फूलों की घाटी में एक गांव था। गांव के बाहर हरियाली और खेत थे। पहाड़ी से उत्तरता हुआ एक पतला झरना खेतों और मैदानों से होकर बह रहा था दूर मैदान में चौपाए घास चर रहे थे।
बहते पानी के पास चार-पांच लड़के खड़े थे और पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े पानी में फेंक रहे थे। उधर ही एक साधु जा रहा था। बच्चों को पानी में पत्थर के टुकड़े फेंकते देखकर साधु पूछा “बच्चों क्या है?”
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“बाबा विच्छू है। बहुत जहरीला उसी को मार रहे हैं बच्चे बोले। बच्चों को पत्थर मारने को मना करते हुए साधु उस ओर बढ़ा और पानी में बहते विच्छू को निकालने लगा साधु ने हाथों की अंजुली बनाकर पानी सहित विच्छू को उठाया।
पानी से थोड़ा ही ऊपर उठा पाया कि बिच्छू ने डंक मार दिया। साधु का हाथ हिल गया और बिच्छू पानी में गिरकर फिर बहने लगा। साधु ने बिच्छू को फिर पकड़कर उठाया। पानी से थोड़ा ऊपर आते ही बिच्छू ने फिर डंक मार दिया बिच्छ फिर पानी में गिर गया और बहने लगा साधु फिर हाथ झटककर रह गया। Bichhoo aur sant
इस प्रकार साधु बार-बार बिच्छू को पकड़कर निकालता और वह बार-बार पानी में गिर जाता। अंत में साधु ने विच्छू को निकालकर झाड़ी में फेंक दिया।
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साधु को सब बच्चे भौचक्के होकर देख रहे थे। एक बच्चे ने साधु से पूछा, “बाबा, बिच्छू आपको बार-बार डंक मारता रहा। आपके हाथ में दर्द होता रहा और आपने उसे बचाकर झाड़ी में फेंक दिया। उसे जान से मार देना चाहिए था।”
बच्चों की बात सुनकर साधु थोड़ा मुस्कराया, उसने अपनी झोली से बिछू का जहर उतारने की एक दवा निकाली और उसे हाथ पर मलता हुआ बोला, “बच्चों, बिच्छू तो डंक मारता ही है। डंक मारना इसका स्वभाव है।
मैं हूं एक साधु। मेरा धर्म है जान बचाना। जब यह एक छोटा जीव होकर अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता, तो भला में मनुष्य होकर अपने धर्म को क्यों छोड़ दूं इतना कहकर साधु आगे बढ़ गया।