रोज़ एक कहानी : पंचतंत्र की कहानियाँ 13 : झूठी शान : Jhoothi Shaan
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jhoothi shaan Panchtantra ki kahani in Hindi
एक बार कि बात है..
एक जंगल में पहाड़ की चोटी पर एक किला बना था। किले के बाहर एक ऊंचा विशाल देवदार का पेड़ था ।
देवदार के पेड़ पर एक उल्लू रहता था। वह भोजन की तलाश में नीचे घाटी में फैले ढलवां चरागाहों में आता। चरागाहों की लम्बी घासों व झाड़ियों में कई छोटे-मोटे जीव व कीट-पतंगे मिलते, जिन्हें उल्लू भोजन बनाता।
निकट ही एक बड़ी झील थी, जिसमें हंसों का निवास था। उल्लू पेड़ पर बैठा झील को निहारा करता। उसे हंसों का तैरना व उड़ना मंत्र-मुग्ध कर देता।
वह सोचता कि कितना शानदार पक्षी है हंस। एकदम दूध-सा सफेद, गुलगुला शरीर, सुराहीदार गर्दन, सुंदर मुख व तेजस्वी आंखें। उसकी बड़ी इच्छा होती किसी हंस से उसकी दोस्ती हो जाए।
एक दिन उल्लू पानी पीने के बहाने झील के किनारे उगी एक झाडी पर उतरा। निकट ही एक बहुत शालीन व सौम्य हंस पानी में तैर रहा था। हंस तैरता हुआ झाड़ी के निकट आया।
उल्लू ने बात करने का बहाना ढूंढा `हंस जी, आपकी आज्ञा हो तो पानी पी लूं। बड़ी प्यास लगी है।`
हंस ने चौंककर उसे देखा और बोला `मित्र! पानी प्रकॄति द्वारा सबको दिया गया वरदान है। इस पर किसी एक का अधिकार नहीं।`
उल्लू ने पानी पीया। फिर सिर हिलाया जैसे उसे निराशा हुई हो। हंस ने पूछा `मित्र! असंतुष्ट नज़र आते हो। क्या प्यास नहीं बुझी?`
उल्लू ने कहा `हे हंस! पानी की प्यास तो बुझ गई पर आपकी बातों से मुझे ऐसा लगा कि आप नीति व ज्ञान के सागर हैं। मुझमें इनकी प्यास जग गई है। वह कैसे बुझेगी?`
हंस मुस्कुराया `मित्र, आप कभी भी यहां आ सकते हैं। हम बातें करेंगे। इस प्रकार मैं जो जानता हूं, वह आपका हो जाएगा और मैं भी आपसे कुछ सीखूंगा।`
हंस व उल्लू रोज मिलने लगे। एक दिन हंस ने उल्लू को बता दिया कि वह वास्तव में हंसों का राजा हंसराज है। अपना असली परिचय देने के बाद हंस अपने मित्र को निमंत्रण देकर अपने घर ले गया।
हंसराज के शाही ठाठ थे। खाने के लिए कमल व नरगिस के फूलों के व्यंजन परोसे गए और जाने क्या-क्या दुर्लभ खाद्य थे, उल्लू को पता ही नहीं लगा। बाद में सौंफ-इलाइची की जगह मोती पेश किए गए। उल्लू दंग रह गया।
अब हंसराज उल्लू को महल में ले जाकर खिलाने-पिलाने लगा। रोज दावत उड़ती। उसे डर लगने लगा कि किसी दिन साधारण उल्लू समझकर हंसराज उससे दोस्ती न तोड़ ले।
स्वयं को हंसराज की बराबरी का बनाए रखने के लिए उसने झूठ-मूठ कह दिया कि वह भी उल्लूओं का राजा उल्लूकराज है।
यह झूठ कहने के बाद उल्लू को लगा कि उसका भी फर्ज़ बनता है कि हंसराज को अपने घर बुलाए।
एक दिन उल्लू ने दुर्ग के भीतर होने वाली गतिविधियों को गौर से देखा। उसके दिमाग में एक युक्ति आई।
उसने दुर्ग की बातों को खूब ध्यान से समझा। सैनिकों के कार्यक्रम नोट किए। फिर वह चला हंस के पास। जब वह झील पर पहुंचा, तब हंसराज कुछ हंसनियों के साथ जल में तैर रहा था।
उल्लू को देखते ही हंस बोला `मित्र, आप इस समय?`
उल्लू ने उत्तर दिया `हां मित्र! मैं आपको आज अपना घर दिखाने व अपना मेहमान बनाने के लिए ले जाने आया हूं। मैं कई बार आपका मेहमान बना हूं। मुझे भी सेवा का मौका दें।`
हंस ने टालना चाहा `मित्र, इतनी जल्दी क्या है? फिर कभी चलेंगे।`
उल्लू ने कहा `आज तो आपको लिए बिना नहीं जाऊंगा।`
हंसराज को उल्लू के साथ जाना ही पड़ा ।
पहाड़ की चोटी पर बने किले की ओर इशारा कर उल्लू उड़ते-उड़ते बोला `वह मेरा किला है।` हंस बड़ा प्रभावित हुआ।
वे दोनों जब उल्लू के आवास वाले पेड़ पर उतरे तो किले के सैनिकों की परेड शुरु होने वाली थी। दो सैनिक बुर्ज पर बिगुल बजाने लगे।
उल्लू दुर्ग के सैनिकों के रोज़ के कार्यक्रम को याद कर चुका था, इसलिए ठीक समय पर हंसराज को ले आया था।
उल्लू बोला `देखो मित्र, आपके स्वागत में मेरे सैनिक बिगुल बजा रहे हैं। उसके बाद मेरी सेना परेड और सलामी देकर आपको सम्मानित करेगी।`
नित्य की तरह परेड हुई और झंडे को सलामी दी गयी। हंस समझा सचमुच उसी के लिए यह सब हो रहा हैं। अतः हंस ने गदगद होकर कहा `धन्य हो मित्र! आप तो एक शूरवीर राजा की भांति ही राज कर रहे हो।`
उल्लू ने हंसराज पर रौब डाला `मैंने अपने सैनिकों को आदेश दिया है कि जब तक मेरे परम मित्र राजा हंसराज मेरे अतिथि हैं, तब तक इसी प्रकार रोज बिगुल बजे व सैनिकों की परेड निकले।` उल्लू को पता था कि सैनिकों का यह रोज का काम है।
हंस को उल्लू ने फल, अखरोट व बनफशा के फूल खिलाए। उनको वह पहले ही जमा कर चुका था। भोजन का महत्व नहीं रह गया।
सैनिकों की परेड का जादू अपना काम कर चुका था। हंसराज के दिल में उल्लू मित्र के लिए बहुत सम्मान पैदा हो चुका था।
उधर, सैनिक टुकड़ी को वहां से कूच करने के आदेश मिल गए। दूसरे दिन सैनिक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो हंस ने कहा `मित्र, देखो आपके सैनिक आपकी आज्ञा लिए बिना कहीं जा रहे हैं।
उल्लू हड़बड़ाकर बोला ` किसी ने उन्हें गलत आदेश दिया होगा। मैं अभी रोकता हूं उन्हें।` ऐसा कह वह हूं हूं करने लगा।
सैनिकों ने उल्लू का घुघुआना सुना व अपशकुन समझकर जाना स्थगित कर दिया। दूसरे दिन फिर वही हुआ। सैनिक जाने लगे तो उल्लू घुघुआया।
सैनिकों के नायक ने क्रोधित होकर सैनिकों को मनहूस उल्लू को तीर मारने का आदेश दिया। एक सैनिक ने तीर छोड़ा।
तीर उल्लू की बगल में बैठे हंस को लगा। वह तीर खाकर नीचे गिरा व फड़फड़ाकर मर गया। उल्लू उसकी लाश के पास शोकाकुल हो विलाप करने लगा `हाय, मैंने अपनी झूठी शान के चक्कर में अपना परम मित्र खो दिया। धिक्कार है मुझे।`
उल्लू को बेसुध होकर रोते देखकर एक सियार उस पर झपटा और उसको मारकर खाने लगा।
सीखः झूठी शान बहुत महंगी पड़ती है। कभी भी झूठी शान के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।
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