आयुर्वेदीय चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक औषधियां – Ayurvedic Treatment & Ayurvedic Medicine

आयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक एवं केवल मानसिक नहीं होता अपितु  यदि शारीरिक रोग हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव मन पर और यदि मानसिक हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव शरीर पर निश्‍चित रूप से पड़ता है ।

इसी कारण आयुर्वेद का एक सफल वैद्य अपने रोगी के केवल रोग के लक्षण को नहीं देखता वह रोग के लक्षण के साथ-साथ रोगी के मानसिक स्थिति, पारिवारिक स्थिति, पर्यावरणीय स्थिाति आदि बातों का भी ध्‍यान रखता है । इस प्रकार  वह एक ही रोग से ग्रस्‍त भिन्‍न-भिन्‍न रोगियों को उनके प्रकृति के अनुसार भिन्‍न-भिन्‍न उपचार अर्थात आहार-विहार एवं औषधि देता है ।

निदान अर्थात रोग पहचानना और उपचार अर्थात रोग का शमन करना दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । इसी प्रकार आयुर्वेदीय चिकित्‍सा और आयुर्वेदिक औषधियां एक दूसरे के पूरक हैं । इन्‍हें एक दूसरे से पृथ्‍क नहीं किया जा सकता । फिर भी अध्‍ययन की दृष्टिकोण से इस आलेख में आयुर्वेदीय चिकित्‍सा पदृयति एवं आयुर्वेदिक औषधियों की विवधता पर विचार करेंगे ।

आयुर्वेदीय चिकित्‍सा पदृयति-Ayurvedic Medicine System

आयुर्वेदीय चिकित्‍सा पदृयति-
Ayurvedic Medicine System

आयुर्वेद में मुख्‍य रूप से संशोधन तथा संशमन चिकित्‍सा पर जोर दिया जाता है । संशोधन के अंतर्गत शरीर में बढ़े हुये दोषों को बाहर निकाला जाता है तथा संशमन में बढ़ हुये दोषों को शरीर के अंदर ही नष्‍ट किया जाता है । दोष के रूप त्रिदोष कफ, वात एवं पित को लिया जाता हे ।

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किसी भी चिकित्सक की पद्धति में पहले रोग का लक्षण कारण और फिर उसका उपचार किया जाता है । आयुर्वेद में रोगों के कारण जानने को निदान कहते हैं तथा रोगों किस चमन की विधि को उपचार कहते हैं संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है ।

रोग-निदान अर्थात रोगों की परीक्षण – Diagnostics

रोगों की परीक्षण हेतु आयुर्वेद में कई पद्धतियां प्रचलित हैं जिनमें प्रमुख है त्रिविध परीक्षा, पंच निदान, छष्ठ विध परीक्षा, अष्ट विध परीक्षा, दश विध परीक्षा आदि ।

त्रिविध परीक्षा निदान के इस विधि में रोगी का तीन प्रकार से परीक्षण किया जाता है पहला रोगी को देखकर दूसरा रोगी को स्पर्श करके और तीसरा रोगी से प्रश्न पूछ कर । 

पंच निदान परीक्षण में रोगी का पांच प्रकार से परीक्षण किया जाता है-1. रोग का कारण जानना (Actiology) 2. रोग उत्पन्न होने के पहले के लक्षण को जानना (Prodromal symptioms) 3. रोग उत्पन्न होने के बाद लक्षण को जानना (Sings symptoms) 4. उपासय (Therapeutic) और पांचवा रोग उत्पन्न होने की प्रक्रिया को जानना (Pathogenesis) ।

अष्ट विध परीक्षण मैं रोगी के नाड़ी, मूत्र, जिव्या, शब्द, स्पर्श, आंख और चेहरा का परीक्षण किया जाता है। इस प्रकार अन्‍येन विधियों द्वारा रोगियों का परीक्षण किया जाता है ।

रोग-निदान अर्थात रोगों की परीक्षण -
Diagnostics

चिकित्सा या उपचार – Ayurvedic Medicine or Ayurvedic treatment

त्रिदोष कफ, वात एवं पित दोष विषमता के कारण रोग उत्पन्न होते हैं इसके निदान के लिए आयुर्वेद ऐसा उपाय करने को कहता है जिससे एक रोग शांत हो जाए परंतु दूसरे किसी रोग की उत्पत्ति ना हो अर्थात किसी भी प्रकार से साइड इफेक्ट ना हो।

दोष विषमता को दूर करने की दो विधि कह गए हैं एक सामान्य और दूसरा विशिष्ट सामान्य विधि में त्रिदोष से घटे हुए दोषों को बढ़ाने का उपाय करके उपचार किया जाता है जबकि विशिष्ट विधि में उत्पन्न दोषों के बड़े हुए मात्रा को घटाने का उपाय करके उपचार किया जाता है। 

आमतौर पर आयुर्वेद में निदानात्‍मक उपचार और उपचारात्‍मक उपचार किया जाता है।  निदानात्‍मक उपचारा में रोगी के परीक्षण करने के बाद त्रिदोष को संतुलित करने के लिये रोगी खान-पान, रहन-सहन शारीररिक क्रिया आदि का एक नियम बना कर उसे संतुलित जीवन जीने के लिये कहा जाता है ।

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जबकि उपचारात्‍मक विधि में आंतरिक उपाय शामिल है जिसके अंतर्गत शोधन ((Detaxification) एवं शमन ((Disease mitigation) शामिल किया जाता है । बाहरी उपचार के रूप में स्‍नेहन अर्थात तैलीय पदार्थ से मालिश करना, स्‍वेदन अर्थात भाप लेना और हर्बल पेस्‍ट अर्थात जड़ी-बुटियों का लेप लगाना किया जाता है ।

आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्‍सा पद्धति वर्तमान में बहत प्रचलित है । इस विधि में पांच क्रिया शामिल है जिसमें पहला वमन कफ प्रधान रोगों के लिये वमन (Vomit) कराया जाता है । दूसरा है विरेचन इसविधि में पित्‍त दोष के निवारण हेतु विरेचन (Purgation) कराया जाता है ।

तीसरा है वस्ति वात रोगों के उपचार के लिये वस्ति कराया जाता है जिसमें एक छोटी से उपकरण को मल द्वार की सहायता से अंदर प्रविष्‍ट कराकर बहार निकाला जाता है । चौथा है-रक्‍तमोक्षण इस विधि अशुद्ध रक्‍त को शुद्ध किया जाता है इसके या शिरा को काट कर अशुद्ध रक्‍त बाहर निकालते है अथवा रक्‍तचूषक प‍रजीवी जंतु का सहारा लिया जाता है ।

पॉंचवा है-नस्‍य इस विधि नाक के छिद्रों द्वारा औषधि प्रविष्‍टकराकर कंठ एवं मस्तिष्‍क का उपचार किया जाता है । पंचकर्म से शरीर बलिष्‍ठ होता है, रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है । इस विधि से कई असाध्‍य रोगों को भी ठीक किया जा सकता है ।

आयुर्वेदिक औषधियां – Ayurvedic Medicine

आयुर्वेद के अनुसार प्रत्‍येक पदार्थ पंचमहाभूतों से हुआ है । ये मांच तत्‍व है वायु, आकाश, अग्नि, जल और पृथ्‍वी । इसी आधार पर त्रिदोष, जिसके कारण रोग उत्‍पन्‍न होते हैं कफ, वात एवं पीत । ये तीनों इन्‍हीं पांच तत्‍वों से मिलकर बने हैं । 

इसके निदान के लिये प्रयुक्‍त औषधि भी इन्‍हीं पांच तत्‍वों से मिलकर बने हैं । द्रव्‍य या औषधि में इसके निर्धारण के लिये पदार्थ रस या स्‍वाद को आधार बनाया गया । जल एवं पृथ्‍वी तत्‍व से मधुर रस का निर्माण होता है इसलिये मीठे स्‍वाद के औषधि में इसकी उपस्थिाति होती है ।

जल एवं अग्नि तत्‍व से अम्‍लीय रस का निर्माण होता जिसका स्‍वाद खट्टा होता है । पृथ्‍वी एवं अग्नि तत्‍व से लवण का निर्माण होता है जिसका स्‍वाद खारा होता है । अग्नि और वायु तिक्‍त रस उत्‍पन्‍न करते जिसका स्‍वाद तीखा होता है। इसी प्रकार पृथ्‍वी और वायु तत्‍व कषाय रस बनाते है जिसका स्‍वाद कसैला होता है ।

रोगकारक कफ में पृथ्‍वी और जल तत्‍व, वात में वायु और आकाश, एवं पित्‍त में अग्नि तत्‍व की प्रधानता होती है । कफ से होने वाले रोग के लिये पृथ्‍वी एवं जल तत्‍व वाले औषधि न देकर अग्नि, आकाश एवं वायु तत्‍व वाले औषधि दिया जाता है ।

पित्‍त दोष से उत्‍पन्‍न रोग के उपचार के लिये अग्नि तत्‍व वाले औषधि न देकर शेष चार तत्‍व वाले औषधि दिया जाता है । इसी प्रकार वात के कारण उत्‍पन्‍न रोग के लिये वायु और आकश तत्‍व वाले औषधि न देकर पृथ्‍वी, जल  एवं अग्नि तत्‍व वाले औषधि दिया जाता है ।

आयुर्वेदिक औषधियां - Ayurvedic Medicines

औषधि के प्रभाव एवं उपचार में उपयोग के दृष्टिकोण से औषधि कई प्रकार के होते है –

  1.  वमन द्रव्‍य- जो वमन कराने के उपयोग में आता है । जैसे-मदन फल ।
  2. विरेचन द्रव्‍य- जो विरेचन कराने में प्रयुक्‍त होता है । जैसे-कर्णिका फल
  3. संग्राही- जो द्रव्‍य मल बांधने वाला हो । जैसे- जीरा
  4. वृहण द्रव्‍य- जो द्रव्‍य पुष्टि या बल प्रदान करने वाला हो । जैसे-नया गुग्‍गुल
  5. लेखन द्रव्‍य- जो मल को बाहर निकालता हो । जैसे -पुराना गुग्‍गल
  6. दीपन द्रव्‍य- जो पाचक अग्नि में वृद्धि करता हो । जैसे-घी
  7. पाचन द्रव्‍य- जो पाचक अग्नि में वृद्धि नहीं करता । जैसे-नागकेसर
  8. शमन द्रव्‍य-जो दोष शोधन करता हो । जैसे-गिलोय
  9. अनुलोमन द्रव्‍य- जो पेट में स्थित वाये को नीचे की ओर करता हो । जैसे-हरड़
  10. स्रंसन द्रव्‍य- जो ठोस मल को बाहर निकालने में मदद करता हो । जैसे-अमलतास
  11. भेदन द्रव्‍य- जो ठोस एवं द्रव दोनों प्रकार के मल को बाहर निकालता हो । जैसे-कुटकी
  12. छेदन द्रव्‍य- जो शरीर में जमे हुये दोष को बाहर निकालता हो । जैसे-शहद
  13. ग्राही द्रव्‍य-जो दीपन और पाचन क्रिया में सहयोगी हो । जैसे-जीरा
  14. वाजीकरण द्रव्‍य – जो कामवासना को बढ़ाता हो । जैसे-शतावरी
  15. स्‍तभन द्रव्‍य-आसाना से हजम होने वाला । जैसे-वत्‍सक
  16. रसायन द्रव्‍य- जो वृद्धावस्‍था के लक्षण को कम करता हो, आयु वृद्धि करता हो । जैसे-गूगल

इसी प्रकार अनेक प्रकार के द्रव्‍य अर्थात औषधि होते हैं, जिन्‍हें एक योग्‍य एवं अनुभव वैद्य रोगी के तासिर के अनुसार प्रदान करके उसे रोगों से मुक्‍त कराने एवं स्‍वस्‍थ जीवन जीने के लिये देता है ।

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आयुवेदीय चिकित्‍सा की विशेषताएं – Characteristics of Ayurvedic Medicine

  1. आयुर्वेदीय चिकित्‍स पद्यति संपूर्ण व्‍यक्तित्‍व की चिकित्‍सा पद्यति है । इस चिकित्‍सा से रोगी के शारीरिक, मानसिक एवं वैचारिक उपचार किया जाता है जिससे उस व्‍यक्ति का संपूर्ण व्‍यक्तित्‍व सुदृढ़ हो सके ।
  2. इस चिकित्‍सा पद्यति में मानव देह को पंचमहाभूत तत्‍व जल, भूमि, अग्नि, वायु और आकाश से बना हुआ मानकर इन्‍हीं पंचभूतों से बने हुये वनस्‍पत्तियों का प्रयोग किया जाता है । इन वनस्‍पत्तियों में रसायन अंतर्निहित होते हैं । वाह्य रूप से कोई रसायन नहीं दिया जाता । इस कारण इनके साइड इफेक्‍ट होने की संभावना नहीं के बराबर होती है ।
  3. इस पद्यति में औषधि से अधिक पथ्‍य अर्थात आहार-विहार क्‍या खाना है ? क्‍या नहीं खाना है ? किस प्रकार की दिनचर्या होनी चाहिये पर विचार किया जाता है ।
  4. आयुर्वेदीय चिकित्‍सा पद्यति लाक्ष्णिक न होकर संस्‍थानिक होता है । अर्थात केवल रोगों के लक्षण का ही परीक्षण नहीं किया जाता अपितु तो रोगी के आहार-विहार, आचार-विचार एवं पारिवाकि-पर्यावरणीय परीक्षण भी किया जाता है ।
  5. वैज्ञानिक शोध एवं अनुसंधान के आधार पर भी आयुर्वेदीय चिकित्‍यसा आज पूर्णत: प्रासंगिक है ।

आयुर्वेदिय चिकित्‍सा पद्यति आज वैकल्पिक चिकित्‍सा के रूप में देश-दुनिया में तेजी से प्रसारित हो रहा है । आयुर्वेद चिकित्‍सा प्रमुख पद्यति रह चुँका है और इसमें वे सारे गुण उपस्थित हैं, जो इसे फिर से एक बार मुख्‍य चिकित्‍सा पद्यति के रूप में स्‍थापित कर सकता है । विश्‍व परिदृश्‍य में देखने पर इस बात की पुरी संभावना दिख रही है कि आयुर्वेद का भविष्‍य उज्‍जवल है और निकट भविष्‍य में यह चिकित्‍सा के क्षेत्र में फिर से अपना परचम लहराने में सफल होगा ।

Reference

A Hindi content writer. Article writer, scriptwriter, lyrics or songwriter, Hindi poet and Hindi editor. Specially Indian Chand navgeet rhyming and non-rhyming poem in poetry. Articles on various topics especially on Ayurveda astrology and Indian culture. Educated best on Guru shishya tradition on Ayurveda astrology and Indian culture.

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