- बवासीर – Piles
- How to cure piles at home in hindi | home remedies for piles | bavasir ka ilaaj | piles treatment – Video
- आयुर्वेद के अनुसार बवासीर – Piles according to Ayurveda in Hindi
- बवासीर के प्रकार – Types of Piles
- बवासीर के लक्षण – Symptoms of Piles
- बवासीर होने के कारण – Reasons of Piles
- बवासीर का आयुर्वेदिक प्रबंधन – Ayurvedic Treatment of Piles
- बवासीर के आयुर्वेदिक जड़ी-बुटी – Ayurvedic Medicines for Piles
- बवासीर के उपचार के कुछ अनुभूत घरेलू उपचार – Home Remedies for Piles
- बवासीर में खान-पान का नियंत्रण – Eating Habits control for Piles
आज खान-पान की अनियमितता विभन्न रोगों का जन्म दे रहा है । केवल स्वाद की दृष्टि से मसालेदार चटपटे लजिज व्यंजन के फेर में हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाते और परिणाम यह होता है कि हम विभिन्न बीमारियों के चपेट में आ जाते हैं ।
आजकल एक बहुत ही कष्टकारक रोग बवासीर आम हो चला है । जो इस रोग से पीडि़त हैं असहनीय दर्द से गुजर रहे हैं । इस रोग के विषय में आयुर्वेद की जानकारी बेहद उपयोगी है । इस आलेख में हम बवासीर का आयुर्वेदिक प्रबंधन पर चर्चा करेंगे ।
बवासीर – Piles
बवासीर एक खतरनाक बीमारी है । इसे पाइल्स के नाम से भी जाना जाता है । यह एक ऐसा रोग जिसमें रोगी को मल त्याग करने बहुत परेशानी होती है । असहनीय दर्द सहना पड़ता है । मलद्वार से रक्त भी प्रवाहित होने लगता है ।
वास्तव में मलाशय के आसपास सुजन होने के कारण यह रोग उत्पन्न होता है । यह सारी परिस्थिति वास्तव में बहुत ही दुखदाई और कष्टप्रद होता है । यह कभी अनुवांशिकी के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी हो सकता है तो कभी कब्जियत के कारण मल के कठोर होने से हो सकता है ।
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आयुर्वेद के अनुसार बवासीर – Piles according to Ayurveda in Hindi
आयुर्वेद में इस रोग को अर्श के नाम से जाना जाता है । यह शरीर में वात, पित्त एवं कफ तीनों दोष के असंतुलन के कारण होता है इसलिये इसे त्रिदोषज भी कहा गया है । वातजनित अर्श में मलद्वार पर मस्सा रहता है किन्तु इससे रक्त स्राव नहीं होता इसकारण इसे शुष्क अर्श कहते हैं । पित्त जनिक अर्श में मस्से से रक्त स्राव होने लगता है । इसकारण इसे आर्द्र अर्श कहते हैं ।
बवासीर के प्रकार – Types of Piles
बवासीर मूलत: दो प्रकार का होता है-
- खूनी बवासीर- इस प्रकार बवासीर में गुदा के अंदर मस्सा रहता है जिससे शौच के समय खून आने लगता है । इसे आंतरिक अर्श भी कहते हैं ।
- बादी बवासीर- इस प्रकार के बवासीर में गुदा के बाहर मस्सा रहता है । प्राय: इसमें रक्त स्राव नहीं होता । इसे वाह्य अर्श भी कहते हैं ।
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बवासीर के लक्षण – Symptoms of Piles
- मल का साफ न होना, शौच करने के बाद भी शौच की इच्छा बना रहना ।
- गुदा के आस-पास मलद्वारा पर कठोर गांठ का होना ।
- मल त्याग करते समय दर्द होना और कभी-कभी रक्त आना ।
- गुदा के पास खुजली व सुजन होना ।
- पेट का भारीपन लगना ।
बवासीर होने के कारण – Reasons of Piles
बवासीर कई कारणों से हो सकता है इनमें प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
- आनुवांशिकता के कारण एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी यह रोग हो सकता है ।
- शौच साफ न होना इस रोग का सबसे बड़ा कारण है । कब्ज के कारण मल सूखा और कठोर हो जाता है जिससे मल द्वार में सुजन हो जाता है ।
- लगातार मानसिक तनाव बने रहने से इस रोग के होने की आशंका रहती है ।
- शारीरिक श्रम में कमी के कारण- यदि शरीर का न्यूतम संचालन भी न हो तो यह रोग हो जाता है ।
- यदि दिन भर खड़़े-खड़े काम किया जाये तो भी इस रोग के होने की आशंका रहती है ।
- लगातार अधिक चटपटे और मसालेदार भोजन करने से भी बवासीर का खतरा बना रहता है ।
- अधिक मात्रा में और नियमित रूप से शराब का सेवन भी इसका एक बड़ा कारण है ।
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बवासीर का आयुर्वेदिक प्रबंधन – Ayurvedic Treatment of Piles
ऐसे बवासीर आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोषज है अर्थात तीनों दोष में असंतुलन के कारण होता है । फिर भी वात दोष के कारण शुष्क अर्श मतलब बादी बवासीर एवं पित्त दोष के कारण आर्द्र अर्श मतलब खूनी बवासीर होता है । ”कारण में ही निवारण है ।” के सिद्धांत के आधार पर इन वात एवं पित्त दोषों का शमन करने पर बवासीर को नियंत्रित किया जा सकता है ।
जहां आधुनिक चिकित्सा पद्यति में इस रोग की गंभीरता पर इसका ऑपरेशन करना अंतिम उपाय है किन्तु यह भी देखा गया है कि ऑपरेशन के बाद यह रोग दोबारा हो जाता है । वहीं आयुर्वेद के अनुसार नियमित रूप से खान-पान को व्यवस्थित करके एवं इनके उपचार के समय पथ्य-अपथ्य का निर्वहन करके इस रोग को मूल से समाप्त किया जा सकता है ।
आयुर्वेद में अर्श के कई उपचार के लिये कई प्रक्रिया बताई गई जिसमें कुछ प्रमुख इस प्रकार है-
- बस्ती प्रक्रिया- बस्ती प्रक्रिया में बवासीर के होने वाले रक्तस्राव और गुदा में होने वाले दर्द को कम किया जाता है । इस प्रक्रिया में मलद्वार द्वारा हर्बल सस्पेंशन दिया जाता है । यह प्रक्रिया मल को साफ करने के साथ-साथ कब्जियत को दूर करता है । जिसे बवासीर का रक्तस्राव एवं दर्द धीरे-धीरे नियंत्रित हो जाता है ।
- अभ्यंग प्रक्रिया- वातदोष के कारण होने वाले शुष्क अर्श के लिये अभ्यंग प्रक्रिया लाभप्रद होता है । इस प्रक्रिया में तेल मालिश के साथ पसीने की सहायता वात को संतुलित किया जाता है । इस प्रक्रिया से बवासीर के कारण होने वाले ऊत्तकीय नुकसान को रोका जा सकता है ।
- क्षार सूत्र प्रक्रिया- इस प्रक्रिया में बवासीर के कारण बने गांठ या मस्से को विशेष धागे की सहायता से बांध दिया जाता है कुछ दिनों पश्चात वह गांठ कट कर बाहर हो जाता है । लेकिन य प्रक्रिया सभी के लिये उपयोगी नहीं होता । रोगी के प्रकृति के अनुसार इसका चयन किया जाता है ।
- गर्म पानी का सेक- इस प्रक्रिया त्वचा के लिये सहनीय गर्म पानी को कम गहरे के एक पात्र में रखकर रोगी को दस प्रकार बिठाया जाता है कि मलद्वार गर्म पानी में डूब जाये । इससे मल द्वार का सुजन कम होता है उस हिस्से में रक्त प्रवाह संतुलित होता है और दर्द से राहत का अनुभव होता है ।
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बवासीर के आयुर्वेदिक जड़ी-बुटी – Ayurvedic Medicines for Piles
बवासीर के उपचार के लिये प्रकृति में आयुर्वेद के अनुसार कई प्रकार की जड़ी-बुटियां उपलब्ध है । इनमें से प्रमुख है-
- हल्दी- हल्दी बैक्टिरिया रोधी, कृमिनाशक एवं वायुनाशक होता है । इसमें घाव को भरने का गुण भी पाया जाता है इस कारण इसका उपयोग बवासीर में किया जाता है । हल्दी को दूध में मिलाकर पीने से लाभ होता है । चंदन के साथ हल्दी मिलाकर लेप बनाकर घाव में लगाने घाव जल्दी भरता है ।
- मंजिष्ठा- मंजिष्ठा में त्वचा के ऊतकों को सिकोड़ने वाला गुण होता है । इसके साथ ही यह घाव को भरने में मदद करता है । इसी कारण इसका उपयोग बवासीर के नियंत्रण में किया जाता है । मंजिष्ठा का काठा पेय के रूप में एवं इसका पावडर पेस्ट के रूप में प्रयोग में लाई जाती है ।
- हरितकी- यह पाचक एवं रेचक के रूप में जाना जाता है । इसके प्रयोग से बवासीर में जो मल त्यागना कठीन होता में कठिनाई दूर करने में उपयोगी है ।
- कुटजा-खूनी बवासीर के लिये यह अत्यधिक उपयोगी है । इसके उपयोग से रक्तस्राव बंद हो जाता है ।
- बवासीर के लिये आयुर्वेदिक औषधि-बवासीर के नियंत्रण के लिये आयुर्वेद में कई प्रकार की औषधियां प्रचलित है जिसमें त्रिफला गुग्ल टेबलेट, कांकायण बटी, आदि प्रमुख है ।
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बवासीर के उपचार के कुछ अनुभूत घरेलू उपचार – Home Remedies for Piles
बवासीर के उपचार के संबंध अनेक घरेलू उपचारों की चर्चा पढ़ने-सुनने में आता है किन्तु यहां कुछ अनुभूत प्रयोगों का वर्णन किया जा रहा है –
- रसायत, बसौंठा, और कुल्फा (लोणक) के बीज को बराबर मात्रा में लेकर कूटपीस कर बारीक कर लें । फिर इसे कपड़ से छान ले । इस छाने गये चूर्ण को मूली के पानी के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें और इसे चने के बराबर गोलियां बनाकर इसे धूप में न सूखाकर, छाये में सूखायें । इसके 3-4 गोलियां रोज सुबह गाय के दही की लस्सी के साथ मरीज को दिये जाने से बवासीर में निश्चित ही लाभ होता है । इस औषधि के सेवन अवधि में लाला मिर्च और गुड खाना वार्जित है ।
- त्रिफला चूर्ण -प्रतिदिन सोते समय तीन चम्मच त्रिफला चूर्ण पानी के साथ ले इसके नियमित एक वर्ष के प्रयोग से बवासीर जड़ से समाप्त हो जाता है ।
- एक तोला रसौत और एक तोला कलमी शोरा दोनों को महीन पीसकर पानी से चार गोली बना लें इसे दो दिन तक एक-एक गोली सुबह-शाम जल के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है । यदि दो दिन में लाभ न हो तो इसी प्रयोग को आगे और किया जा सकता है । इससे निश्चित लाभ होता है ।
- शौच जाने के पूर्व शुद्ध जल पीयें फिर शौच जायें । शौच के बाद गुदा धोने के बाद गुदा में शुष्क एवं साफ जगह की धूल कंकड रहित मिट्टी का लेप बना कर गुदाद्वार अच्छे से लगा दें । 1-2 मीनट बाद इसे धो लें । मिट्टी के इस प्रयोग से खूनाबवासीर में अप्रत्याशित लाभ देखा गया है ।
- घमिरा को पीसकर साफ कपड़ में पोटली बनाकर, असली घी को तवे में डालकर पोटली को तवे में गर्म करें, इस गर्म पोटली से बवासीर के सुजन की सेकाई करें । इस सेकाई से निश्चित लाभ होता है ।
बवासीर में खान-पान का नियंत्रण – Eating Habits control for Piles
बवासीर के रोगी को जंक-फुड, तले, भूने भोज्य पदार्थ से परहेज करना चाहिये । पानी अधिक से अधिक पियें । अपने भोजन छाछ को निश्चित रूप से शामिल करें । केला, पपीता, अंजीर, नारीयल, बादाम जैसे फल अपने भोजन में शामिल करना चाहिये । इसके साथ-साथ अंजवाइन, नींबू, जीरा, भी किसी न किसी रूप में लेना चाहिये।
बवासीर का आयुर्वेदि उपचार इस गंगीर रोग से मुक्ति दे सकता है किन्तु इसमें धैर्य की आवश्यकता है । अपने खान-पान को संयमित रखते हुये इनके उपचार नियमित रूप से करने पर कुछ समय के बाद इसे जड़ से समाप्त करने सफलता प्राप्त होती है ।
अनुभव में आता है कि अधिकांश रोगी कुछ दिन या कुछ सप्तहा आयुर्वेदिक उपचार लेने के बाद बंद कर देते हैं जिससे उसके रोग में कमी तो आता है किन्तु रोग जड़ से नश्ट नहीं होता । वैद्य के अनुसार इसका उपचार पूरा लेने पर निश्चित रूप से लाभ होता है ।