आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान है जो की हमारे शरीर में दोष को संतुलित करके हमको तंदुरुस्त रखने में मदद करता है। आयुर्वेद मानता है की हमारे शरीर में तीन बायो-केमिकल एनर्जी पायी जाती है जिसे दोष कहते है। यही दोष हमारे शरीर की सामान्य प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होते है। इन्हीं दोषों में असंतुलन की वजह से कई रोगों की उत्पत्ति होती है।
आयुर्वेद में दोषों को संतुलित एवं उनके शमन के लिए कई चिकित्सा बताई गयी है। आयुर्वेद चिकित्सा में अभ्यंग (Abhyanga) का उपयोग वात दोष को संतुलित करने के लिए किया जाता है। इस आर्टिकल में आज हम बात करेंगे की अभ्यंग क्या होता है, इसके फायदे क्या है, यह कैसे किया जाता है, किसे और कब करना चाहिए।
अभ्यंग Meaning in Hindi – अभ्यंग का मतलब हिंदी में – अभ्यंग का अर्थ
अभ्यंग संस्कृत [संज्ञा पुल्लिंग] 1. लेपन ; पोतना 2. मालिश।
- तेल की मालिश
- चारों ओर तेल मल-मलकर लगाने की क्रिया
- पोतना या लेपना।
- सारे शरीर में तेल की मालिश करना।
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आयुर्वेद में अभ्यंग क्या है – What is Abhyanga in Hindi?
आयुर्वेद में अभ्यंग का दिनचर्या में समावेश किया गया है। संस्कृत में अभ्यंग का अर्थ होता है – “ सारे शरीर में तेल की मालिश करना”। अभ्यंग एक आयुर्वेदिक प्रक्रिया है जिसमे पुरे शरीर पर तेल से मालिश की जाती है। यह हमारे शरीर सहित मन को भी संतुलित करता है। हलाकि प्रतिदिन अभ्यंग पर्याप्त है लेकिन समय सर एक अच्छा अभ्यंग भी लेना चाहिए।
आयुर्वेद में अभ्यंग को पंचकर्म से पहले भी किया जाता है। अभ्यंग को अलग अलग उद्देश्य के लिए अलग अलग तेलों से किया जाता है। व्यायाम करने से पहले अभ्यंग करना फायदेमंद होता है।
अभ्यंग स्नान क्या है? – What is Abhyanga Snan in Hindi?
महाराष्ट्र में दिवाली के त्यौहार में अभ्यंग स्नान का महत्व होता है। यह अनुष्ठान नरक चतुर्दशी की सुबह तिल के तेल से किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नरक चतुर्दशी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
इस प्रकार, सुबह का स्नान हमारे भीतर बुराई के विनाश को दर्शाता है। यह भी माना जाता है कि सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान करने से, यह गंगा नदी में स्नान करने के समान पवित्र है।
इस साल ४ नवंबर २०२१ के दिन नरक चतुर्दशी है, और इस दिन आप अभ्यंग स्नान कर सकते है।
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अभ्यंग के फायदे – Benefits of Abhyanga in Hindi
आयुर्वेद में अभ्यंग के कई फायदे बताये गए है। यह शारीरिक एवं मानसिक शांति प्रदान करता है। अभ्यंग करने से शरीर में वात दोष का शमन होता है और शरीर में से रूखापन कम होता है। इसके अतिरिक्त, अभ्यंग करने से शरीर में रक्तसंचार बढ़ता है और जोड़ो के दर्द से भी राहत मिलती है।
नीचे अभ्यंग के कुछ फायदे बताये गए है –
- शरीर में वात दोष का शमन होता है।
- त्वचा मुलायम होती है और पोषण मिलता है।
- शरीर में रक्त संचार बढ़ता है।
- पाचन तंत्र ठीक होता है।
- शरीर का शुद्धिकरण होता है।
- वृद्धावस्था के लक्षण कम होते है।
- आयु बढ़ती है।
- थकान दूर होती है।
- मांशपेशियों का विकास होता है।
- दृष्टि मे सुधार होता है।
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अभ्यंग तेल रेसिपी – Vata Abhyanga Oil
सामग्री:
- 1 कप घी या तिल का तेल
- आधा कप मिश्रित हल्दी, ताजा अदरक, कमल की जड़, ताजा तुलसी, लौंग, और संतरे का छिलका, किसी भी संयोजन में
- एसेंशियल आयल (optional): चमेली, तुलसी, नारंगी, गुलाब
दिशा-निर्देश:
- एक छोटे सॉस पैन / कड़ाही में, घी या तिल के तेल को धीरे से गर्म करें जब तक कि यह उबलना शुरू न हो जाए लेकिन धूम्रपान न करें।
- मिश्रित जड़ी बूटियों में हिलाओ और गर्मी से हटा दें।
- कड़ाही को ढँक दें 1 दिन के लिए। उसके बाद कढ़ाही में से तेल को निकाल लें कॉफ़ी फ़िल्टर की मदत से या आप कॉटन के कपडे का इस्तेमाल भी कर सकते हैं तेल को छानने के लिए
- अगर जरुरी हो तो आप इसमें 5 – 8 ड्राप एसेंशियल आयल मिला सकते हैं
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अभ्यंग के लिए आयुर्वेदिक मसाज तेल – Oil for Abhyanga Self Massage
आपको बाजार में कई अलग अलग ब्रांड के आयुर्वेदिक मसाज तेल मिल जायेंगे। लेकिन आपको अपने शरीर में स्थित दोषों की परिस्थिति और ऋतु के अनुसार तेल का चयन करना चाहिए। जैसे की गर्मी में ठंडा तेल, सर्द में गरम तेल आदि।
वात प्रकृति वालों को नियमित अभ्यंग करना चाहिए। वात प्रकृति वाले वात का शमन करने वाले तेल जैसे कि बादाम तेल, अश्वगंधा तेल, नारियल तेल, आदि का प्रयोग कर सकते है।
पित्त प्रकृति वालों को हफ्ते में २-३ बार अभ्यंग करना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले पित्त का शमन करने वाले ठंडे तेल जैसे कि बादाम तेल, नारियल तेल, सनफ्लावर तेल आदि का प्रयोग कर सकते है।
कफ प्रकृति वालों को नियमित अभ्यंग नहीं करना चाहिए। अत्यधिक अभ्यंग करने से कफ दोष का संचय होता है। हालांकि कफ प्रकृति वाले सर्द में वात के प्रकोप के समय अभ्यंग कर सकते है। कफ प्रकृति वाले लघु गुण वाले तेल जैसे की कुसुम तेल, बादाम तेल, अलसी का तेल, नीलगिरी का तेल, आदि का प्रयोग कर सकते है।
अभ्यंग की विधि : अभ्यंग कैसे करे? – How to do Abhyanga procedure?
हमने देखा की अभ्यंग करने के कई फायदे होते है। चलिए देखते है की आप घर पर खुद ही अभ्यंग कैसे कर सकते है। अभ्यंग करने के लिए पहले आपको आपकी प्रकृति और ऋतु के अनुसार तेल का चयन करना होगा।
आप निम्नलिखित तरीके से अभ्यंग कर सकते है-
स्टेप १ : सबसे पहले अभ्यंग मसाज करने के लिए एक उचित जगह का चयन करें।
स्टेप २ : अब अपने हाथो की मदद से अपने शरीर पर हल्के से तेल का मसाज करें।
स्टेप ३ : आपको तेल मसाज शरीर के ऊपरी हिस्से से शुरू करके पैरो के तलिये तक करना है। आपको यह क्रम में मसाज करना है-
- सिर – Head and Scalp
- मुँह – Face
- छाती – Chest Area
- पेट – Abdomen
- हाथ – Hands
- जांघ – Thigh Area
- पैर – Legs & Foot
स्टेप ४: सभी जगह पर अच्छे से मसाज हो जाने के बाद आपको थोड़ी देर ऐसे ही रहना है ताकि शरीर तेल को अच्छे से सोख ले।
स्टेप ५: थोड़ी देर आराम करने के बाद आपको गुनगुने पानी से शावर ले लेना है ताकि शरीर पर जमा अतिरिक्त तेल निकल जाए। नाहने के बाद शरीर को एक कॉटन के टॉवल से अच्छे से सूखा कर दे।
अभ्यंग कब करना चाहिए – When to Practice Abhyanga?
अभ्यंग को आप अपने नियमित दिनचर्या में शामिल कर सकते है। आप अभ्यंग को सुबह मॉर्निंग शावर से पहले या फिर रात को सोने से पहले शावर के वक़्त कर सकते है। आपको इसे अपने शरीर के दोषों की स्थिति के अनुसार करना है। वात प्रकृति वालों को यह प्रतिदिन करना चाहिए। पित्त प्रकृति वालों को यह हफ्ते में दो-तीन बार करना चाहिए एवं कफ प्रकृति वालों को यह जरूर पड़ने पर ही करना चाहिए।
अभ्यंग को सर्दी की शिशिर ऋतू में जरूर करना चाहिए। शिशिर ऋतु में शरीर में वात दोष का संचय होता है, इसलिए त्वचा रूखी पड़ जाती है और मॉइस्चराइजर की जरूरत पड़ती है। सर्दी में अभ्यंग करने से त्वचा को पोषण मिलता है और शरीर में ताजगी बनी रहती है।
अभ्यंग कब नहीं करना चाहिए?
वैसे तो अभ्यंग करना शरीर के लिए लाभदायक होता है, लेकिन कई ऐसी परिस्थिति भी होती है जिनमे अभ्यंग नहीं करना चाहिए। निम्नलिखित परिस्थिति में आपको अभ्यंग नहीं करना है –
- खाने के तुरंत बाद
- अर्ध पाचन या कब्ज में
- बुखार में
- शरीर के भारीपन में
- कफ प्रकोप के समय
- मासिक के समय
- प्रेगनेंसी के समय
- वमन और बस्ती क्रिया के बाद
Abhyanga – FAQs
अभ्यंग के लिए सबसे अच्छा तेल कोनसा है? – Which oil is best for abhyanga?
अभ्यंग के लिए कई अलग अलग तेल का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाए तो हर एक व्यक्ति की प्रकृति अलग अलग होती है और उनकी प्रकृति के अनुसार ही तेल का उपयोग करना चाहिए। हमने यहाँ कुछ प्रकृति के अनुसार बेहतरीन तेल का वर्णन किया है जिसका आप अभ्यंग के लिए प्रयोग कर सकते है।
वात प्रकृति | पित्त प्रकृति | कफ प्रकृति |
अश्वगंधा तेल | ब्राह्मी तेल | तिल तेल |
महानारायण तेल | भृंगराज तेल | बादाम तेल |
शतावरी तेल | नारियल तेल | मक्के का तेल |
तिल तेल | नीम तेल | मक्के का तेल |
क्या अभ्यंग के बाद नहाना चाहिए? – Do you have to shower after abhyanga?
अभ्यंग करने के बाद शावर करना अच्छा होता है। हालांकि यह अनिवार्य नहीं है लेकिन अभ्यंग के बाद शरीर पर अतिरिक्त मात्रा में तेल को हटाने के लिए स्नान करने की सलाह दी जाती है। अभ्यंग करने के बाद ५-१० मिनट तक ऐसे ही बैठना चाहिए ताकि त्वचा तेल का अच्छे से शोषण कर सके। उसके बाद गुनगुने पानी से बिना साबुन से शावर लेना चाहिए ताकि आपकी त्वचा अतिरिक्त चिपचिपी न हो जाए।
क्या अभ्यंग रात में किया जा सकता है? – Can abhyanga be done at night?
अभ्यंग को आप रात को सोने से पहले भी कर सकते हो। अभ्यंग करने के बाद अच्छे से शावर ले ले और शरीर को कॉटन के टॉवल की मदद से सूखा कर ले। रात को सोने से पहले अभ्यंग करने से नींद अच्छी आती है एवं पूरे दिन की थकान दूर होती है। हालांकि शरद ऋतु में रात को अभ्यंग नहीं करना चाहिए, इससे शरीर में कफ दोष का संचय होता है।
अभ्यंग कैसे मदद करता है? – How does abhyanga help?
अभ्यंग हमें कई रूप से फायदेमंद है। आयुर्वेद में इसके कई फायदे बताये गए है। यह शरीर में रक्तप्रवाह बढ़ाता है और शरीर में स्फूर्ति एवं उत्साह का अनुभव कराता है। यह अनिद्रा में फायदेमंद, वात दोष का शमन, रूखी त्वचा को ठीक करने में, शरीर को पोषण एवं मॉइस्चराइज़ करने में, आदि रूप से हमें मदद करता है।
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