पौराणिक प्रेम कथा | शकुंतला और दुष्यंत की प्रेम कथा | shakuntala aur dushyant ki prem katha
शकुंतला एक सुंदर युवती थी। उसे कण्व ऋषि ने गोद लिया था। वह अपने पालतू हिरण के साथ वन में ऋषि के आश्रम में ही रहती थी। एक दिन, हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत वन में शिकार के लिए आया। उसकी निगाह सुंदर हीरन पर पड़ी। हिरण को देखते ही राजा ने उस पर तीर छोड़ दिया। हिरण पीड़ा से तड़पने लगा। शकुंतला उसे संभालने लगी।
शकुंतला को वन के पशु पक्षियों से बहुत प्रेम था। उसके स्वभाव ने दुष्यंत के मन को छू लिया। उसने शकुंतला से अपनी क्रूरता के लिए क्षमा मांगी। शकुंतला ने उसे क्षमा कर दिया, लेकिन उससे कहा कि वह कुछ दिन वन में रहकर घायल हिरण की देखभाल करें। शकुंतला और दुष्यंत एक दूसरे से प्यार करने लगे। दुष्यंत ने शकुंतला से विवाह कर लिया और उसे अपना नाम लिखी एक अंगूठी भेंट की।
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कुछ दिनों बाद राजा अपने राज्य लौट गया, लेकिन शकुंतला को उसने वचन दिया कि वह जल्द ही लौट कर आएगा और अपने साथ शकुंतला को भी ले जाएगा।
एक दिन दुर्वासा ऋषि शकुंतला के आश्रम में आए। उन्होंने द्वार से ही बार-बार पानी मांगा, लेकिन अपने पति के बारे में सोचने में मगन शकुंतला ने उन पर ध्यान नहीं दिया। दुर्वासा ने बहुत अपमान महसूस किया। वह बहुत क्रोधित हुए। उसने तुरंत शकुंतला को श्राप दे दिया कि वह जिसके बारे में सोच रही है, वही उसे भूल जाएगा।
जब शकुंतला ने यह श्राप सुना तो वह भयभीत हो गई। वह दुर्वासा से क्षमा मांगने लगी। ऋषि ने कहा कि वे अपने श्राप वापस नहीं ले सकते, लेकिन उसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकते हैं। इतना कहकर वे बोले की जब वह उसकी दी हुई कोई भेंट उसे दिखाएगी, तो उसे सब याद आ जाएगा।
श्राप के असर से दुष्यंत शकुंतला को भूल गया। शकुंतला वन में उसकी प्रतीक्षा करती रही। कुछ दिनों प्रतीक्षा करने के बाद शकुंतला ने राजधानी जाकर अपने पति से मिलने का निर्णय किया। रास्ते मैं शकुंतला को एक नदी पार करनी पड़ी। दुष्यंत की दी हुई अंगूठी उसमें गिर गई। एक मछली ने उस अंगूठी को निगल लिया। जब शकुंतला राज महल पहुंची तो राजा ने उसे नहीं पहचाना।
दुष्यंत ने शकुंतला से अपनी पहचान साबित करने को कहा। शकुंतला तो उसकी दी हुई अंगूठी खो चुकी थी। रोते-रोते उसने राजा को वन में अपने साथ बिताए दिनों की याद दिलाने का प्रयास किया, लेकिन राजा को कुछ भी याद नहीं आया।
निराश होकर शकुंतला राजमहल से निकल आई। ग्लानी के कारण वह अपने पिता के आश्रम में नहीं लौटी। वह वन मैं ही किसी अन्य स्थान पर रहने लगी। वहीं पर उसने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे का नाम उसने भारत रखा। भारत बहुत वीर बालक था। वह वन में पशु पक्षियों के साथ खेलकूद कर बड़ा होने लगा। एक दिन एक मछुआरा एक अंगूठी लेकर राज महल आया।
उसने राजा को बताया कि उसे वह अंगूठी एक मछली के पेट मैं से मिली है। अंगूठी पर राजा का नाम लिखा देखकर वह उसे राजा के पास ले आया था। जब राजा ने वह अंगूठी देखी, तो दुर्वासा ऋषि का श्राप मुक्त हो गया। राजा को शकुंतला की याद आ गई। वह तुरंत शकुंतला को लेने वन की ओर चल दिया, लेकिन वह उसे वन में नहीं मिली। निराश होकर वह राजमहल लौट आया।
कुछ और वर्ष बीत गए। राजा एक बार फिर उसी वन में शिकार करने गया। इस बार उसे वन में एक सुंदर बालक मिला जो शेर के बच्चे के साथ खेल रहा था। वह निडर बालक उस शावक का मुंह खोल कर कह रहा था, “अरे, वनराज! अपना मुंह थोड़ा और खोलो। मुझे तुम्हारे दांत गिनने हैं।” राजा उस बालक के पास गया और उसके माता पिता के बारे में पूछने लगा। बालक ने उसे बताया कि वह राजा दुष्यंत और शकुंतला का पुत्र है।
बालक दुष्यंत को शकुंतला के पास लेकर गया। दुष्यंत शकुंतला से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह दोनों को हस्तिनापुर में ले आया। वह सभी वहां खुशी खुशी रहने लगे और भारत बड़ा होकर महान राजा बना।
राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा | Shakuntla Dushyant | Brijesh Shastri | Mahabharat Kissa
reference
shakuntala aur dushyant ki prem katha