बात कुछ यूं है कि मैं शाम में अपने घर में बैठा था, दोस्त का फ़ोन आया, उसने बोला भाई रिज़ल्ट आ गया हैं और तुम्हारा चयन हो गया है। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। ख़ुश होता भी क्यों ना, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में जो चयन हो गया था। उस विश्वविद्यालय में जिसका नाम बचपन से सुनते आ रहे थे। अब मैंने अपना बैग पैक किया, रात की ट्रेन पकड़ी और चल दिए बनारस। रात भर थोड़ी सी बेचैनी और दिल में कुछ सवाल लिए हुए और बेचैनी दाखिले को लेकर कम बनारस को लेकर ज़्यादा। हो भी क्यों ना क्योंकि बनारस गंगा किनारे बसा वह शहर हैं जिसके बारे में बचपन से सिर्फ सुना,पढ़ा और फिल्मों में ही देखा था। कहते हैं बनारस दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक और भारत की धर्मनगरी हैं। अब उस शहर को करीब से देखने एवम् जानने का अवसर मिलने वाला था । रात भर का सफ़र कर के सुबह तकरीबन हम 5 बजे पहुंचे। स्टेशन से सीधे चल दिए अपनी मंजिल की ओर।
Trivial introduction of Benares- बनारस का तुच्छ सा परिचय
बनारस गंगा किनारे बसा हुआ है। गंगा भारत की सबसे बड़ी नदी करीब 2,525 किलोमीटर की दूरी तय कर गोमुख से गंगासागर तक जाती है। इस पूरे रास्ते में गंगा उत्तर से दक्षिण की ओर यानि उत्तरवाहिनी बहती है। केवल वाराणसी में ही गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में बहती है। बनारस का विस्तार प्रायः गंगा नदी के दो संगमों: एक वरुणा नदी से और दूसरा अस्सी नदी से संगम के बीच बताया जाता है। इन संगमों के बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है।
इस दूरी की परिक्रमा (दोनों ओर की यात्रा) हिन्दू धर्म में पंचकोसी यात्रा या पंचकोसी परिक्रमा कहलाती है। इस यात्रा का समापन साक्षी विनायक मंदिर में किया जाता है। बनारस मंदिरों का नगर है। क्योंकि लगभग हर एक चौराहे पर आपको एक मंदिर तो मिल ही जायेगा। इसके साथ ही यहां ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो बनारस के इतिहास में समय समय पर बनवाये गये थे। इनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, ढुंढिराज गणेश, काल भैरव, दुर्गा जी का मंदिर, संकटमोचन, तुलसी मानस मंदिर, नया विश्वनाथ मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकठा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख हैं।
History of Kashi Hindu University- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का इतिहास
लगभग 25- 30 मिनट बाद मैं विश्विद्यालय के गेट के सामने था। बनारस हिन्दू विश्विद्यालय की स्थापना महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा सन् 1916 में बसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार इस विश्वविद्यालय की स्थापना मे मदन मोहन मालवीय जी का योगदान केवल सामान्य संस्थापक सदस्य के रूप में था, दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह ने विश्वविद्यालय की स्थापना में आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था दान देकर एवं डॉ॰ एनी बेसेन्ट ने भी इसमें काफी महत्वूर्ण योगदान दिया।
अब मैं विश्वविद्यालय परिसर में पहुंचा और कार्यालय में हाजिरी लगाई तो उन्होंने हमसे औचारिकताएं पूरी करने के बाद हमें सामूहिक चर्चा और साक्षात्कार के लिए बुलाया। ये सब होने के बाद हमें बताया गया कि आज रात तक विश्विद्यालय की वेबसाइट पर फाइनल परिणाम घोषित कर दिए जाएंगे। मेरा दोस्त बोला अभी समय हैं, चलो काशी विश्वनाथ मंदिर चले तो मैंने भी हां कर दी क्योंकि मैंने भी काफी कुछ सुना था और देखने कि इच्छा भी थी इसके बाद हमने तय किया कि आज पहले प्रसिद्ध मंदिर देख लेते है कल कुछ और तो हमने एक लिस्ट बनाई काशी के प्रमुख मंदिरों की और चल दिए मंदिर दर्शन की ओर।
Kashi Vishwanath Temple- काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर वर्तमान रूप में 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा बनवाया गया था। ये मंदिर गंगा नदी के दशाश्वमेध घाट के निकट ही स्थित है। इस मंदिर की काशी में सर्वोच्च महिमा है, क्योंकि यहां विश्वेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है। माना जाता है कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से प्रमुख शिवलिंग यहां स्थापित है। इस ज्योतिर्लिंग का एक बार दर्शनमात्र किसी भी अन्य ज्योतिर्लिंग से कई गुणा फलदायी होता है मान्यता के अनुसार तो यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं इस शहर को बसाया है इसलिए लोग काशी को शिव की नगरी भी कहते हैं।
बनारस की टेढ़ी- मेढ़ी कहीं सकरी तो कहीं घुमावदार गलियों से होते हुए भीड़ और जाम को पार करते हुए आखिर में हम घाट की ओर चल दिए क्योंकि अगर आप बनारस आए और घाट नहीं देखा और घाट पर होने वाली आरती नहीं देखी तो आपने समझिए बनारस ही नहीं देखा क्योंकि इसके बिना बनारस अधूरा है अब मैं सबसे पहले आपको घाट से संबंधित कुछ बताना चाहता हूं।
कहते हैं वाराणसी में 100 से अधिक घाट हैं। इसलिए बनारस को घाटों का शहर भी कहा जाता हैं। शहर के कई घाट मराठा साम्राज्य के अधीनस्थ काल में बनवाये गए थे। वाराणसी के संरक्षकों में मराठा, शिंदे (सिंधिया), होल्कर, भोंसले और पेशवा परिवार रहे हैं। अधिकतर घाट स्नान-घाट हैं, कुछ घाट अन्त्येष्टि घाट हैं। कई घाट किसी कथा आदि से जुड़े हुए हैं, जैसे मणिकर्णिका घाट, जबकि कुछ घाट निजी स्वामित्व के भी हैं। पूर्व काशी नरेश का शिवाला घाट और काली घाट निजी संपदा हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख हैं दशाश्वमेध घाट ,मणिकर्णिका घाट, एवं अस्सी घाट। 84 घाटों में से पांच घाट बहुत पवित्र माने जाते हैैं इन्हें सामूहिक रूप से पंचतीर्थ कहा जाता हैं ये हैं अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिका घाट। अस्सी घाट सबसे दक्षिण में स्थित है जबकि आदिकेशवघाट सबसे उत्तर में स्थित हैं।
मैं कुछ ख़ास घाटों के बारे में आपको बताऊंगा।
सबसे पहले मैं आपको दशाश्वमेध घाट के बारे में बताता हूं।
Dashashwamedh Ghat- दशाश्वमेध घाट
काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट ही स्थित है और सबसे शानदार घाट है।इससे संबंधित दो पौराणिक कथाएं हैं: एक के अनुसार ब्रह्मा जी ने इसका निर्माण शिव जी के स्वागत हेतु किया था। दूसरी कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ किये थे। प्रत्येक संध्या पुजारियों का एक समूह यहां अग्नि-पूजा करता है जिसमें भगवान शिव, गंगा नदी, सूर्यदेव, अग्निदेव एवं संपूर्ण ब्रह्मांड को आहुतियां समर्पित की जाती हैं। यहां देवी गंगा की भी भव्य आरती की जाती है। जो विश्वप्रसिद्ध है जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं ।
Manikarnika Ghat- मणिकर्णिका घाट
इस घाट से जुड़ी भी दो कथाएं हैं। एक के अनुसार भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी। दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं और शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नहीं पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि उस घाट पर की जाती है
वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है? इस घाट की विशेषता ये है, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं व घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती।
Assi ghats- अस्सी घाट
अस्सी घाट असी नदी के संगम के निकट स्थित है। इस सुंदर घाट पर स्थानीय उत्सव एवं क्रीड़ाओं के आयोजन होते रहते हैं। ये घाटों की कतार में अंतिम घाट है। ये चित्रकारों और छायाचित्रकारों का भी प्रिय स्थल है। यहीं स्वामी प्रणवानंद, भारत सेवाश्रम संघ के प्रवर्तक ने सिद्धि पायी थी। उन्होंने यहीं अपने गोरखनाथ के गुरु गंभीरानंद के गुरुत्व में भगवान शिव की तपस्या की थी।
अन्य घाट- Other ferries
आंबेर के मान सिंह ने मानसरोवर घाट का निर्माण करवाया था। दरभंगा के महाराजा ने दरभंगा घाट बनवाया था। गोस्वामी तुलसीदास ने तुलसी घाट पर ही हनुमान चालीसा और रामचरितमानस की रचना की थी। बचरज घाट पर तीन जैन मंदिर बने हैं और ये जैन मतावलंबियों का प्रिय घाट रहा है। 1895 में नागपुर के भोसला परिवार ने भोसला घाट बनवाया। घाट के ऊपर लक्ष्मी नारायण का दर्शनीय मंदिर है। राजघाट का निर्माण लगभग दो सौ वर्ष पूर्व जयपुर महाराज ने कराया
घाटों पर बहुत भीड़ थीं शाम के 5 बजे रहे थे। आमतौर पर शाम को यहां बहुत भीड़ होती ही हैं। हमने घाटों को देखना शुरू किया। लोग गंगा में डुबकी लगा रहे थे हिन्दू मान्यता के अनुसार गंगा नदी सबके पाप माफ़ करती है और काशी में मृत्यु सौभाग्य से ही मिलती है और यदि मिल जाये तो आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो कर मोक्ष पाती है। तो हमने भी डुबकी लगा ली , पाप का तो पता नहीं पर मन को ज़रूर कुछ संतुष्टि मिली। ऐसा लग रहा था मानो आज मन शांत हुआ है, बहुत से लोग गंगा किनारे बैठ पंडित जी से अपने परिवार की समृद्धि के लिए पूजा- पाठ करवा रहे थे तो कुछ लोग गंगा जी से मिन्नतें एवं आशीर्वाद मांग रहे थे।