- Telugu New Year Festival | तेलगु नव वर्ष का पर्व | Ugadi Festival in Hindi
- Scientific Importance of Telugu New Year- तेलगु नव वर्ष का वैज्ञानिक महत्व
- Importance of Ugadi- उगादि का महत्व
- Celebration of Ugadi- उगादि का जश्न
- Panchagana pooja- पंचागना पूजा
- New year festival in different Countries of the World-दुनिया के विभिन्न देशों में नए साल का पर्व
नए साल का जश्न हर किसी के लिए खास होता है। यही कारण है कि अपने अंदर नवाचार की संभावनाओं को समेटे नव वर्ष का पर्व सभी बेहद उत्साहपूर्वक मनाते हैं। अमूमन जॉर्जियन कैलेंडर के मुताबिक 1 जनवरी को समूची दुनिया में नया साल काफी धूम-धाम से मनाया जाता है लेकिन भारत में नए साल का त्योहार हर क्षेत्र में अलग-अलग तारीखों को मनाया जाता है।
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जहाँ ज्यादातर देश में चैत्र मास ( मार्च महीना) के शुक्लपक्ष में नवरात्री के पहले दिन को हिंदी नव वर्ष के रूप में जाना जाता है, वहीं पंजाब में अप्रैल महीने में बैसाखी के पर्व को नया साल मनाया जाता है। नव वर्ष की इसी फेहरिस्त में एक नाम तेलगु नव वर्ष का भी शामिल है।
तेलगु नव वर्ष को उगादि कहा जाता है। उगादिसंस्कृत भाषा का शब्द है, जो युग और आदि से मिलकर बना है। यानी उगादि का मतलब ‘नए युग का आरंभ’ है। कई जगहों पर इसे ‘चन्द्रमनन् उगादि’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है नए साल का आरंभ।
दरअसल चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्री के नौ दिवसीय पर्व का आगाज होता है। नवरात्री के पहले दिन को न सिर्फ पूरे भारत में हिंदी नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है बल्कि उगादि यानी तेलगु नव वर्ष का पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है।
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Telugu New Year Festival | तेलगु नव वर्ष का पर्व | Ugadi Festival in Hindi

उगादि का पर्व दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है, जिनमें दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश मुख्य रूप से शामिल हैं। जहाँ उगादि के जश्न का आयोजन बेहद हर्षोल्लास के साथ किया जाता है। कर्नाटक में इसे उगाड़ी कहा जाता है, तो वहीं आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे उगादि कहते हैं।
हालांकि हिन्दी नव वर्ष या तोलगु नव वर्ष के जश्न में तमिल और मलयाली समुदाय हिस्सा नहीं लेते हैं। तमिल और मलयाली समुदाय अप्रैल महीने में अलग-अलग तिथि को नया साल मनाते हैं।
दक्षिण भारत के सभी हिस्सों में उगादि का जश्न लगभग एक समान ही मनाया जाता है। उगादि के दिन मुख्य रूप से गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है, साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी अराधना करने की प्रचलन है।
Scientific Importance of Telugu New Year- तेलगु नव वर्ष का वैज्ञानिक महत्व
हिंदी नव वर्ष का पौराणिक तथा एतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ खास वैज्ञानिक महत्व भी है। दरअसल 21 मार्च को ही पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है। जिसके कारण 21 मार्च की तारीख को रात और दिन बराबर होते हैं।
12 माह का एक वर्ष, 7 दिन का एक सप्ताह रखने की परंपरा भी हिन्दी कैलेंडर के मुताबिक ही शुरू हुई है, जिसमें गणना सूर्य-चंद्रमा की गति के आधार पर किया जाता है। हिन्दी कैलेंडर की इसी पध्दति का अनुसरण अंग्रेजों और अरबियों ने भी किया। इसके साथ ही देश के अलग-अलग कई प्रांतों में इसी आधार पर कैलेंडर तैयार किए गए हैं।
Importance of Ugadi- उगादि का महत्व
दक्षिण भारत में उगादि का पर्व प्राचीन रीति-रिवाज से ही मनाया जाता है। इस दिन घरों और मंदिरों की फर्श पर फूलों से रंगोली बनाई जाती है। इस रंगोली को कोलामुलुस कहते हैं। वहीं तेलगु भाषा में इसे मुग्गुलु कहा जाता है। इसके अलावा घरों की चौखट पर आम की पत्तयों से बनी लड़ी लगाई जाती है, जिसे तोरण कहते हैं। उगादि के दिन लोगों में स्नान-दान की परंपरा का रिवाज है। इस दिन लोग सवेरे स्नान करने के बाद गरीबों को वस्त्र दान करते हैं।
पूजा के दौरान मंदिरों में परंपारिक पकवान पछड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है। पछड़ी कई चीजों मसलन नीम की पत्ती, मिर्च, कच्चा आम, नमक और हल्दी से बनाया जाता है। जिसके कारण इसका स्वादथोड़ा मीठा, तीखा, खारा और नमकीन होता है। पछड़ी का प्रसाद बाँटने के पीछे कन्नड़ और तेलगु समुदाय मान्यता है कि आगामी वर्ष में लोग हर तरह के अनुभवों ( सुख, दुख, काम, क्रोध)का खुशी-खुशी स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।
Celebration of Ugadi- उगादि का जश्न

उगादी के पर्व का जिक्र कई प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। वहीं मध्यकालीन ग्रंथों में उगादि के दिन मंदिरों में दान करने का उल्लेख किया गया है।
उगादि के दिन ही देश के अन्य भागों में भी नया साल विभिन्न परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। इस दिन जहाँ देश में और मुख्य रूप से उत्तर भारत में हिंदी नव वर्ष मनाया जाता है वहीं महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के नाम से नए साल जश्न मनाते हैं।
उगादि के पर्व की तैयारी दक्षिण भारत में लगभग एक हफ्ते पहले ही शुरू हो जाती है। सभी लोग घरों और धार्मिक स्थलों की साफ-सफाई करना प्रारंभ कर देते हैं। उगादि के पर्व पर ज्यादातर घरों और मंदिरों की दीवारों पर गोबर से पारंपरिक कोरल कढ़ाई की जाती है। इसके अलावा उगादि के दिन पहने जाने वाले वस्त्र और पूजा-पाठ की सामाग्री की खरीददारी भी शुरू हो जाती है।
दक्षिण भारत में अमूमन तोरण और रंगोली से घर जाना बेहद आम बात है लेकिन उगादि के दिन इस सजावट को काफी शुभ माना गया है, यही कारण है कि उगादि के आगाज न सिर्फ लोगों में मेल-जोल बढ़ाता है बल्कि इस दौरान दक्षिण भारत का हर घर भी निखर जाता है।
उगादि के दिन कन्नड़ और तेलगु समुदाय में तेल से स्नान करने की प्रथा है। इस दिन कन्नड़ और तेलगु हिंदू सुबह-सुबह सूर्योदय के साथ ही तेल का स्नान करते हैं। यह स्नान परिवार के सबसे बड़े सदस्य से शुरू होता है और बारी-बारी सभी को तेल स्नान करना आवश्यक होता है। तेल स्नान के लिए कई तरह के अलग-अलग तेल का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ज्यादातर लोग तिल के तेल से स्नान को प्राथमिकता देते हैं।
स्नान के बाद सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं। नव वर्ष का उत्सव ईश्वर की अराधना के बिना हमेशा अधूरा रहता है। उसी प्रकार उगादि के पर्व पर भी दक्षिण भारत के कई मंदिरों में भव्य आयोजन किए जाते हैं, जिसमें न सिर्फ भगवान गणेश, माता पार्वती सहित भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की अराधना की जाती है बल्कि भजन – कीर्तन और लोक नृत्य का आयोजन भी किया जाता है।
नव वर्ष पर में घरों और प्रत्येक धार्मिक स्थलों को मोमबत्तियों से सजाया जाता है। जिसके बाद एक विशेष पूजा का भी आयोजन किया जाता है, जिसे पंचागना पूजा कहते हैं।
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Panchagana pooja- पंचागना पूजा
पंचागना पूजा में मंदिरों या घरों में एक चौकी सजाई जाती है, जिसपर पंचागना ( हल्दी, चंदन और कुमकुम का लेप) बनाया जाता है। इसके ऊपर कलश में कच्चे चावल और फूल रखा जाता है। हिंदू धर्म की सभी पूजा में आम की पत्तियाँ और नारियल का का इस्तमाल शुभ माना जाता है। इसी तरह उगादि में भी आम की पत्तियाँ और नारियल का फल चढ़ाया जाता है। आम की पत्तियों का इस्तेमाल पूजा के दिन घर के द्वार तोरण लगाने के लिए किया जाता है।
पंचागना पूजाके बाद नव ग्रह पूजा (नौ ग्रहों की पूजा) होती है और मंत्रों के जाप से पूजा समपन्न होती है। पूजा समाप्त होने के बाद सभी छोटे अपने बड़ों का पैर छूते हैं और सभी बड़े नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए साल भर खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं।
उगादि के नव वर्ष पर दक्षिण भारत के कई स्थानों पर तरह-तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है, जिनमें ज्यादातर युवा बढ़-चढ़ कर शिरकत करते हैं। इन प्रतियोगिताओं में रंगोली प्रतियोगिता, तोरण बनाना और कलश सजानेजैसी प्रतियोगिताएं खासी दिलचस्प होती हैं। इसके अलावा क जगहों पर कवि सम्मेलनों का भी आयोजन किया जाता है, जो नव वर्ष का शाम में चार-चाँद लगा देता है।
नव वर्ष के दिन जहाँ कन्नड़ में ‘उगाडी हब्बाडा शुभाशायागालु’ (उगाडी मुबारको हो) कह कर एक-दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं, वहीं तेलुगु में उगादि पंडुगा और उगादि शुभाकांकशालु कह कर नए साल की बधाई दी जाती है।
किसी भी पर्व पर खास पकवान बनाने का प्रचलन हर धर्म में होता है। उगादि भी इस कवायद से परे नहीं है। आंध्र प्रदेश और तेंलगाना में उगादि के दिन पुलिहोरा, बोब्बाटलु और पछाड़ी जैसे दक्षिण भारत के मशहूर पकवान बनाए जाते हैं। इनमें पछाड़ी सबसे अहम है। यह चटनी की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
पछड़ी कई चीजों मसलन नीम की पत्ती, मिर्च, कच्चा आम, नमक और हल्दी से बनाया जाता है। जिसके कारण इसका स्वाद थोड़ा मीठा, तीखा, खारा और नमकीन होता है। इसके अलावा उगादि के दिन आम का अचार खाना शुभ माना जाता है।
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New year festival in different Countries of the World-दुनिया के विभिन्न देशों में नए साल का पर्व
सबसे पहले नव वर्ष का उत्सव 4000 साल पहले बेबीलोन में मनाया जाता था। नए साल का ये जश्न 21 मार्च को, वसंत ऋतु के आगमन की तिथि के रूप में मनाया जाता था।
हालांकि प्राचीन रोम में पहली बार 1 जनवरी को नया साल मनाया गया था। रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने रोम में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, जिसके बाद दुनिया में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का जश्न मनाया गया था।
वहीं हिब्रू मान्यताओं में नव वर्ष का उस्तव ग्रेगरी कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा सृष्टि की रचना करने में लगभग सात दिन लगे थे। हिब्रू नव वर्ष 4 सितंबर से 4 अक्टूबर के बीच में मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई देशों में ग्रेगरी कैलेंडर के मुताबिक अलग अलग महीनों में भी नव वर्ष मनाया जाता है।
इसके अतिरिक्त इस्लाम में मुहर्रम के दिन नए साल का जश्न मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के बारे में मान्यता है कि यह एक चन्द्र आधारित कैलेंडर है, जिसमें बारह महीनों में 33 वर्षों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नव वर्ष प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग अलग महीनों में पड़ता है।
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Reference-
2020, Ugadi, Wikipedia
2020, उगादि तेलगु नव वर्ष, विकिपीडिया