लेकर हमारे तांत्रिक प्रणाली तक वात दोष एक महत्वपूर्ण कार्य करता है।
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पित्त दोष | पित्त दोष के प्रकार | Pitta Dosha, Prakar
पित्त दोष में अग्नि और जल महाभूत प्रधान होते है। पित्त दोष हमारे शरीर में पाचन का कार्य करने के साथ साथ कई और कार्य भी करता है। पित्त दोष आँखों की दृष्टि, खुराक के पाचन, शरीर के तापमान, शरीर में लहू, आदि के लिए जिम्मेदार होता है।
पित्त दोष में कई गुण भी होते है जैसे की उष्णता (गरम), तीव्र (तेज), रोशनी (लाइट), तरल (लिक्विड), प्रसार, थोड़ा ऑयली, खट्टा आदि। पित्त हमारे शरीर में सभी परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार होता है। इसे कई बार अग्नि के नाम से भी जाना जाता है।
पित्त दोष के प्रकार | ||
नाम | मुख्य स्थान | प्रमुख कार्य |
पाचक पित्त | पाचन तंत्र | पाचन में मदद रूप |
रंजक पित्त | लिवर | रक्त का उत्पादनत्वचा का रंग |
आलोचक पित्त | आँखे | दृष्टि में मदद रूप |
साधक पित्त | ह्रदय | मानसिक तनाव पर काबू करनागुस्सा, लगाव, आदि भावना |
भ्राजक पित्त | त्वचा | त्वचा का प्राकृतिक निखार |
हमारे शरीर में होने वाले बायो मॉलिक्यूलर ट्रांसफॉर्मेशन से लेकर खुराक के पाचन में पित्त एक मुख्य कार्यकर्ता होता है। आयुर्वेद अनुसार हमारे शरीर में सभी धातु जैसे की रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, और शुक्र क्रमशः एक दूसरे में से बनती है। वहां पर भी धात्वाग्नि कार्य करती है।
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धात्वाग्नि रस को रक्त में, रक्त को मांस में, ऐसे करके शरीर के सभी घटकों का निर्माण करती है। इसलिए, पित्त हमारे शरीर के विकास एवं कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कफ दोष,कफ दोष के प्रकार – Kapha Dosha, Prakar
कफ दोष पृथ्वी और जल महाभूत पर आधारित दोष है। यह हमारे शरीर में स्थिरता, भारीपन और ठंडक का एहसास दिलाता है. हमारे शरीर में कफ दोष के कई कार्य देखने को मिलते है.
यह हमारे शरीर के महत्वपूर्ण भागों में स्नेह और हड्डियों के बीच होने वाले घर्षण से बचने के लिए स्नेहक का कार्य करता है. यह हमारे अंग की भीतरी सतह को भी घिसने से बचाता है.
कफ दोष के प्रकार | ||
नाम | मुख्य स्थान | प्रमुख कार्य |
क्लेदक कफ | पेट | पाचन तंत्र में मददरूपपेट की दीवार का एसिड से रक्षण |
अवलम्बक कफ | फेफड़े, ह्रदय, के बहार | फेफड़े और ह्रदय की बाहरी परत को घिसने से बचाना |
बोधक कफ | जीभ | स्वाद |
श्लेष्मक कफ | जोड़ों | जोड़ो में स्नेहन |
तर्पक कफ | मस्तिष्क | बुद्धि और तर्क |
कफ दोष हमारे शरीर के विकास के लिए भी जरूरी है. इसमें जल महाभूत प्रधान होने की वजह से यह दो चीज़ो को साथ जोड़ने में मदद करता है जिससे शरीर और अंगो में स्थूलता आती है. इसलिए शरीर के विकास के लिए कफ दोष अत्यंत जरुरी है.
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आयुर्वेद में प्रकृति क्या होती है? – What is Prakriti in Ayurveda?
हम सब जानते है की हमारे आसपास कई तरह के लोग पाए जाते है। हम सब अलग अलग होते है। कई लोगों से गर्मी सहन नहीं होती तो कई लोगों को ठंड अच्छी नहीं लगती। क्या आपने कभी सोचा है की हम सब की पसंद और तासीर अलग अलग क्यों होती है? इसका जवाब है हमारी प्रकृति.
हम सब के शरीर में वात, पित्त, और कफ की मात्रा अलग अलग होती है। यह जन्म से ही निर्धारित होता है की हमारे शरीर में कौन सा दोष प्रभावशाली होगा। इसे आयुर्वेद में प्रकृति कहते है। शरीर में दोष के आधार पर कुल ७ प्रकार की प्रकृति पायी जाती है।
7 प्रकार की दोषिक प्रकृति
- कफज प्रकृति
- पित्तज प्रकृति
- वातज प्रकृति
- वात-पित्तज प्रकृति
- वात-कफज प्रकृति
- कफ-पित्तज प्रकृति
- त्रिदोषज प्रकृति
उपरोक्त प्रकृति में से त्रिदोषज प्रकृति सबसे उत्तम मानी जाती है। त्रिदोषज प्रकृति वाले इंसान में तीनो दोष संतुलित होते है। एक दोषज प्रकृति जैसे की वातज, पित्तज, और कफज में किसी एक प्रबल दोष के लक्षण देखने को मिलते है। और द्वि दोषज प्रकृति में दो दोषों के लक्षण देखने को मिलते है।
किसी भी व्यक्ति के प्रकृति परीक्षण की मदद से अपनी प्रकृति को जानके उस प्रकृति से विपरीत आहार एवं जीवनशैली को बदलना चाहिए। अपनी प्रकृति के हिसाब से हमारे शरीर में दोषों को संतुलित करके हम एक सुखी और रोग मुक्त जीवन पा सकते है।
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What are the Vata Pitta and Kapha Dosha in Ayurveda? In Hindi – FAQs
पित्त की उलटी होना क्या होता है? – What is Pitta Vomiting?
जब हमारे शरीर में पाचक पित्त बढ़ जाता है तब हमारा शरीर उस अतिरिक्त पित्त को उलटी के माध्यम से बहार निकालता है। पेट में जलन, खट्टी डकार आना, आदि पित्त के लक्षण है।
पित्त में क्या खाना चाहिए? – What to Eat in Pitta?
पित्त बढ़ने पर पित्त से विपरीत गुण वाले खुराक का सेवन करना चाहिए जैसे की ठंडे, सरल, और स्थूल पदार्थ। पित्त में खट्टे पदार्थो का सेवन टालना चाहिए। खट्टे पदार्थो से शरीर में पित्त का निर्माण होता है।
शरीर में दोष संतुलित कैसे करें? – How to Balance Dosha in Body?
हम अपने शरीर की प्रकृति का परिक्षण करके असंतुलित दोषों को जानकर बढे हुए दोषों से विपरीत आहार विहार का सेवन करके हम हमारे शारीरिक दोषों को संतुलित कर सकते है और एक रोग मुक्त जीवन की प्राप्ति कर सकते है।