आज के जीवन शैली में dieting, Intermittent fasting (IF) जैसे शब्द प्रचलन में बढ़ रहे हैं । यद्यपि हिन्दू धर्म सहित मुस्लिम, बौद्ध, जैन कई धर्मो में धार्मिक उपवास या व्रत की बात कही गई है । फिर नई पीढ़ी के लोग इसकी अवहेलना करते रहे किन्तु अब जब उपवास को विज्ञान सम्मत स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद माना गया तो धार्मिक व्रत या उपवास के स्थान पर लोग dieting, Intermittent fasting (IF) शब्द का उपयोग करने लगे । इन दोनों मेंं क्रिया एक समान है अंतर तो केवल शब्द और आस्था का है ।
आंतरायिक उपवाय की अभिधारणा – Intermittent Fasting Postulation
आधुनिक मान्यता के अनुसार व्यक्ति के दो भोजन ग्रहण करने के बीच की अवधि को प्रतिबंधित करने की क्रिया का आंतरायिक उपवास कहते हैं । दो भोजन के बीच के अवधी को 8 घंटा, 12 घंटा या 16 घंटे तक प्रतिबंधित किया जाता है । आंतरायिक उपवास का शब्दिक अर्थ रूक-रूक कर उपवास करना होता है । उपवास का अर्थ खाने-पीने को प्रतिबंधित करना होता है । आंतरायिक उपवास में दैनिक, सप्ताहिक या मासिक उपवास की बात कही जाती है ।
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हॉफकिंस यूनिवर्सिटी जैसे कुछ मेडिसीन संस्थाओं ने अपने अध्ययन में उपवास को स्वास्थ्य के लाभदायक बताया गया है । उपवास की सहायता से मोटाप को कम किया जा सकता, शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है और आंतरिक अंगों की कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है ।
आंतरायिक उपवास की तीन विधियां अधिक प्रचलित है । 16/8, 5/2 और द वारियर डाइट । 16/8 आंतरायिक उपवास विधि में व्यक्ति दिन के चौबिस घंटे 8 घंटा में कुछ भी खा सकता है किन्तु शेष 16 घंटे में अपने खाने-पीने में प्रतिबंध लगाता है । 5/2 विधि में सप्तहा के 7 दिनों में 5 दिनों को भोजन के लिये और 2 दिनों को उपवास के लिये अपने सुविधा अनुसार निर्धारित किया जाता है । द वारियर डाइट में दिन में केवल फल आदि ही खा सकता है और रात्रि में इच्छा अनुसार भोजन कर सकता है ।
आयुर्वेद में उपवास – Fasting in Ayurveda
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्यति के कार्यकाल का यदि अवलोकन किया जाये तो हम पाते हैं कि आज की तुलना में उस समय का भारतीय समाज अधिक और स्वस्थ और निरोग था । आज के जैसे नाना प्रकार के रोग उस समय नहीं थे । इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि उस समय रोगों का आक्रमण नहीं होता था किन्तु उस समय के समाज आयुर्वेद सिद्धांत एवं धार्मिक मान्यताओं के आधार पर निरोग रहने के प्रयास करते थे ।
भारतीय ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन के स्वस्थ रहने के उपाय के रूप उपवास को धार्मिक व्रतो के नाम से प्रतिपादित किये हैं । आयुर्वेद के अनुसार उपवास स्वस्थ रहने के उपाय के साथ-साथ मानसिक शांति एवं भगवत प्राप्ति का एक साधन भी है ।
भारतीय संस्कृति में मासव्रत, पाक्षिकव्रत, वारव्रत, तिथिव्रत, नक्षत्रव्रत आदि का विधान है । मासव्रत में महिने में कम से कम एक दिन का उपवास किया जता है जैसे पूर्णिमा व्रत, पाक्षिक व्रत किसी तिथिव्रत से जुड़ा हो सकता है जैसे एकादशी व्रत, त्रयोदशी को किये जाने वाला प्रदोष व्रत, वारव्रत में सप्ताह के दिन विशेष को विशेष अराध्य मानकर उपवास करना जैसे सोमवार को भगवान भोलेनाथ का, मंगलवार को हनुमानजी का आदि । नक्षत्रव्रत में किसी नक्षत्र विशेष पर व्रत किया जाता है ।
वास्तव में उपवास करने का अर्थ भूख मरना नहीं होता बल्कि इसका अर्थ पाचनतंत्र को आराम देना होता है । पाचनतंत्र को आराम देने से पाचनतंत्र की सक्रियता में वृद्धि होती है । उपवास करने ने विभन्नि प्रकार के विषैले तत्वों का शमन होता है ।
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उपवास एक औषधि है – Fasting is a Medicine
आयुर्वेद में ‘लंघनम सर्वोत्तम् औषधम्’ मतलब उपवास एक सर्वश्रेष्ठ औषधि है, कहा गया है । आयुर्वेद में रोगों को ठीक करने के लिये शीरर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने के लिये उपवास का सुझाव दिया जाता है । इसका मुख्य उद्देश्य पेट को एवं आंतरिक अंगों की कार्यक्षमता को बढ़ाना होता है । आयुर्वेद के पंचकर्म पद्यति पेट की सफाई एवं आंतरिक अंगों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिये ही किया जाता है ।
वास्तव में आयुर्वेद सहित कई चिकित्सा पद्यति में उपवास रखने अर्थात खाली पेट रखने का विधान है । हालाकि यह हर रोग में कारगर नहीं किन्तु अधिकांश रोगों में यह आमतौर पर कारगर होता है । उपवास को धार्मिक दृष्टिकोण से न देखते हुये इसे चिकित्सकीय विधि के रूप में देखा जाना चाहिये ।
आयुर्वेद के अनुसार उपवास के फायदे – Benefits of Fasting according to Ayurveda
समान्य तौर पर उपवास के लाभ इस प्रकार हैं-
- उपवास करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होता है ।
- उपवास करने से भूख को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है और विपरित परिस्थितियों यदि भोजन न मिले तो उस स्थिति का सामना आसानी से किया जा सकता है ।
- उपवास करने से मानसिक तनाव में कमी आती है । मानसिक शांति के लिये लाभदायक है ।
- उपवास करने से शरीर के अंदर के विषैले तत्तवों की सफाई होती है ।
- उपवार करने से कफ, वात एवं पित्त में संतुलन आता है ।
- उपवास करने से श्वसन क्रिया शुद्ध होता है । श्वासोच्छवास विकार रहित होता है ।
- उपवास करने से स्वाद ग्रहण करने वाली ग्रंथी की सक्रियता बढ़ती है ।
- उपवास करने से मेटॉबॉलिज्म को समान्य स्तर में बनाये रखने मदद मिलता है ।
- उपवास करने से ऊतकों की प्राणवायु प्रणाली को पुनर्जीवित करने में मदद मिलता है ।
- आर्थराइटिस, उच्चरक्तचाप, कोलाइटिस जैसे विभन्न प्रकार के रोगों को नियंत्रित करने में यह कारगर होता है।
उपवास करने की विधि – Method of Fasting
आरोग्य की दृष्टि से सप्ताह में कम से कम एक दिन का उपवास करना चाहिये । उपवास को वैज्ञानिकता के साथ जोड़ने के साथ-साथ धर्म एवं आस्था से जोड़ने पर अध्यात्मक शक्ति में वृद्धि होता है । उपवास को यथाशक्ति तीन प्रकार से किया जा सकता है-
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- निर्जला -इस प्रकार के व्रत या उपवास में खाने की बाते छोड़ दीजिये पीने का पदार्थ भी नहीं लिया जाता । निर्जला जैसे शब्द से ही स्पष्ट पानी भी न लेना । इस व्रत को 24 घंटे या 12 घंटे के लिये किया जा सकता है । निर्जला एकादश का व्रत 24 घंटे के लिये किया जाता है । करवां चौथ का व्रत 12 घंटे के लिये किया जाता है ।
- निराहार – इस प्रकार के व्रत में खाने पर प्रतिबंध होता है पीने पर नहीं । इस प्रकार के व्रत मेु कुछ भी खाया नहीं जाता । पानी या जूस या अन्य सात्विक पेय पदार्थ इसमें लिया जा सकता है फिर निर्धारित समय के बाद भोजन ग्रहण किया जा सकता है ।
- आंशिक व्रत – इस प्रकार के व्रत फलाहार मतलब केवल फलों का सेवन किया जा सकता है ठोस भोजन नहीं लेते । निर्धारित समय के बीच-बीच में फलों के सहाये रहा जाता है फिर निर्धारित समय के बाद भोजन ग्रहण कर लिया जाता है । इसी व्रत एक दूसरे प्रकार दिन में केवल किसी भी एक समय भोजन करके शेष समय निराहर रहकर व्रत किया जाता है ।
समान्य व्यक्ति को उपवास करने के लिये मानसिक रूप से प्रबल होने के जरूरत है । एक बार में अतिभोजन करने से अपच हो सकता है किन्तु एक बार भोजन न करने से कोई नुकसान नहीं होता । इस बात पर विश्वास करके एवं इनके लाभों पर चिंतन करके उपवास किया जा सकता है ।
रोगी व्यक्ति या शारीरिक रूप से दुर्बल व्यक्ति को अपने क्षमता के अनुरूप एवं डाक्टरों के सलाह पर ही उपवास करना चाहिये ।
Reference
- Art of Living Intermittent Fasting