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रामायण का पाठ – तेनालीराम की कहानी | Ramayan ka Path Tenali Rama ki kahani | Tenali Raman Story in Hindi
राजा कृष्णदेव राय के शासन काल में, विक्रम सिम्हापुरी नामक एक छोटे से शहर की गणिकाओं के बारे में बहुत बातें होती थीं, जो बहुत चालाक और क्रूर थीं। उनमें सबसे चालाक कंचनमाला थी।
एक बार कंचनमाला ने एक विद्वान् को रामायण गायन के लिए चुनौती देते हुए शर्त रखी कि गायन ऐसा होना चाहिए, जिससे वह पूरी तरह संतुष्ट हो।
अगर वह कहेगी कि, वह संतुष्ट है, तब ही विद्वान् की जीत मानी जाएगी और अगर वह नहीं कहेगी तो उस विद्वान् को उसका गुलाम बनना पड़ेगा।
हर कोई जानता था, कंचनमाला कभी नहीं कहेगी कि वह संतुष्ट है। इसी तरह से उसने कई विद्वानों को गुलाम बनाया था।
एक दिन तेनालीराम ने फैसला किया कि वह उस महिला को उसके बनाए खेल में हराएगा और उन सभी गुलाम लोगों को मुक्त करवाएगा। उसने अपना वेश बदला और कंचनमाला के घर गया।
वहां पहुंचने पर उसने घोषणा की, “मैं कचनमाला की चुनौती स्वीकार करने के लिए आया हूं।”
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कंचन माला ने पूछा, “क्या तुम्हें मेरी शर्तों के बारे में पता है?” तेनालीराम ने सहमति दी और गायन शुरू हो गया। जिस कमरे में वे बैठे थे, उसे सुगंधित मोमबत्तियों से महकाया और मुलायम साटन के कपड़े से सजाया गया था।
तेनालीराम ने रामायण सुनानी शुरू कर दी। तेनालीराम ने बहुत ही सुंदरता से वर्णन किया कि, किस प्रकार राजा दशरथ अपने सबसे बड़े पुत्र राम को वन में भेजने के लिए मजबूर हो गए और कैसे उनकी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी उनके साथ वन को चले गए।
तेनालीराम ने अपने गायन में मधुरता भरते हुए उनके वन्य जीवन का वर्णन किया और नाटकीय रूप से बताया कि कैसे दुष्ट रावण ने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया।
लेकिन यह सब बेकार हो गया, जब कंचनमाला एक जोरदार जम्हाई लेकर अपने नरम बिस्तर पर लेट गई। क्योंकि यह लग रहा था कि वह ऊब गई थी।
तेनालीराम ने फिर गा बजाकर नाटकीय रुप में बताया कि कैसे श्री राम और लक्ष्मण, सीता जी के खो जाने पर दुःख में डूबकर वन-वन भटक रहे थे। तभी वे वानरों के एक समूह से मिले।
जिसमें से राम के भक्त वानर हनुमान ने दुष्ट राजा रावण के शहर, लका में जाकर श्रीराम का संदेश सीता को दिया।
कंचनमाला ने करवट बदलते हुए कहा, “मैं संतुष्ट नहीं हूँ। तुम सचमुच एक उबाऊ आदमी हो, मेरी इच्छा तो सजीव नाटक देखने की थी । “
अचानक तेनालीराम अपने आसन से छलांग लगाकर जहां कंचनमाला बैठी थी, वहां बैठ गया। उसने कहा, “जानती हो इस प्रकार हनुमान जी ने एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुंचने के लिए छलांग लगाई थी.” और उसके बाद वह कंचनमाला के बिस्तर से पास के दूसरे बिस्तर पर छलांग मार कर पहुंच गया।
“इस तरह हनुमानजी ने विशाल समुद्र को पार किया था.” तेनाली ने कहा और फिर से उसने कंचनमाला पर छलांग लगा दी। कंचनमाला डरकर जोर से चिल्लाई ।
तेनाली ने कहा, “इस प्रकार हनुमान जी हर उस व्यक्ति से लड़े थे, जिसने उन्हें पकड़ने की कोशिश की थी, ” और इसी के साथ उसने कंचनमाला को मुक्के मारना शुरू कर दिया। वह दर्द के साथ कराहने लगी।
तब तेनालीराम ने एक मोमबत्ती ली और कहा, “जैसे हनुमान जी ने पूंछ में आग लगाई थी और पूरी लंका नगरी को आग की भेंट कर दिया था, ऐसा ही सजीव नाटक मैं तुमको दिखाऊंगा,” और ऐसा कहकर तेनालीराम पर्दों और कालीन को आग लगाने लगा।
क्षण भर में ही कमरे में आग लग गई। बेचारी कंचनमाला अपनी जान बचाने के लिए घर छोड़ कर भागने लगी। अगले दिन कंचनमाला अदालत में गई और तेनाली के खिलाफ शिकायत की।
जब राजा ने तेनालीराम से पूछा, तो उसने कहा, “महाराज, इस महिला ने कई विद्वानों को बेवकूफ बनाकर गुलाम बना लिया है। “
राजा ने तेनालीराम के पक्ष में अपना निर्णय दिया। कंचनमाला ने सभी गुलाम लोगों को मुक्त कर दिया।
कहानी से सीख
अगर हिम्मत और समझदारी से काम लिया जाए तो मुश्किल से मुश्किल चुनौती को भी जीता जा सकता है।
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