brahman ka putra – Vikram betal story in hindi
बेताल पेड़ की शाखा से प्रसन्नता पूर्वक लटका हुआ था,तभी विक्रमादित्य ने फिर वहां पहुंच कर, उसे पेड़ से उतारा और अपने कंधे पर डाल कर चल दिए। बेताल ने नई कहानी सुनानी शुरू कर दी।

उदयपुर में एक बहुत ही धार्मिक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण और उसकी पत्नी के पास ईश्वर का दिया सब कुछ था। ईमानदारी के साथ जीवन जी रहे थे। पर दुर्भाग्य से उनके कोई संतान न थी। पुत्र की प्राप्ति के लिए हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करते रहते थे।
1 दिन ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुन ली और ब्राह्मणी ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह दोनों बहुत खुश थे। उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद किया तथा गरीबों को खाना भी खिलाया।
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वह दोनों अपने पुत्र को सर्वगुण संपन्न बनाना चाहते थे। उन्होंने बालक को प्रेम और दयालुता का पाठ पढ़ाया। तथा उत्तम शिक्षा दी। धीरे-धीरे बालक बड़ा होकर युवक बन गया।
वह बालक बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी था शहर में सभी लोग खुद की प्रशंसा करते थे। ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने उसके विवाह के लिए एक कन्या ढूंढने शुरू कर दी। परंतु 1 दिन उनका पुत्र बीमार पड़ गया। शहर के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक की चिकित्सा तथा ईश्वर की प्रार्थना बेकार हो गई थी 1 माह के बाद युवक की मृत्यु हो गई।
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उनके माता-पिता का रो रो कर बुरा हाल था तभी उनकी करुण विलाप सुनकर एक साधु उनके पास आया उसने मृत बालक तथा उनके माता-पिता को देखा उसके मन में एक विचार आया।
“ उसने सोचा मैं अपना पुराना शरीर त्याग कर एक युवक के शरीर में प्रवेश कर सकता हूं।” ऐसा सोचकर साधु पहले थोड़ी देर रोया, सिरसा और फिर उसने ध्यानमग्न अवस्था में आंखें बंद कर ली। उसी समय युवक ने अपनी आंखें खोल दी।आश्चर्यचकित ब्राह्मण दंपत्ति अपने पुत्र को सीने से लगा कर रोने लगे।
बेताल ने राजा से पूछा, “ क्या आप बता सकते हैं साधु पहले रोए, दिल होते हैं। ऐसा क्यों?” राजा विक्रमादित्य ने कहा, “ शरीर छोड़ने के कारण दुखी साधु पहले रोया और फिर पुराने शरीर को छोड़ मजबूत शरीर में प्रवेश करने की प्रशंसा में हंसा।”
विक्रमादित्य के उत्तर से प्रसन्न बेताल राजा को छोड़कर फिर से उड़कर पीपल के पेड़ पर चला गया।