- 1. बुद्धिमान भिखारी | 15+ Spacial Bhagwan ki Kahani (Shankar, Krishna)
- 2. ब्रह्मा ऋषि वशिष्ठ | विश्व की सर्वश्रेष्ठ धार्मिक कहानियों का संग्रह
- 3. अगस्त्य ऋषि और असुर | भगवान की कहानियाँ
- 4. नारद मुनि | धार्मिक कहानियाँ
- 5. शनि | Bhagwan ki Kahani
- 6. लक्ष्मी, सरस्वती और विष्णु | धार्मिक कहानियाँ
- 7. भगवान बुद्ध | भक्त और भगवान की कहानी
- 8. वेदवती | धार्मिक कहानियाँ
- 9. कच और देवयानी | भगवान की कहानियाँ
- 10. दुर्गा | विश्व की सर्वश्रेष्ठ धार्मिक कहानियों का संग्रह
- 11. लक्ष्मी | Bhagwan ki Kahani
- 12. यम कुमार | Bhagwan ki Kahani in hindi
- 13.अगस्त्य ऋषि का जन्म | भगवान की कहानियाँ
- 14. ज्ञानी कसाई | भगवान की कहानियाँ
- 15. घमंडी देवता | Bhagwan ki Kahani in hindi
- भगवान की कहानी Bhagwan ki kahani | Hindi Kahaniya Fairy Tales Hindi kahani 2019 | Bedtime Stories
1. बुद्धिमान भिखारी | 15+ Spacial Bhagwan ki Kahani (Shankar, Krishna)
एक आश्रम में दो सन्यासी रहते थे। एक बार पूजा पाठ के बाद वे दोनों भोजन करने ही वाले थे कि वहां एक भिखारी आ गया। भिखारी उनसे भोजन मांगने लगा। सन्यासियों ने उसे भोजन देने से मना कर दिया।
भिखारी कहने लगा हैं, “हे सन्यासियों, आप लोग किसकी पूजा करते हैं? ” सन्यासी बोले, ” हम वायु देवता पवन की पूजा करते हैं। वही प्राण है।” इसके बाद भिखारी ने पूछा, “आप लोग भोजन करने से पहले किसे भोग लगाते हैं? ” वे बोले, ” हम पवन या प्राण को ही भोग लगाते हैं।”
इस पर भिखारी कहने लगा हैं, “हे सन्यासियों आप यह तो जानते ही होंगे कि प्राण तो सभी जीवो में होते हैं।”
सन्यासी बोले, “बिल्कुल, हम यह बात अच्छी तरह से जानते हैं।” इस पर भिखारी बोला, मुझे भोजन देने से इंकार करके आप मेरे अंदर स्थित प्राण को भोग लगाने से इंकार कर रहे हैं, जबकि आपने भोजन तैयार ही प्राण के लिए किया है। सन्यासी भिखारी की बातें चुपचाप सुनते रहे। उन्हें अपनी अज्ञानता पर बहुत शर्म आई। उन्होंने भिखारी को भोजन दे दिया।
2. ब्रह्मा ऋषि वशिष्ठ | विश्व की सर्वश्रेष्ठ धार्मिक कहानियों का संग्रह
वशिष्ठ भारतीय इतिहास से सबसे प्रसिद्ध ऋषि है। वे अपने क्रोध पर नियंत्रण कर चुके थे। यज्ञ और धर्म ग्रंथों के ज्ञान मैं वे सर्वश्रेष्ठ थे।
वे सूर्यवंश के राजपुरोहित थे। इसी वंश में राम का जन्म हुआ था। वशिष्ठ ने रावण को वेद पढ़ाने से मना कर दिया था तो रावण ने उन्हें बंदी बना लिया था। तब वशिष्ठ ने उसे श्राप दिया था कि 1 दिन कोई सूर्यवंशी ही उसके वंश का नाश करेगा।
वशिष्ठ की गाय कामधेनु थी। जब विश्वामित्र ने कामधेनु को छीनने का प्रयास किया था तभी से वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच बैर हो गया था। हालांकि वशिष्ठ की शक्तियों के सामने विश्वामित्र भी की झुकते थे।
वशिष्ठ का 3 बार जन्म हुआ था। तीनों जन्मो में अरुंधति उनकी पत्नी बनी थी बाद में वे ध्रुव तारे की परिक्रमा करने वाले 7 तारों सप्त ऋषि ने स्थान पाने में सफल हुए।
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माता सरस्वती के जन्म की कहानी
3. अगस्त्य ऋषि और असुर | भगवान की कहानियाँ
इल्वल और वातापी दो असुर भाई थे जो ब्राह्मणों से घृणा करते थे। उन्होंने ब्राह्मणों को मारने की योजना बनाई। इल्वल कोई भी रूप धारण कर सकता था और वातापी के पास मरे हुए को जीवित करने की कला थी।
एक दिन उन्होंने महान ऋषि अगस्त्य को मारने का निश्चय किया उन्होंने योजना बनाई की इल्वल बकरी का रूप धारण कर लेगा और वातापी उस बकरी को मार कर अगस्त्य को खिला देगा।
इसके बाद वातापी अपनी कला का इस्तेमाल करके इल्वल को फिर से जीवित कर देगा। इसके बाद इल्वल अगस्त्य का पेट फाड़कर बाहर निकल आएगा और अगस्त्य की मृत्यु हो जाएगी।
अगस्त्य ऋषि यह षड्यंत्र समझ गए। उन्होंने दोनों भाइयों को सबक सिखाने के लिए निश्चय किया। वातापी के कहने पर अगस्त्य ने मांस खा लिया लेकिन वातापी इल्वल को फिर से जीवित कर पाता उसके पहले ही अगस्त्य ने वह मांस पचा लिया और इल्वल मरा ही रह गया।
4. नारद मुनि | धार्मिक कहानियाँ
नारद मुनि एक गंधर्व थे एक यज्ञ के दौरान उन्हें सुंदर दासियां दिखाई दी। उनका मन विचलित हो गया। पार्वती के पिता दक्ष यह देख कर बहुत क्रोधित हुए। दक्ष ने नारद को श्राप दे दिया कि अगले जन्म में दासी बनेंगे। अगले जन्म में नारद और उनकी माता ऋषियों की सेवा करने लगे। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर देवताओं ने उन्हें अपना भोजन चखने की अनुमति दे दी।
ऋषि यों के पवित्र भोजन से उनका हृदय शुद्ध हो गया और नारद उनके शिष्य बन गए। अपनी माता की मृत्यु के बाद नारद ईश्वर की खोज में वन में चले गए। एक दिन उन्हें ईश्वर का स्वरूप दिखा जो कहने लगा जब तुमने मुझे एक बार देख ही लिया है तो तुम्हारे मन में मेरे साथ रहने की इच्छा और बलवती होगी तुम एक दिन स्वर्ग में मुझसे मिलोगे। अपनी मृत्यु के बाद उन्हें दिव्यता प्राप्त हुई और वह भगवान के साथ रहने लगे।
5. शनि | Bhagwan ki Kahani
हरिदास नाम के एक ब्राह्मण को एक बार आवाज सुनाई दी, “मैं साडे 7 घंटे तक तुम्हारे राजा को परेशान करता रहूंगा।” हरिदास डर गया। उसने यह बात अपनी पत्नी को बता दी। पत्नी समझ गई कि वह आवाज शनि की थी। वह कहने लगी, “अपने राजा की रक्षा करना तुम्हारा कर्तव्य है। तुम उसकी परेशानियां अपने सिर पर ले लो।”
जब हरिदास को शनि की आवाज दोबारा सुनाई दी तो उसने कह दिया कि राजा की परेशानियां वह स्वयं खेलने को तैयार है। शनि मान गए और कहने लगे, “ठीक है। तुम्हारा शंकर काल अब शुरू होता है।”
1 दिन हरिदास पूजा करने नदी तट पर गया। वहां उसे दो तरबूज मिले जिन्हें वह घर ले आया उन। इस बीच दो राजकुमार लापता हो गए। सिपाही उन्हें ढूंढने निकल पड़े शनि ने दोनों तरबूज को राजकुमारों के सिरौ की तरह बना दिया।
सिपाहियों ने राजकुमारों की हत्या के आरोप में हरिदास को गिरफ्तार कर लिया। राजा ने हरिदास को मृत्युदंड का आदेश दे दिया। उसे मौत के घाट उतारा ही जाने वाला था कि हरिदास का संकट काल पूरा हो गया। दोनों राजकुमार सुरक्षित लौट आए। हरिदास को छोड़ दिया गया।
6. लक्ष्मी, सरस्वती और विष्णु | धार्मिक कहानियाँ
ब्रह्मा ने सृष्टि ग्रह नक्षत्र और पृथ्वी पर जीवन की रचना की और फिर से व्यवस्थित किया। अब इसे सही तरीके से संचालित करना विष्णु का काम था। विष्णु ने सरस्वती से कहा कि वे अपने ज्ञान का इस्तेमाल जीवो और मनुष्यों में सद्भाव बनाए रखने के लिए करें। हालांकि उन्हें समझ में आ गया कि सद्भाव बनाए रखने के लिए धन समृद्धि की आवश्यकता होगी जो लक्ष्मी ही दे सकती है। विष्णु ने लक्ष्मी से सहायता मांगी।
अब प्रश्न खड़ा हुआ कि लक्ष्मी बड़ी है या सरस्वती अर्थात धन बड़ा है या ज्ञान। दोनों के बीच वाद विवाद होने लगा। विष्णु बीच में आए उन्होंने समझाया कि ज्ञान के सहारे वेब लिख पढ़ सकते हैं लेकिन धन के सहारे वह पुस्तकें और कलम तक नहीं पा सकते जो ज्ञान के लिए आवश्यक है।
7. भगवान बुद्ध | भक्त और भगवान की कहानी
बुध का जन्म प्राचीन कपिलवस्तु नगरी में राजा शुद्धोधन और रानी माया के घर हुआ था। वे भगवान विष्णु के अवतार थे। उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था। सिद्धार्थ का महल की सुख-सुविधाओं में कभी नहीं लगता था। वे आम आदमी की पीड़ा देखकर उदास हो जाते थे।
सांसारिक मामलों में अपने बेटे की रुचि ना देख कर शुद्धोधन ने अपने पुत्र सिद्धार्थ का विवाह एक सुंदर युवती यशोधरा से करा दिया। यशोधरा से उन्हें एक बेटा भी हुआ। लेकिन महल में रहते हुए भी सिद्धार्थ अन बने ही बने रहे।
एक रात वे अपने परिवार को छोड़कर,चुपके से महल से निकल गए। उन्होंने जंगल में सन्यासी का जीवन जीने का निश्चय किया। वे जंगल में रहकर ध्यान करने लगे और इस प्रकार ध्यान करते करते उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और वे बुध अर्थात ज्ञानी कहलाने लगे।
गया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें निर्वाण या मोक्ष प्राप्त हुआ। उन्होंने जगह-जगह घूमकर अपने संदेश का प्रचार प्रसार किया। बुद्धि की शिक्षा पर आधारित धर्म का नाम बौद्ध धर्म है।
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The story of Vakratund
8. वेदवती | धार्मिक कहानियाँ
राजा रथ ध्वज ने लक्ष्मी पूजा की अपनी पारिवारिक परंपरा को भंग कर दिया था। कुछ ही दिनों में उसने अपना राज्य गँवा दिया। उसके बेटे ने कठोर तपस्या कि और लक्ष्मी से उनके परिवार में जन्म लेने की विनती की।
जल्द ही उन्होंने अपना राज्य फिर से जीत लिया। रथ ध्वज एक बेटे के घर पर लक्ष्मी ने जन्म लिया। पैदा होते ही वह वेद मंत्रों का उच्चारण कर रही थी, इसीलिए उसका नाम वेदवती रख दिया गया।
जब वह बड़ी हुई तो उसने विष्णु से विवाह करने का निश्चय किया।
कठोर तपस्या करने के लिए तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ी, उसे वरदान मिला था कि अगले जन्म में उसका विवाह विष्णु से होगा।
वेदवती ने तपस्या शुरू कर दी। रावण भी उससे विवाह करना चाहता था। उसने पार्वती की तपस्या भंग करा दी उसने विष्णु का अपमान भी किया। वेदवती ने उसे श्राप दिया कि वह अगले जन्म में उसके विनाश का कारण बनेगी। ऐसा श्राप देकर वह आग में कूद गई।
9. कच और देवयानी | भगवान की कहानियाँ
सुरो और असुरों के बीच सदैव लड़ाई होती रहती थी। असुर मार दिए जाते तो उनके गुरु शुक्राचार्य उन्हें मृत संजीवनी विद्या से दोबारा जीवित कर देते थे।
देवता भी यह विद्या सीखना चाहते थे। उन्होंने अपने गुरु बृहस्पति के सुंदर पुत्र कच को शुक्राचार्य के आश्रम भेजा। शुक्राचार्य की बेटी देवयानी को देखते ही कच को उससे प्यार हो गया।
कच के आने की बात जब असुरों को पता चली तो उन्होंने उसे मार डाला। उसकी अस्थियाँ और अब शेष असुरों ने शुक्राचार्य की मदिरा में मिला दी, जीसे शुक्राचार्य पी गए। जब देवयानी को कच के मारे जाने की बात पता चली तो उसने अपने पिता से उसे जीवित करने को कहा।
शुक्राचार्य कच को अपने पेट से बाहर निकालते तो वे स्वयं ही मर जाते। उन्होंने कच को ही मृत संजीवनी विद्या सिखा दी।
इस प्रकार शुक्राचार्य ने कच को दोबारा जीवित कर दिया। इस तरह दोनों का जीवन बच गया। जब लौटकर स्वर्ग गया तो उसने शुरू को मृत संजीवनी विद्या सिखा दी।
10. दुर्गा | विश्व की सर्वश्रेष्ठ धार्मिक कहानियों का संग्रह
भैंस के सिर वाले असुर महिष ने कठोर तपस्या की और ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि कोई मनुष्य या देवता उसे नहीं मार सकता।
शक्तिशाली होकर उसने देवताओं पर हमला कर दिया और स्वर्ग पर आधिपत्य जमा लिया। देवताओं को स्वर्ग छोड़ना पड़ गया और वे पृथ्वी पर भटकने लगे। उन्हें अपनी हालत पर बहुत क्रोध आ रहा था। उनके चेहरे चमकने लगे। इस चमकते देवी दुर्गा का जन्म हुआ। हर देवता ने उसे 11 अस्त्र-शस्त्र दिया। शेर पर सवारी करते हुए दुर्गा ने भयंकर गर्जना की। महिष गर्जना सुनकर अपने महल से बाहर आया।
दुर्गा ने उसकी असुर सेना को मार डाला। महिषासुर ने कई रूप बदले। अंत में उसने भैंस का रूप धारण किया और दुर्गा पर हमला कर दिया। दुर्गा ने महिषासुर को त्रिशूल से मार डाला। इसलिए सब उनकी पूजा करते हैं।
11. लक्ष्मी | Bhagwan ki Kahani
लक्ष्मी को धन,सुंदरता और समृद्धि की देवी माना जाता है। सुनहरे रंग की लक्ष्मी के चार हाथ होते हैं और वे गुलाबी कमल पर आसीन रहती हैं। दोनों ऊपरी हाथों में वह कमल लिए रहती हैं और नीचे वाले हाथों से आशीर्वाद देती है। लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति ‘लक्ष्य’ से हुई है। उनके चारों हाथ मानव जीवन के लक्ष्यों के सूचक है। यह है धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष। लक्ष्मी का वाहन रात में जागने वाला पक्षी उल्लू है।
लक्ष्मी के दोनों और दो हाथी खड़े दिखाए जाते हैं जो अपनी सुन्डो से पानी का छिड़काव करते रहते हैं। लक्ष्मी विष्णु की पत्नी है। लक्ष्मी को श्री भी कहा जाता है। उन्हें विष्णु की स्त्री उर्जा भी कहा जाता है। लक्ष्मी और विष्णु के पुत्र कामदेव प्यार और कामना के देवता है।
12. यम कुमार | Bhagwan ki Kahani in hindi
एक बार मृत्यु के देवता यम राज ने भूलॉक की एक स्त्री से विवाह किया और वहीं पर रहने लगे। उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम यमकुमार रखा गया। यम को जल्दी ही पता लग गया कि उसकी पत्नी बहुत चालाक है।
वह हमेशा उनसे लड़ती रहती थी, इसलिए वे परेशान होकर यमलोक लौट गए। उनकी पत्नी ने यम कुमार को कुछ नहीं सिखाया, इसलिए जब वह बड़ा हुआ तो कुछ करने लायक नहीं रहा।
एक रात को यम अपने बेटे के सपने में आए और उससे बोले कि उसे औषधि के बारे में सीखना चाहिए। जल्द ही यम कुमार वैद्य बन गया। यम ने उससे कहा, ” जब भी तुम किसी रोगी के निकट मुझे देखो, तो समझ जाया करो कि वह मरने वाला है। ऐसे रोगी का तुम उपचार करने से इंकार कर दिया करो।”
इस प्रकार, यम कुमार केवल उन्हीं रोगियों का उपचार करता जो बच जाने वाले होते। उसका बहुत नाम हो गया। 1 दिन राजकुमारी बीमार पड़ गई। दूर-दूर से कई वैध उसका उपचार करने आए, लेकिन कोई भी उसे ठीक नहीं कर पाया। जब यमकुमार उसे देखने गया तो उसने पाया कि उसके पिता यम भी राजकुमारी के पास है।
वह समझ गया कि राजकुमारी अब नहीं बचेगी। यम ने अपने पिता से विनती की, ” पिताजी, राजकुमारी को मत ले जाइए। वह बहुत कम उम्र की है और सुंदर है।” यम ने उत्तर दिया, ” मुझे अपना कर्तव्य निभाना है, लेकिन तुम्हारे लिए मैं उसे ले जाने के लिए 3 दिन रुक सकता हूं।”
यम कुमार ने राजकुमारी को बचाने के लिए एक योजना बनाई। जब 3 दिन बाद यम आए तो वह चिल्लाने लगा, ” मां! पिताजी आए हैं। तुम उनसे मिल लो।” यम अपनी पत्नी से नहीं मिलना चाहते थे अपने बेटे की आवाज सुनकर वे राजकुमारी को लिए बिना ही तुरंत भाग गए। यम कुमार ने इस प्रकार राजकुमारी की जान बचा ली। राजा उससे इतना प्रसन्न हुए कि उसने राजकुमारी का विवाह यम कुमार के साथ ही करा दिया।
13.अगस्त्य ऋषि का जन्म | भगवान की कहानियाँ
देवराज इंद्र ने अग्नि देव और वायु देव को बुलाकर कहा कि जाओ और सारे असुरों का नाश कर दो। अग्नि और वायु शक्तिशाली थे। उन्होंने अधिकतर असुरों को मार डाला लेकिन कुछ समुद्र में छिप गए। अग्नि और वायु ने लौटकर इंद्र से कह दिया कि बचे हुए असुरों को मार पाना उनके बस का नहीं है।
इंद्र बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने अग्नि और वायु को आदेश दिया, ” चाहे तुम्हें समुद्र का मंथन क्यों ना करना पड़े, लेकिन हर हाल में असुरों को मार कर आओ।”
अग्नि और वायु ने कहा कि समुंद्र में तो बहुत सारे जीव जंतु रहते हैं और मंथन करने से वे सब कठिनाई में पड़ जाएंगे। देवराज इंद्र नहीं माने और बोले, ” समुंद्र ने दुष्टों को आश्रय दिया है, इसलिए उसे भी दंड भुगतान करना पड़ेगा। तुम लोग भी मेरे आदेश का पालन नहीं कर रहे हो। मैं तुम्हें पृथ्वी पर मनुष्य रूप में जन्म लेने का साथ देता हूं।”
इसके बाद अग्नि देव ने अगस्त्य ऋषि के रूप में और वायु ने वशिष्ठ ऋषि के रूप में जन्म लिया।
14. ज्ञानी कसाई | भगवान की कहानियाँ
कौशिक नाम का एक युवक वेदों का अध्ययन करने आश्रम जाना चाहता था। उसके बूढ़े माता-पिता ने उससे वहीं रुकने और उनकी देखभाल करने का अनुरोध किया। लेकिन कौशिक उन्हें छोड़ कर चल दिया। समय के साथ साथ वह वेदों में पारंगत हो गया और साधु बन गया।
1 दिन, किसी चिड़िया ने उस पर बीट कर दी। क्रोध में आकर कौशिक ने उस चिड़िया पर अपनी अंगारों निगाह डाली और उसे जलाकर राख कर दिया। इसके बाद वह भिक्षा मांगने चल पड़ा। एक महिला अपने काम में व्यस्त थी। उसने कौशिक से इंतजार करने करने को कहा।
कौशिक ने इसे अपना अपमान माना और उसे श्राप दे दिया। महिला ने जवाब में उससे कहा की सन्यासी को अपने क्रोध पर नियंत्रण करना चाहिए और जानवरों की हत्या नहीं करनी चाहिए। उस महिला ने कौशिक को मिथिला जाकर महान धर्मात्मा धर्म व्याध से मिलने और उनसे सद्गुण सीखने की भी सलाह दी।
कौशिक मिथिला की ओर चल पड़ा लेकिन जब वह वहां पहुंचा तो उसने पाया कि धर्मव्याध मांस की दुकान चला रहे हैं।
वह हैरत में पड़ गया। धर्मव्याध ने उसे उस चिड़िया की याद दिलाई जिसे कौशिक ने अपने नेत्रों से ही जलाकर राख कर दिया था। उन्होंने कौशिक ने कहा कि मांस बेचकर वह तो सिर्फ अपने पारिवारिक पेशे का पालन कर रहा है। धर्मव्याध ने उसे समझाया कि खेती करने वाला किसान भी अनजाने में कीड़े मकोड़ों को रौंदकर मार देता है। इसके बाद धर्मव्याध ने अपने परिवार का उससे परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि अपने मां-बाप की सेवा करके और पिता के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करके उसे प्रसन्नता होती है।
कौशिक को अपनी गलती का एहसास हुआ। अपने कर्तव्यों की अवहेलना करने पर उसे शर्म भी महसूस होने लगी। वह समझ गया कि मनुष्य का सच्चा सद्गुण अपने धर्म का पालन करने में है। उसने धर्मव्याध का आभार जताया और अपने बूढ़े मां बाप के पास चला गया। उसके मां-बाप उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुए।
15. घमंडी देवता | Bhagwan ki Kahani in hindi
असुरों ने एक बार देवताओं को पराजित कर दिया और पूरे विश्व पर राज करना शुरू कर दिया। उन्होंने हर जगह विनाश करना शुरू कर दिया देवता सर्वशक्तिमान और सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनसे फिर से असुरों से योग करने को कहा। इस बार देवता जीत गए और उन्हें अपना राज्य वापस मिल गया।
देवताओं ने अपनी जीत की खुशी मनाना शुरू कर दिया और अपने कर्तव्य का पालन करना भूल गए। घमंड में चूर होकर वे यह भी भूल गए कि उन्हें ब्रह्मा के वरदान की वजह से जीत मिली है। ब्रह्मा ने देवताओं को सबक सिखाने का निश्चय किया। उन्होंने एक यक्ष हो देवताओं के राज्य में भेजा। जब देवताओं के राजा इंद्र ने यक्ष को देखा तो उन्होंने उनके पास अग्नि देवता को भेजा पूर्णविराम अग्नि ने कहाहूं, “मैं मैं शक्तिशाली देवता हूं और सब कुछ जला सकता हूं।”
यक्ष ने उन्हें घास एक तिनका देते हुए पूछा,” क्या तुम इसे जला सकते हो?”
अग्नि ने हंसते हुए कहा, ” इस मामूली तिनके को तो मैं एक पल में जला सकता हूं।” अग्नि ने उसे जलाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे। लज्जित होकर अग्नि देवता लौटाए। इसके बाद इंद्र ने पवन को भेजा। पवन ने यक्ष से कहा कि वह किसी भी चीज को उड़ा सकता है। यक्ष ने उसे वही तिनका देते हुए पूछा, “क्या इसे भी उड़ा सकते हो?” पवन देव ने अपनी हथेली पर तिनका का रखा और उसे फूंक मारी लेकिन तिनका हिला तक नहीं। लज्जित होकर पवन देव भी वापस लौट आए।
इसके बाद इंद्र स्वयं गए। यक्ष ने उनसे कहा, तुम देवता गण इतने घमंडी हो गए हो कि यह भी नहीं पहचान पा रहे हो कि मैं ब्रह्मा का दूत हूं वह विराम मैं तुम लोगों को यह एहसास कराने आया हूं कि सर्वशक्तिमान ब्रह्मा के कारण ही तुम्हारी जीत हो सकी है। अपना अहंकार छोड़ो और अपने धर्म का पालन करो।