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काँवड़ यात्रा | Kanwar Yatra | काँवड़ यात्रा का महत्व
काँवड़ यात्रा मानसून के श्रावण माह मे किए जाने वाला अनुष्ठान है। कंवर (काँवर), एक खोखले बांस को कहते हैं इस अनुष्ठान के अंतर्गत, भगवान शिव के भक्तों को कंवरिया या काँवाँरथी के रूप में जाना जाता है।
हिंदू तीर्थ स्थानों हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री, सुल्तानगंज में गंगा नदी, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नीलकंठ और देवघर सहित अन्य स्थानो से गंगाजल भरकर, अपने-अपने स्थानीय शिव मंदिरों में इस पवित्र जल को लाकर चढ़ाया जाता है।
काँवड़ यात्रा पूर्णिमा पंचांग पर आधारित सावन माह के प्रथम दिन अर्थात प्रतिपदा से ही प्रारंभ की जा सकती है। इस यात्रा की सुरुआत शिव पर अर्पित करने वाले मंदिर से, गंगाजल भरकर लाने वाले स्थान की दूरी पर निर्भर करती है। चूँकि कंवरिया को यह दूरी पैदल चलते हुए सावन शिवरात्रि के दिन तक पूरी करनी होती है। अतः काँवड़ यात्रा प्रारंभ का दिन इन सभी परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
ध्यान देने योग्य कुछ तथ्य:
» काँवड़ यात्रा के दौरान कंवरिया अन्न और नमक (अर्थात व्रत) का सेवन किए बिना इस यात्रा को पूरा करते हैं।
» काँवड़ को कंधे पर धारण किए, कंवरिया जल का भी सेवन नहीं करते हैं।
» अपनी यात्रा में कंवरिया, काँवड़ को जमीन पर नहीं रखते हैं, तथा शिव पर बिना जल अर्पण किए घर नहीं लौटते हैं।
» तथा गंगाजल शिवरात्रि के दिन ही अर्पण किया जाता है। कुछ कंवरिया यह यात्रा नंगे पैर पूरी करते हैं।
» इस पूरी यात्रा के दौरान कंवरिया अपने किसी भी साथी या अन्य साथी का नाम उच्चारित नहीं करते हैं, ये आपस में एक दूसरे को भोले नाम से संबोधित करते हैं।
काँवड़ यात्रा का इतिहास:
हिन्दू पुराणों में कांवड़ यात्रा समुद्र के मंथन से संबंधित है। समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने जहर का सेवन किया, जिससे नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हुए। त्रेता युग में रावण ने शिव का ध्यान किया और वह कंवर का उपयोग करके, गंगा के पवित्र जल को लाया और भगवान शिव पर अर्पित किया, इस प्रकार जहर की नकारात्मक ऊर्जा भगवान शिव से दूर हुई।
जल कब चढ़ाए? जल चढ़ाने का समय?
भगवान शिव का सबसे प्रवित्र दिन शिवरात्रि, सकारात्मक उर्जा का श्रोत है, इसलिए जल चढ़ाने के लिए पूरा दिन ही पवित्र और शुभ माना गया है। पर जल चढ़ाते समय आगे और पीछे की तिथि के संघ को ध्यान में रखें।
डाक कांवड़
शिवरात्रि के दो या तीन दिन पहले हरिद्वार के लिए रवाना होते हैं। डाक कांवड लाने वाले शिवभक्त 15-20 लोगों की टोली में होते हैं। हरिद्वार में स्नान और पूजा अर्चना के बाद, जल को उठाकर वापस अपनी मंजिल की तरफ बढते हैं।
यात्रा में 2-3 बाइक, बड़े वाहन तथा अन्य कंवरिया भी होते हैं। जल उठाने के बाद से, ये कांवडिए जल को उठाकर अपनी मंजिल की तरफ भागते हैं। थक जाने पर बाइक पर सवार अन्य लोग अदला-बदली करके एक दूसरे को आराम देते रहते हैं। एक बार जल भरने के बाद में ये सीधा अपनी मंजिल पर जाकर ही रूकते हैं।
FAQ – Kanwar Yatra
कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?
धार्मिक ग्रंथ के जानकारों का मानना है कि कावड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले भगवान परशुराम ने की थी, उन्होंने कांवड़ से गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत के पास बना पुरा महादेव का अभिषेक किया था, भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से कांवड़ में गंगाजल लेकर आए थे और फिर इस प्राचीन शिवलिंग का अभिषेक किया था
कांवड़ यात्रा क्यों की जाती है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं।
कांवड़ यात्रा करने से क्या लाभ मिलता है?
कांवड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने का एक अमोघ उपाय है, ऐसा माना जाता है कि सावन के पावन महीने में कांवड़ उठाने वाले भक्त के सभी पाप शाप नष्ट हो जाते हैं।
त्योहारों की सूची
Reference
Kanwar Yatra