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तेनालीराम की चित्रकारी – तेनालीराम की कहानी | tenali rama ki chitrakala Tenali rama ki kahani
राजा कृष्णदेव राय अपने महल की दीवारों को चित्रकारी से सजाना चाहते थे। उन्होने यह काम एक प्रसिद्ध चित्रकार को सौंपा। चित्रकारी का काम पूरा होने में एक साल लग गया। काम पूरा होने के बाद राजा अपने आठ दिग्गजों एव दरबारियों के साथ चित्रकारी देखने गये।
चित्रकार ने बहुत अच्छी चित्रकारी की थी। राजा चित्रकार की चित्रकारी से बहुत प्रभावित हुए। उन्हें खुद पर गर्व हो रहा था कि उन्हें इतना कुशल चित्रकार मिला। तभी तेनालीराम ने एक चित्र राजा को दिखाया, जिसका एक अंग नहीं था। राजा आश्चर्यचकित हुए. परंतु उस कमी को अनदेखा करने के भाव से उन्होंने तेनाली से कहा, “तुम उस अंग की कल्पना करो, यही तो इस चित्रकारी की विशेषता है। “
उत्तर सुनकर तेनालीराम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सोचा, “ठीक है कि राजा ने प्रसिद्ध चित्रकार से चित्रकारी करवाई है. पर गलती को तो स्वीकार करना चाहिए।” उसने मन ही मन निश्चय किया कि वह राजा को यह बताकर ही रहेगा कि इंसान को सच हमेशा स्वीकार करना चाहिए, चाहे वह कितना भी कड़वा क्यों न हो।
कुछ दिनों बाद तेनालीराम ने दरबार में जाकर राजा से कहा. ” आपके महल से प्रेरित होकर मैंने भी चित्रकारी की है और उसकी प्रदर्शनी लगाई है। कृपया मेरी प्रदर्शनी में चलकर मेरा मान बढ़ायें। “
राजा तेनालीराम के कहने पर प्रदर्शनी देखने गये और वहां जो कुछ उन्होंने देखा, उसे देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए।
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तेनालीराम ने अनोखी पेंटिंग चारों ओर लगा रखी थीं। किसी चित्र में हाथ था, तो किसी में पैर… राजा ने पूछा, “माफ करना, मुझे यह चित्रकारी अच्छी नहीं लगी। तुमने अलग-अलग अंग बनाये हैं, पूरा शरीर किधर है?”
तेनाली मुस्कराकर बोला, “महाराज, लोगों को उस अंग की कल्पना स्वयं करनी चाहिए। यही तो इन चित्रों की सुंदरता है । ” राजा को अपनी कही बात याद आ गई। वह तेनालीराम का इशारा समझ गये और शर्मिंदा हो गए।
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