भारत की पर्वतीय रेलवे | Mountain Railways of India – UNESCO World Heritage Site

बचपन की किताबों से लेकर लड़कपन की यादों तक जब कभी भी रेल का जिक्र आता है तो अमूमन हर बच्चा कोई रेलगाड़ी में बैठने के लिए बेचैन हो उठता है। रेल का पहला सफर हर किसी के लिए किसी सपने से कम नहीं होता, खासकर जिस देश की लाइफलाइन ही रेलवे हो।

समूचे भारत को एक धागे में पिरोने वाली भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जोकि पहाड़ों की सैर से लेकर खुले मैदानों की हरियाली से होता हुआ समुद्र की उपान मारती लहरों तक का दीदार कराता है। इसी कड़ी में देश के कुछ रेल नेटवर्क अपने खूबसूरत नजारों और यादगार सफरों के लिए पयर्टकों के बीच खासा मशहूर है। जिन्हें संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। top 3 railways of india unesco world heritage site

यहाँ पढ़ें : मानस राष्ट्रीय उद्यान
यहाँ पढ़ें : कोणार्क सूर्य मंदिर

Mountain Railways of India (UNESCO/TBS)

Mountain Railways of India

यहाँ पढ़ें : Highway Dhabas in india
यहाँ पढ़ें : Nanda Devi and Valley of Flowers National Park

darjeeling himalayan railway दार्जिलिंग हिमालय रेलवे

Mountain Railways of India
Mountain Railways of India

टॉय ट्रेन यानी खिलौना गाड़ी के नाम से मशहूर दार्जिलिंग हिमालय रेलवे 88 किलोमीटर का सफर तय कर पश्चिम बंगाल के खूबसूरत हिल स्टेशन दार्जिलिंग को सिलिगुढ़ी से जोड़ती है। जहां एक तरफ दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का समर हिल स्टेशन है, वहीं सिलिगुढ़ी से दार्जिलिंग तक के सफर में टॉय ट्रेन के बाहर हरे भरे चाय बागानों की चादर ओढ़े रंगीन पहाड़ियां इस सफर में चार चांद लगा देती हैं।

दार्जिलिंग हिमालय रेलवे भारतीय रेल द्वारा ही संचालित किया जाता है। जहां टॉय ट्रेन महज 330 फीट की ऊंचाई पर बसे सिलिगुढ़ी से रफ्तार भरती हुई 7,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित दार्जिलिंग तक जाती है। वहीं 7,500 फीट पर स्थित घूम स्टेशन इस सफर का सबसे ऊंचा स्थान है, जहां से समूचे दार्जिलिंग की खूबसूरती का लुत्फ उठाया जा सकता है।

 darjeeling himalayan railway history दार्जिलिंग हिमालय रेलवे का इतिहास

अमूमन दार्जिलिंग की खूबसूरती के किस्से सदियों से देश-विदेश में मशहूर थे, लेकिन जितना अनोखा इसका दीदार था, उतना ही मुश्किल यहां तक पहुंचना भी था। लगभग दो सदी पहले तक दार्जिलिंग तक सिर्फ बैल गाड़ी या इक्का गाड़ी के द्वारा ही पहुंचा जा सकता था।

हालांकि 19वीं शताब्दी तक पश्चिम बंगाल ब्रिटिश हुकूमत का गढ़ बन चुका था। इसी के साथ औद्योगिक क्रांति और रेलवे के आविष्कार ने समूचे देश को एक धागे में पिरोना शुरू कर दिया था। जाहिर है दार्जिलिंग भी इस बदलाव से अछूता न रह सका।

इसी कड़ी में सबसे पहले 1878 में ब्रिटिश प्रशासन ने न सिर्फ बंगाल की बल्कि देश की तात्कालीन राजधानी कलकत्ता से सिलिगुढ़ी तक रेलवे लाइन का आगाज किया। वही सिलिगुढ़ी से दार्जिलिंग तक का सफर अभी भी बैल गाड़ी के द्वारा ही तय किया जा सकता था।

यहाँ पढ़ें : छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस
यहाँ पढ़ें : आगरा का किला

darjeeling himalayan railway construction दार्जिलिंग हिमालय रेलवे का निर्माण

आखिरकार सर एशले एडन के द्वारा गठित की गई एक समिति की सिफारिश पर साल 1879 में सिलिगुढ़ी से दार्जिलिंग तक रेलवे को हरी झंडी दिखाई गयी और 1881 में इस रेलवे लाइन का काम पूरा हो गया।

एक आंकड़े के अनुसार 1909 से 1910 के बीच जहां दार्जिलिंग हिमालय रेलवे से लगभग 174,000 यात्रियों ने सफर तय किया था, वहीं इस रास्ते पर 47,000 टन से भी ज्यादा माल की ढुलाई हुई थी।

हालांकि 1897 में भूकंप के जोरदार झटके के कारण यह रास्ता बंद हो गया था और रेलवे लाइन भी काफी हद तक विध्वंस हो गयी थी, जिसका बाद में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा फिर से पुननिर्माण कराया गया। वर्तमान में यह रेल रूट उत्तर पूर्वी सीमांत रेलवे मार्ग का हिस्सा है।

darjeeling himalayan railway दार्जिलिंग हिमालय रेलवे की खासियत

 दार्जिलिंग हिमालय रेलवे मनमोहक नजारों के साथ-साथ खासे दिलचस्प तरीके से बनाई गयी है। दरअसल हिमालय की तलहटी में बसे दार्जिलिंग तक पहुंचने के सफर में चार घुमावदार और चार जिगजैग (zigzag) रास्ते मौजूद है, जिनपर सिलिगुढ़ी से चलने वाली टॉय ट्रेन रफ्तार भरती है। siliguri to darjeeling

इसके अलावा टाय ट्रेनों में लगे भाप के इंजन इस सफर की सबसे अनोखी खासियत है। पहाड़ों के बीच घुमावदार रास्तों पर धूं-धूं कर चलती टॉय ट्रेन किसी यादगार रोमांचक अनुभव से कम नहीं है। 1999 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनेस्को ने सिलिगुढ़ी हिमालय रेलवे का नाम विश्व धरोहर सूची में शामिल किया था। darjeeling himalayan railway unesco world heritage site

यहाँ पढ़ें : देश के प्रमुख 5 बौद्ध पर्यटन एवं दर्शनीय स्थलों के बारें में
यहाँ पढ़ें : 10 बेस्ट भारत की रोड ट्रिप डेस्टिनेशन

nilgiri mountain railway नीलगिरी पर्वतीय रेलवे

Mountain Railways of India
Mountain Railways of India

नीलगिरी पर्वतीय रेलवे दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य का हिस्सा है, जोकि नीलगिरी पर्वतों की सैर कराती है। दक्षिण भारत के नीले पहाड़ों के नाम से मशहूर नीलगिरी पर्वत अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, जिसका लुत्फ उठाने के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों की तादाद में पयर्टक यहां आते हैं।

nilgiri mountain railway history नीलगिरी पर्वतीय रेलवे का निर्माण

नीलगिरी पर्वतीय रेलवे का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा 18वीं सदी के आखिर में शुरू कराया गया था। शुरूआत में कुनूर इस रेल रूट का आखिरी स्टेशन था। हालांकि बाद में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा 1908 में इस रेल लाइन को फर्नहिल और फिर बाद में तमिलनाडू के प्रसिद्ध हिल स्टेशन उदगमंडलम तक ले जाया गया।

nilgiri mountain railway नीलगिरी पर्वतीय रेलवे की खासियत

नीलगिरी पर्वतों का सफर रेल की सैर के बिना अधूरा सा लगता है। इसी कड़ी में नीलगिरी पर्वतीय रेलवे देश की उन अनोखी ट्रनों में से एक है, जो आज भी भाप इंजनों से ही रफ्तार भरती हैं। यह रेल रूट नीलगिरी की तलहटी में बसे मेट्टुपलायम को ऊंचाई पर बसे उदगमंडलम हिल स्टेशन से जोड़ती है।

 लगभग 208 घुमाव, 16 सुरंगों और 250 पुलों को पार करती हुई नीलगिरी रेल कुल 46 किलोमीटर का सफर लगभग 5 घंटों में तय करती है। साथ ही यह एक सिंगल लाइन रेल रूट है, जहां सिर्फ एक ही पटरी बिछाई गयी है।

इसके साथ ही यह देश की सबसे पुरानी और फर्राटेदार रेलवे लाइनों में से एक है। वर्तमान में नीलगिरी पर्वतीय रेलवे का सफर कल्लौर से शुरू होता है, वहीं कुनूर रेलवे स्टेशन के पास ही इस रास्ते की 97 मीटर लम्बी सुरंग भी मौजूद है।

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने साल 2005 में नीलगिरी पर्वतीय रेलवे का नाम विश्व धरोहर सूची में शामिल किया था। nilgiri mountain railway unesco world heritage site

यहाँ पढ़ें : राजस्थान के 8 प्रमुख पर्यटन स्थल
यहाँ पढ़ें : भारत के 10 सबसे खूबसूरत एवं रोमांटिक हनीमून डेस्टिनेशन

kalka shimla railway कालका – शिमला रेलवे

Mountain Railways of India
Mountain Railways of India

अमूमन हिमालय के दीदार के बिना उत्तर भारत में सैर का जिक्र अधूरा सा लगता है। जहां एक तरफ उत्तर भारत में देश का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क मौजूद है, वहीं रेल के रास्ते तय किए गए उत्तर भारत के कुछ सफर बेहद खास होते हैं। इसी कड़ी में एक नाम कालका-शिमला रेलवे का भी शामिल है, जिसे संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने 2008 में विश्व धरोहर के खिताब से नवाजा है।

kalka shimla railway history कालका – शिमला रेलवे का निर्माण

भारत में रेल के आगाज से पहले शिमला देश के उन खूबसूरत गांवों में से एक था, जिसका दीदार बैल गाड़ी या इक्का गाड़ी से ही मुमकिन था। हालांकि रेल के आविष्कार के बाद राजधानी दिल्ली से अंबाला और फिर कालका तक रेल की शुरूआत की गयी। वहीं 1898 में शिवालिक की पहाड़ियों में भी रेल लाइन की नीव रखी गयी, जोकि 1903 में बनकर पूरी हुई। 

kalka shimla railway कालका – शिमला रेलवे की खासियत

हरियाणा के कालका से हिमाचल प्रदेश के शिमला तक लगभग 95 किलोमीटर तक का यह सफर खासा अनोखा साबित हो सकता है। दरअसल पहाड़ियों की रानी के नाम से मशहूर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को 1864 में ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया था। यही नहीं ब्रिटिश सेना का मुख्यालय भी शिमला में ही मौजूद था। kalka shimla railway unesco world heritage site

इसी के चलते शिमला की न सिर्फ हमेशा से अपनी अलग अहमियत रही है बल्कि 2,205 किलोमीटर की ऊंचाई पर हिमालय की तलहटी में बसा शिमला मशहूर हिल स्टेशन होने के साथ-साथ देश के टॉप टूरिस्ट स्पॉट में से एक है। kalka to shimla train

कालका से शिमला तक चलने वाली रेल इस हाइटेक दौर में भी भाप के इंजनों से ही संचालित होती है। शिवालिक ड्यूलैक्स एक्सप्रेस के नाम से रफ्तार भरने वाली यह ट्रेन कुल 103 सुरंगो और 864 पुलों को पार करते हुए शिमला में दस्तक देती है। किसी शाही सवारी सा अनुभव देने वाली इस ट्रेन की यात्रा सफर में चार चांद लगा देती है। shivalik dulex express

Reference-
8 june 2021, Mountain Railways of India, wikipedia

I am enthusiastic and determinant. I had Completed my schooling from Lucknow itself and done graduation or diploma in mass communication from AAFT university at Noida. A Journalist by profession and passionate about writing. Hindi content Writer and Blogger like to write on Politics, Travel, Entertainment, Historical events and cultural niche. Also have interest in Soft story writing.

Leave a Comment